पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकारों पर बात करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी)से रूस को निष्कासित कर दिया है। रूस का निष्कासन यूकेन की राजधानी कीव से सटे बूचा शहर में रूसी सैनिकों द्वारा की गई बर्बरतापूर्ण कार्रवाई के आरोप में किया गया है। रूस पर आरोप है कि युद्ध के दौरान उसके सैनिकों ने यूकेनी नागरिकों की बर्बरतापूर्वक ढंग से हत्याएं की हैं। दूसरी ओर रूस ने यूएन महासभा के इस कदम को गैर कानूनी करार दिया है। उसका कहना है कि यूके्रन की बर्बरता में उसके सैनिकों का हाथ नहीं है। यूक्रेनी अधिकारी झूठी खबरें गढ़ रहे हैं। महासभा के इस फैसले के बाद रूस दुनिया का दूसरा ऐसा देश बन गया है, जिसे यूएनएचआरसी से निष्कासित किया गया है। इससे पहले साल 2011 में लीबिया को परिषद से निलंबित किया गया था। लीबिया पर भी मानवाधिकारों के हनन व निर्दोष लोगों की हत्याओं का आरोप था।
रूस-यूके्रन युद्ध के बीच यूक्रेन की राजधानी कीव के उपनगर बुचा से यूक्रेनी नागरिकों के शवों की भयावह तस्वीरों और वीडियो आने के बाद संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने रूसी सैनिकों पर यूके्रन में युद्ध अपराधों को अंजाम देने का आरोप लगाते हुए 47 सदस्यी मानवाधिकार परिषद से रूस को हटाए जाने की मांग की थी। ग्रीनफील्ड ने परिषद में रूस के बने रहने को ‘तमाशा’ कहा था।
महासभा के विशेष आपातकालीन सत्र में अमेरिका की ओर से लाए गए इस प्रस्ताव पर 93 सदस्यों ने रूस को यूएनएचआरसी से बाहर करने के पक्ष में वोट किया। जबकि 24 देशों ने प्रस्ताव के विरोध में वोट डाला। भारत सहित 58 देशों ने वोटिंग से दूरी बनाए रखी। रूस के निष्कासन संबंधी प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले यूक्रेन के प्रतिनिधि ने कहा कि यूएनएचआरसी से रूस की सदस्यता रद्द करना कोई विकल्प नहीं है, बल्कि एक कर्तव्य है। हम इस समय एक अनोखी स्थिति में है। एक संप्रभु राष्ट्र के क्षेत्र पर यूएनएचआरसी के एक सदस्य ने मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया है। उसके कार्य युद्ध अपराध व मानवता के खिलाफ हैं।
रूस को बाहर करने के फैसले का यूक्रेन के विदेशमंत्री दिमित्रो कुलेबा ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की इकाइयों में युद्ध अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं सभी सदस्य देशों का आभारी हूं जिन्होंने इस प्रस्ताव का समर्थन किया और इतिहास का सही पक्ष चुना।
यूक्रेन मसले भारत शुरू से ही तटस्थ रूख अपनाए हुए है। वह शांति, संवाद और कूटनीतिक रास्ते से मामले के समाधान के पक्ष में खड़ा है। उसका कहना है कि जब निर्दोष मानव जीवन दांव पर लगा हो तो कूटनीति को एकमात्र व्यवहार्य विकल्प के रूप में माना जाना चाहिए। हालांकि, इस सप्ताह के शुरुआत में भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपना अब तक का सबसे कड़ा बयान जारी करते हुए यूक्रेन के बुचा में आम नागरिकों की हत्याओं की निंदा की और एक स्वतंत्र जांच के आह्मन का समर्थन किया था।
बुचा से वीडियो सामने आने के बाद दुनियाभर में रूसी कृत्य की आलोचना की जा रही है। अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई यूरोपीय देशों ने रूस पर प्रतिबंध और अधिक कड़े कर दिए है। परिषद से निष्कासन के बाद अमेरिका ने पुतिन की बेटियों के अलावा रूस के शीर्ष सार्वजनिक और निजी बैंकों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। अमेरिका के नक्शे कदम पर चलते हुए ब्रिटेन ने भी उसके सबसे बड़े बैंक पर प्रतिबंध लगा दिया है और ब्रिटेन से रूस जाने वाले निवेश को समाप्त कर दिया है।
अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, कनाडा और आॅस्ट्रेलिया ने रूस के प्रमुख बैकों पर पहले से ही प्रतिबंध लगा रखा है। जर्मनी ने नॉर्ड स्टीम 2 गैस पाइपलाइन परियोजना को रोक दिया है। इसके अलावा अमेरिका, पोलैंड, चेक गणराज्य, बुल्गारिया और एस्तोेनिया ने रूसी जहाजों के लिए अपने हवाई क्षेत्र बंद कर दिए हंै। अमेरिका ने राष्ट्रपति पुतिन और उनके विदेश मंत्री संर्गेई लावरोव की यात्रा पर भी रोक लगा रखी है। यूरोपियन यूनियन ने सेंट्रल बैंक आॅफ रशिया समेत सात रूसी बैंकों को स्विफ्ट से बाहर कर रूस को बड़ा झटका दिया है।
सबसे कड़ा प्रतिबंध रूस के वित्तीय तंत्र को स्विफ्ट से अलग रखना है। इसके अलावा रूस के करीब 640 बिलियन डॉलर रिजर्व पर भी रोक लगाने की कोशिश की जा रही है। कुल मिलकार कहा जाए तो वैश्विक महाशक्तियों ने रूसी अर्थव्यवस्था का गला घोंटने के लिए वो तमाम प्रयास किए हैं, जो वो कर सकते हैं। फ्रांस के वित्तमंत्री ने कहा भी है कि हम ऐसे इंतजाम करेंगे कि रूस की अर्थव्यवस्था पूरी तरह ढह जाए।
दूसरी ओर रूस पश्चिम देशों द्वारा लगाए जा रहे प्रतिबंधों की परवाह किए बिना यूक्रेन में लगातार आगे बढ़ रहा है। ओडीसा व खारकीव के बाद अब जिस तरह से वह राजधानी कीव पर कब्जे के करीब है, ऐसे में सवाल यह है कि क्या इन प्रतिबंधों के जरिए पुतिन को रोका जा सकेगा? जेनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन करते हुए पुतिन जिस तरह से एक के बाद एक नागरिक ठिकानों को निशाना बना रहे हैं, उसे देखते हुए सवाल यह भी उठ रहा है कि अमेरिका और उसके सहयोगी आर्थिक प्रतिबंधों को कब तक निवारक के रूप में देखते रहेंगे? इतिहास बताता है कि आर्थिक प्रतिबंध केवल सैद्धातिक रूप में ही काम करते हैं और इनका असर बहुत धीमे होता है।
पश्चिमी देश रूस की आक्रामकता का जवाब देने के लिए इन प्रतिबंधों को सबसे कारगर उपाय मान रहे हंै। उनका कहना है कि यूरोप में रूस के बहुपक्षीय व्यापार और सुरक्षा व्यवस्था को खत्म कर पुतिन को सबक सिखाया जा सकता है। लेकिन युद्ध के पचास दिन गुजर जाने के बाद भी धरातल पर हकीकत कुछ ओर ही नजर आ रही है। यूएनएचआरसी से निष्कासित किए जाने के बावजूद न तो यूक्रेन में रूसी हमलों में कमी नहीं आई है और न ही पुतिन के तेवर ढीले पड़ रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की तरह परिषद का फैसला भी केवल हवा-हवाई बन कर रह गया हो।