- 180 साल पहले क्षेत्र का सर्वे करने के लिये बनाया गया था टॉवर
- दुनिया की सबसे ऊंची चोटी मांउट एवरेस्ट का नाम भी इनके नाम पर पड़ा
- इतिहास के कई राज को समेटे हुए है सैनी का टॉवर
- हस्तिनापुर का सैन्य द्वार, जहां आज भी निकलते हैं पुरावशेष
मनोज राठी |
इंचौली: यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट जिसके नाम से जानी जाती है उस महान शख्स के तार सैनी गांव से जुड़े हुए हैं। इतिहासकारों ने इस गांव को प्रागैतिहासिक माना है, लेकिन गांव अपने समृद्ध अतीत से अनभिज्ञ है। टीले को खोदने पर आज भी पुरावशेष निकलते हैं। इसी टीले पर मराठों के पहरे की मीनार गरुड़ध्वज है, जिसे ग्रामीण गड़गज कहते हैं।
सभी को होश संभालते ही इस मीनार के बारे में जानने का उत्साह था। शायद आप के मन में भी रहा हो? जार्ज एवरेस्ट की निशानी किसी संदूक या संग्रहालय में कैद नहीं है। यह खुले आसमान के नीचे है, दूर से ही दिखती है। 40 फीट से ज्यादा ऊंची है और दुरुस्त है। स्थानीय लोग इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते, लेकिन हां, नाम जरूर दिया है गड़गज। इसके पीछे का कहानी क्या है, यह उन्हें नहीं मालूम।
मेरठ-मवाना मार्ग पर मुजफ्फरनगर सैनी एक साधारण गांव है। टीले पर गड़गज है। जिसका सरकार द्वारा तीन साल पहले जीर्णोद्धार कराया गया। उसके चारों ओर बाउंड्री और गेट लगाया गया। इस कायाकल्प के बावजूद इस स्थल की दशा नहीं बदली। मेरठ-मवाना मार्ग पर जैसे ही मुजफ्फरनगर सैनी गांव की सीमा में प्रवेश करेंगे, बायीं ओर नजर दौड़ाते ही गांव के तमाम पेड़-पौधों और ऊंची इमारतों के बीच एक तिकोना टॉवर नजर आएगा। यही वह निशानी है, जिसे सर जार्ज एवरेस्ट ने सर्वेयर जनरल आॅफ इंडिया के पद पर रहते हुए बनवाया था। इसकी निर्माण तिथि तो कहीं अंकित नहीं, लेकिन जार्ज 1830 से 1843 तक सर्वेयर जनरल रहे, लिहाजा इस टावर का निर्माण वर्ष भी इसके बीच का ही माना जाता है। यानि यह टावर 180 वर्ष से भी पुराना है।
मुजफ्फर अली के नाम से पड़ा गांव का नाम
ग्रामीणों ने बताया कि हजारों साल पहले मुजफ्फर अली नाम के बादशाह का शासनकाल था। जिसके नाम से सैनी गांव का नाम मुजफ्फरनगर सैनी पड़ा। जो आज भी इसी नाम से जाना जाता है। यह गांव अपने अंदर इतिहास की ऊंची इमारत को समेटे हुए हैं। गड़गज में ऊपर जाने के लिए लोहे की सीढ़ियों भी लगी है।
सैनी गांव में पांडु की मृत्यु और माद्री सती हुई थी
ग्रामीणों ने बताया कि मुजफ्फरनगर सैनी ही वह स्थान है। जहां पांडु की मृत्यु हुई थी और माद्री भी यहीं पर सती हुई थीं, लेकिन इसके पीछे ज्यादा तो जानकारी ग्रामीणों के पास भी नहीं है। जबकि इतिहासकारों ने भी ये ही बताया है। उधर, सैनी गांव के ग्रामीणों नानक, ऋषिपाल, शिवकुमार, कर्णवीर और नरेशपाल सिंह ने बताया कि इस गड़गज के नीचे एक लंबी सुरंग भी हुआ करती थी। जो महाभारतकालीन में सैनी गांव के गड़गज से सीधे हस्तिनापुर निकलती थी।
संदेश वाहक था सैनी का गड़गज
ग्रामीणों और इतिहासकारों का मानना है कि मुजफ्फरनगर सैनी गांव में बना टॉवर या गड़गज आज से लगभग 180 साल पहले संदेश वाहक का कार्य करते थे। लोगों का मानने है कि इस टॉवर पर खड़े होकर अंग्रेज एक स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश पहुंचाने के लिए बिगुल बजाकर संदेश दिया करते थे। वहीं, इस तरह से इस टॉवर कुछ दूरी पर स्थित हुआ करता था। वह इस संदेश को आगे के लिए भेज देता था।
हस्तिनापुर और खतौली में भी निशां
मेरठ में मुजफ्फरनगर सैनी गांव के अलावा हस्तिनापुर के टीले पर भी एक टावर होता था। अब हस्तिनापुर का टावर नष्ट हो चुका है। उसके अवशेष मिलते हैं। कुछ इसी तरह खतौली में भी टावर है। करनाल हाइवे पर मुख्य मार्ग से 500 मीटर की दूरी पर भी टावर के निशां हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सैनी गांव जैसे 14 टावर बनाए गए थे, जबकि शेष स्थानों पर बांस के स्ट्रक्चर का सहारा लिया गया था।