दिलीप कुमार पाठक |
देश भर के पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ बातचीत करते रहना चाहिए। इस दौड़ में शामिल होने से पहले उसकी क्षमता का आकलन होना चाहिए। मैं कितने ही बच्चों को जानता हूं जिन्हें बेसिक बातें भी नहीं पता जिन्होंने जिÞन्दगी में कभी अखबार नहीं पढ़ा वो आईएएस की तैयारी में जुटे हुए हैं। कुछ तो जरूरी पढ़ाई से बचने के लिए इस परीक्षा में दौड़ पड़ते हैं।। इसमे या तो उनके पैरेंट्स का दोष है या समाज का एक प्रेशर। कुछ तो इसलिए भी आईएएस की तैयारी करते हैं कि ये नहीं होगा तो छोटी मोटी कोई नौकरी तो लग ही जाएगी।। इससे क्या हासिल होता है? हर बात के लिए सरकार को जिम्मेदारी देकर हम भाग नहीं सकते। माता पिता को सोचना चाहिए कि अगर बच्चा इसमें सफल नहीं हुआ तो क्या होगा?
देश में प्रतियोगी परीक्षाओं के नाम पर व्यापार अपने चरम पर है। साल में मुश्किल से आईएएस के लिए एक हजार जगह भी नहीं निकलती लेकिन हर मेट्रो सिटी में लाखों बच्चे बिल्डिंग्स में कबूतरों की तरह कैद हैं! कुछ में माता – पिता की गलती है तो कुछ में भ्रमित युवाओं की भीड़ शामिल हैं। अब एक अनार सौ बीमार की जगह लाखो बीमार कहना उचित होगा।
अभी बीते दिनों दिल्ली में प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी कर रहे बच्चों की मौत हो गई, गलती किसी की भी निकालिए वो बच्चे अब नहीं आने वाले! कोटा, दिल्ली, मुंबई, इलाहाबाद, इन्दौर आदि शहरों में देखिए आपको बुरे मंजर दिखेंगे। इंदौर के भंवर कुआं, दिल्ली के मुखर्जी नगर आदि में घूमकर आइए बच्चों को देखकर आपका कलेजा हाथ में आ जाएगा, हालांकि ये बात भी अति संवेदनशील लोगों के लिए है।
रही सही कसर 12वीं फेल जैसी एजेंडा फिल्में पूरी कर देती हैं।। जबकि ऐसी फिल्में षडयंत्र के तहत बनाई जाती हैं। दिल्ली में प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी कराने वाले एक अध्यापक भी इस फिल्म में दिखाए जाते हैं, जो हर रोज किसी न किसी न्यूज चैनल में ज्ञान देते हुए पाए जाते हैं। हमेशा कबीर को अपना हीरो बताने वाले तथाकथित अध्यापक के कोचिंग की फीस जान लेंगे तो एक गरीब आदमी का हलक सूख जाएगा।। इसलिए ही कहता हूं यह ज्ञान बांटने वाला क्रूर दौर है। अभी इनके घर के बाहर बच्चे प्रदर्शन कर रहे हैं कि इन्होंने बच्चों की मौत पर दो शब्द भी नहीं कहा, जबकि अभी प्रदर्शन कर रहे बच्चों का दावा है कि ये भी उसी तरह कोचिंग चला रहे हैं।
अब उन्होंने फिल्म में चाहे जिस तरह लोगों को ज्ञान दिया हो, लेकिन हर व्यक्ति अपनी परिस्तिथियों को जीता है अपने संघर्षों से निकल कर आता है। सभी के अपने संघर्ष अलग-अलग होते हैं। स्वामी विवेकानंद ने इस पर खूब कहा भी था-‘किसी ने अपनी जिÞन्दगी में कितना बड़ा काम किया है इससे तुम्हारी जिÞन्दगी में क्या फर्क़ पड़ने वाला है? बात तो तब बनेगी जब तुम किसी की नकल करते हुए किसी की तरह न बनो बल्कि अपनी तरह बनो।’ 12वीं फेल फिल्म देखकर जब आप अति भावुकता में रो रहे होते हैं, तब कहीं न कहीं जाने अनजाने आप इस व्यापार का समर्थन कर रहे होते हैं। इस फिल्म को मैं बाजार की एक चाल से ज्यादा कुछ नहीं मानता जबकि इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो यूथ को प्रेरित करे बल्कि युवाओं को अंधी दौड़ में शामिल हो जाने के लिए जरूर कहती है।
देश के अधिकांश बच्चे अंधी दौड़ में शामिल हो जाते हैं…मैं ये नहीं कह रहा कि आईएएस अधिकारी बनने का ख्वाब नहीं देखना चाहिए या उस दौड़ में शामिल नहीं होना चाहिए। मेरे कहने का मतलब है कि आईएएस परीक्षा में बैठने से पहले एक एंट्रेस होना चाहिए, जिससे वही बच्चे रहेंगे जो उतने कैपिबल होंगे। जिससे अनावश्यक भीड़ न हो सके जिस तरह से डॉ बनने के लिए एंट्रेंस होते हैं कुछ उसी तरह से आईएएस में भी होना चाहिए। अब हर दूसरा बच्चा आईएएस बनना चाहता है, यह परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षा के रूप में जानी जाती है। जाहिर है हर कोई नहीं बन सकता। कोचिंग संस्थानों के लिए भी एक नियमावली होना चाहिए एक-एक बैच में हजारों हजार छात्र बैठे हुए होते हैं कितने पढ़ रहे हैं कितने लायक हैं वो अध्यापकों को पता होता लेकिन पैसा मिल रहा है तो उन्हें क्यों आपत्ति होगी?
देश भर के पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ बातचीत करते रहना चाहिए। इस दौड़ में शामिल होने से पहले उसकी क्षमता का आकलन होना चाहिए। मैं कितने ही बच्चों को जानता हूं जिन्हें बेसिक बातें भी नहीं पता जिन्होंने जिÞन्दगी में कभी अखबार नहीं पढ़ा वो आईएएस की तैयारी में जुटे हुए हैं। कुछ तो जरूरी पढ़ाई से बचने के लिए इस परीक्षा में दौड़ पड़ते हैं।। इसमे या तो उनके पैरेंट्स का दोष है या समाज का एक प्रेशर।।। कुछ तो इसलिए भी आईएएस की तैयारी करते हैं कि ये नहीं होगा तो छोटी मोटी कोई नौकरी तो लग ही जाएगी।। इससे क्या हासिल होता है? हर बात के लिए सरकार को जिम्मेदारी देकर हम भाग नहीं सकते। माता पिता को सोचना चाहिए कि अगर बच्चा इसमें सफल नहीं हुआ तो क्या होगा? इस पर विस्तृत अध्ययन करने की आवश्यकता है। जब इस पर गहन अध्ययन होगा तो कुछ ऐसे -ऐसे तथ्य निकलकर आएंगे जो सोचने पर मजबूर कर देंगे। देश के 70 प्रतिशत बच्चों के पास कोई बैक अप प्लान नहीं होता। देश के अधिकांश बच्चे अंधी दौड़ में शामिल हो जाते हैं या कर दिए जाते हैं। देखिएगा यह समस्या एक दिन विकराल रूप धारण कर लेगी या कर चुकी है।