Monday, September 25, 2023
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भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति की धज्जियां उड़ा रहें सीएम योगी के अफसर

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  • हापुड़ के डीजीसी क्रिमिनल पद के पात्र नहीं थे कृष्ण कुमार गुप्ता, फिर भी हुई नियुक्ति

  • डीएम हापुड़ की जांच रिपोर्ट में खुलासा, आवेदन पत्र में छिपाई सच्चाई

  • तीन रिमाइंडर, 11 महीने लगे शासन तक जांच रिपोर्ट पहुंचने में

जनवाणी ब्यूरो |

लखनऊ: सीएम योगी की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति की उनके ही अफसर धज्जियां उड़ा रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण हापुड़ के जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) कृष्ण कुमार गुप्ता की नियुक्ति का है। वह डीजीसी क्रिमिनल का पद प्राप्त करने के पात्र नहीं थे। फिर भी सच्चाई छिपाते हुए विधि विरूद्ध उक्त पद को प्राप्त किया।

डीएम हापुड़ की 6 जून को न्याय विभाग को भेजी गई जांच रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। साथ ही गुप्ता को तत्काल प्रभाव से पद से हटाने और उनके खिलाफ वैधानिक कार्यवाही करने के लिए भी कहा गया है। साफ है कि डीजीसी क्रिमिनल के पद पर नियुक्ति के समय अफसरों द्वारा कागज पर ही खानापू​र्ति करके गुप्ता को पद का लाभ दिया गया।

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दरअसल, कृष्ण कुमार गुप्ता ने जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) पद के लिए 28 जुलाई 2017 को आवेदन किया गया था। उसी आधार पर 16 जनवरी 2019 को उनकी हापुड़ के डीजीसी क्रिमिनल के पद पर नियुक्ति की गई। आरोप है कि उनके द्वारा जानबूझकर पद प्राप्त करने के लिए अपने आवेदन पत्र में विधि व्यवसाय से होने वाली आय के संबंध में गलत जानकारी प्रस्तुत की।

जांच रिपोर्ट के अनुसार, वास्तविकता यह है कि जिस समय कृष्णकांत गुप्ता द्वारा डीजीसी क्रिमिनल के पद के लिए आवेदन किया गया था। उस समय वह राधिका पैलेसे स्थित स्वर्ग आश्रम रोड हापुड़ फर्म के सोल प्रोपराइटर के रूप में अपना निजी व्यवसाय कर रहे थे और उसी आधार पर उन्होंने यूनियन बैंक आफ इंडिया में अपना एकाउंट भी खोल रखा है। उनके आयकर रिटर्न में भी इसकी पुष्टि हुई है।

राधिक पैलेस में अपने व्यवसाय के संबंध में गुप्ता द्वारा नगर पालिका परिषद हापुड़ से लाइसेंस प्राप्त किया गया और समय समय पर वह लाइसेंस रिन्यू भी कराते रहें। कृष्ण कुमार गुप्ता द्वारा वर्ष 2009—10, 2011, 2013, 2014—15, 2015—16, 2016, 2016—17 के आयकर रिटर्न में अपनी आय राधिक पैलेस से होने वाली शुल्क मुनाफे को दर्शाया है ना कि विधि व्‍यवसाय से होने वाली आय को। इससे स्पष्ट है कि जिस समय उन्होंने डीजीसी क्रिमिनल पद के लिए आवेदन किया था। उस समय उनकी विधि व्यवसाय से कोई आय नहीं हो रही थी।

प्रकरण से साफ है कि डीजीसी क्रिमिनल जैसे संवदेनशील पद पर नियुक्ति में लापरवाही बरती गई। यदि आवेदन के समय ही संबंधित प्रपत्रों की गहनता से जांच हुई होती तो अपात्र व्यक्ति को उस कुर्सी पर बैठने से रोका जा सकता था। इस प्रकरण में जानकारी के लिए न्याय विभाग के संबंधित अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि फाइल मुख्यमंत्री कार्यालय भेज दी गई है।

क्या है नियम?

नियमों के अनुसार, जिला शासकीय अधिवक्ता के पद पर आवेदन करने वाले व्यक्ति का फौजदारी न्यायालय में दस वर्ष का वकालत का अनुभव और पिछले तीन वर्षों तक विधि से होने वाली आय का विवरण आवेदन पत्र के साथ प्रस्तुत करना था।

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