सीतेश कुमार द्विवेदी
मधुमेहियों के मस्तिष्क, आंख, हृदय, किडनी एवं पैरों पर सबसे ज्यादा खतरा रहता है। शुगर के अनियंत्रित रहने का प्रभाव इन्हीं पर सबसे ज्यादा पड़ता है। डायबिटीज के मरीजों के पैरों पर इनमें से सबसे ज्यादा खतरा रहता है। हमारे यहां दुर्घटना के बाद मधुमेह दूसरा ऐसा कारण है जिससे सर्वाधिक लोगों के सामने पैर काटने की स्थिति आती है। यहां लगभग 4० से 50 हजार लोगों का पैर प्रतिवर्ष मधुमेह जनित परेशानियों के कारण काटना पड़ता है। इस समय भारत में शुगर पीड़ितों की संख्या 5 करोड़ के आसपास है। मधुमेह रोगियों की संख्या के मामले में हम शिखर स्थान पर हैं। इनमें से अधिकतर डायबिटीज टाइप टू के मरीज हैं। शुगर के अनियंत्रित रहने एवं पैरों पर ध्यान नहीं देने के कारण मधुमेहियों को पैरों से संबंधित परेशानियां होती हैं और अन्तत: पैर काटने पड़ते हैं।
पैरों के कटने के बाद मधुमेह और खतरनाक रूप ले लेता है, अतएव शुगर पेशेंट पैरों के कटने एवं विकलांग होने से बचने के लिए अपनी शुगर को काबू में रखें और अपने पैरों पर सदैव ध्यान दें। जब भी डॉक्टर के पास जाएं, अपने पैरों की जांच सर्वप्रथम कराएं।
डायबिटिक फुट क्या है
मधुमेह, शुगर, डायबिटीज यह पहले अमीरों एवं बड़ों की बीमारी थी जो अब सर्वव्यापी है। इससे बच्चे, बड़े, अमीर, गरीब सभी पीड़ित हैं। विश्व में सर्वाधिक संख्या में मधुमेह रोगी भारत में होने के कारण यह मधुमेह के मामले में विश्व की राजधानी कहा जाता है। मधुमेह वंशानुगत एवं अन्य कारणों से होता है। इसमें पेंक्रियाज अर्थात अग्नाशय में खराबी के कारण उसमें से निकलने वाला पाचक इंसुलिन कम निकलता है या अप्रभावी होता है जिससे भोजन के ग्लूकोज को हमारा शरीर पचा नहीं पाता और यह रक्त में पहुंच जाता है। अधिकता की स्थिति में यह मूत्र के माध्यम से बाहर निकलता है।
डायबिटीज रोगी दो तरह के होते हैं। इनमें से टाइप वन श्रेणी के मरीज को भोजन के ग्लूकोज को पचाने के लिए इंजेक्शन के माध्यम से इंसुलिन लेना जरूरी हो जाता है जबकि टाइप टू श्रेणी का मरीज खानपान एवं जीवनचर्या में सुधार कर या नियमित दवा के माध्यम से इसे नियंत्रित रख सकता है। अपने यहां के तीन चौथाई मधुमेही टाइप टू श्रेणी के हैं।
दोनों तरह के मधुमेहियों को शुगर के अनियंत्रित रहने की स्थिति में पैरों पर सबसे ज्यादा खतरा रहता है। पैर संवेदना शून्य हो जाते हैं। उसमें अल्सर गैग्रीन, घाव आदि होने पर पीड़ित को पता नहीं चलता है। यही आगे खतरनाक रूप ले लेता है और पैर काटने की नौबत आती है। भारत में वर्तमान समय में 5 करोड़ के आसपास मधुमेह रोगी हैं। इनमें से प्रतिवर्ष एक करोड़ के सामने पैरों की परेशानी या जटिलता आती है जिनमें से 50 हजार लोगों का एक पैर काटना पड़ता है। हर तीस सैकण्ड में कोई न कोई ऐसा मरीज अपना एक पैर खोता है।
