Thursday, April 25, 2024
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निगम में अब कम्युनिटी किचन पर उठी अंगुली

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  • लाखों का हुआ था घोटाला मामले की जांच कर रहे सिटी मजिस्ट्रेट

रामबोल तोमर |

मेरठ: नगर निगम में कम्युनिटी किचन पर किये गए खर्च को लेकर अंगुली उठ रही है। आरोप है कि कम्युनिटी किचन के नाम पर नगर निगम ने लाखों का घोटाला कर दिया। इस मामले की सिटी मजिस्ट्रेट जांच कर रहे हैं।

सिटी मजिस्ट्रेट ने क्लर्क अनीश को बार-बार बयान देने के लिए बुलाया था, मगर वह बयान देने नहीं पहुंचा। 14.5 लाख रुपये की धनराशि कम्युनिटी किचन पर नगर निगम ने खर्च की है, जो कर्मचारियों के एक दिन के वेतन से एकत्र की गई थी।

इस धनराशि को लेकर निगम अधिकारियों ने कम्युनिटी किचन संचालित करने के लिए कमिश्नर या फिर डीएम से अनुमति नहीं दी। सीधे इसके लिए नगरायुक्त ने स्वीकृति दे दी थी।

दरअसल, लॉकडाउन के दौरान नगर निगम ने कर्मचारियों का एक दिन का वेतन काट लिया था। तब कहा था कि यह एक दिन का वेतन मुख्यमंत्री कोष में भेजा जाएगा, लेकिन नगर निगम ने मुख्यमंत्री कोर्स में धनराशि भेजने की बजाय कम्युनिटी किचन में खर्च कर दिया। इसके लिए किसी की अनुमति नहीं ली गई।

नगर निगम ने अपने स्तर से ही यह निर्णय ले लिया। कम्युनिटी किचन में 14.5 लाख रुपये खर्च होना दर्शाया गया। इसकी शिकायत शासन स्तर पर की गई, जहां से पूरे प्रकरण की जांच करने के आदेश डीएम को दिये गए थे। डीएम ने इसकी जांच सिटी मजिस्ट्रेट को सौंप दी थी।

वर्तमान में इसकी जांच सिटी मजिस्ट्रेट कर रहे हैं। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जब वेतन से एकत्र की गई 14.5 लाख की धनराशि नगर निगम के सरकारी खाते में जमा थी तो फिर उस धनराशि को निकालने के लिए सेल्फ का चेक क्लर्क अनीश को क्यों दिया? अनीश बैंक में गए और 14.5 लाख रुपये निकालकर ले आये? इसके सबूत भी शिकायतकर्ता बीके गुप्ता ने सिटी मजिस्ट्रेट को सुपुर्द किये हैं।

शिकायतकर्ता ने कहा है कि लॉकडाउन में कर्मचारियों के एक दिन का वेतन काटने के बाद मुख्यमंत्री कोष में क्यों जमा नहीं कराया? यदि कम्युनिटी किचन चलाना था तो उसकी कमिश्नर स्तर के अधिकारी से अनमुति क्यों नहीं ली? फिर कितने पैकेट खाने के बांटे गए, उसकी डोर-टू डोर जांच कराई जाए।

इन्हीं बिन्दुओं पर सिटी मजिस्ट्रेट जांच कर रहे हैं। जांच में कम्युनिटी किचन को लेकर शिकंजा कसा जा सकता है। इस पूरे सिस्टम के लिए जिम्मेदार कौन हैं? इतनी बड़ी धनराशि नगरायुक्त डा. अरविन्द चौरसिया ने अपने स्तर से अवमुक्त कैसे कर दी? इसके लिए कमिश्नर स्तर से अनुमति क्यों नहीं ली गई? इस पर नगर निगम के कर्मचारी भी आपत्ति कर चुके हैं। आटा किस रेट में खरीदा गया? सब्जी किस रेट में खरीदी गई?

सूत्रों का दावा है कि प्रशासन के किचन में आटा कम मूल्य पर खरीदा गया तो फिर नगर निगम अधिकारियों ने आटा मंहगा क्यों खरीदा? इस पर भी सवाल उठ रहे हैं। कम्युनिटी किचन के नाम पर भी बड़ा घोटाला हुआ है। इसको लेकर प्रशासनिक स्तर से जांच सटीक होती है तो इसमें भी कार्रवाई तय है।

निगम एफसी ने अपने ही कर्मचारी को सेल्फ का चेक कैसे दे दिया? इसका टेंडर क्यों नहीं किया गया? दस लाख से ऊपर का टेंडर होना अनिवार्य है। कर्मचारियों का पैसा था तो इसमें भी घपलेबाजी कर दी गई? इसको लेकर कर्मचारियों ने भी आपत्ति की है तथा पूरे प्रकरण में संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।

प्रशासन के किचन पर भी सवाल

प्रशासन के कम्युनिटी किचन तो पहले से ही घोटाले के आरोपों में घिरा हैं। आरटीआई कार्यकर्ता मनोज चौधरी ने प्रशासन से सूचना मांगी थी कि कितने पैकेट हर रोज खाना बांटा गया? टेंडर कितने का किया था? कितने घरों में हर रोज भोजन पहुंचाया गया? इस तरह से तमाम सवाल सूचना के अधिकार में प्रशासन से किये तथा उनका जवाब मांगा गया था, मगर प्रशासन ने मनोज चौधरी को कोई जवाब नहीं दिया है।

सीडीओ व एडीएम वित्त के स्तर से जवाब नहीं देने पर अब मनोज चौधरी राज्य सूचना आयोग में गुहार लगायेंगे, ताकि इसकी पूरी डिटेल मिल सके। बता दें, प्रशासन के कम्युनिटी किचन के पहले टेंडर को लेकर बवाल हो गया था। भाजपा नेताओं ने उस टेंडर पर आपत्ति कर दी थी, जिसकी शिकायत लखनऊ तक पहुंच गई थी। बीच में ही प्रशासन ने टेंडर निरस्त कर पुन: टेंडर छोड़ा गया था।

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