मधुमेह के मरीजों में टांग पर सबसे ज्यादा खतरा रहता है। शुगर मरीजों को बी. पी., कोलेस्ट्राल एवं मोटापा बढ?े पर यह खतरा और बढ़ जाता है। डायबिटीज न्यूरोपैथी के कारण पैर संवेदनहीन हो जाते हैं। पैरों में रक्त आपूर्ति घट जाती है एवं पैरों के घाव, अल्सर, गैग्रीन आदि जल्दी ठीक नहीं होते जिससे जटिलता और बढ़ जाती है। अंतत: मामला गंभीर होकर पैर काटने की स्थिति आ जाती है।
लक्षण
जैसे जैसे मधुमेह का रोग बढ़ता है, पावों की नसों पर प्रतिकूल प्रभाव भी बढ़ता चला जाता है और पांवों की संवेदना इस कदर घट जाती है। उसमें कुछ भी चुभ जाए तो पता नहीं चलता। गर्मी, ठंड और दर्द का अनुभव भी नहीं होता। पावों में कील चुभ जाए, राह चलते ठोकर लग जाए या उसमें गर्म वस्तुओं से छाले पड़ जाए तो भी पता नहीं चलता। पांवों से खून या मवाद बाहर आता है तभी उसके दिखने पर कुछ पता चल पाता है। इन्हें पांवों से जूते-चप्पल खिसकने पर भी पता नहीं चलता है। तब उन्हें गद्दे पर चल रहे हैं ऐसा लगता है। इस पांवों की संवेदना खत्म होने की स्थिति को ही न्यूरोपैथी या डायबिटिक फुट कहते हैं।
मधुमेह का पता चलने के बाद अपने पावों के प्रति विशेष सचेत रहना चाहिए। पांच साल बाद तो पांवों की अनदेखी करनी ही नहीं चाहिए। पांवों का संक्रमण, घाव, अल्सर, गैंग्रीन, गोखरू आदि में स्पाइकोकस नामक कीटाणु बढ़ जाता है जो घाव भरने नहीं देता। यह हड्डी तक तेजी से पहुंच जाता है और पैर काटने जैसी स्थिति आती है।
अतएव मधुमेह रोगी अपने पांवों को डॉक्टर के भरोसे न छोड़ें। स्वयं भी अत्यधिक सचेत रहें। प्रतिदिन आइने में अपनी सूरत देखने से ज्यादा पैरों पर नजर रखें। दैनिक सूरत नहीं, अपने पावों को निहारिए। पैरों के नीचे भाग को ठीक से देखिए।
बचाव व उपाय
-नंगे पैर न चलें। पैर व नाखून साफ रखें।
-सदैव शाम के समय जूते खरीदें।
जूते कील व काटने वाले न हो। हल्के ढीले हों। उसे हमेशा साफ रखें। जुराब भी साफ रखें।
-पैरों के नाखूनों को ब्लेड से सावधानी से काटें।
-बी. पी., शुगर, कोलेस्ट्राल, मोटापा, वजन आदि न बढ दें।
-पैरों की नियमित जांच करें।
-कार्न्स, गोखरू, गठान आदि का स्वयं उपचार न करें।
डॉक्टर से तत्काल मिलें।
-पैरों में दर्द हो, सूजन या झनझनाहट हो, गुलाबी, लाल या सफेद, पीला कोई दाग धब्बा दिखे तो डॉक्टर को अवश्य बताएं।
-धूम्रपान एवं नशापान न करें।
-श्रम, व्यायाम, पैदल चलने से न कतराएं।
-खानपान व जीवन चर्या संतुलित रखें।
-पैर शुष्क न हों, दरार न पड़ें, इसलिये तेल या लोशन लगाएं।
-दवा की तय मात्रा, निर्धारित समय पर जरूर लें। उसे स्वयं न बदलें। मनमानी न करें। हर हाल में शुगर पर नियंत्रण रखें। अन्य रोग हैं तो उन्हें भी काबू में रखें।
-सुनी-सुनाई बातों व नुस्खेबाजी पर न जाएं।