Friday, April 19, 2024
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चुकंदर की खेती कैसे करें

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KHETIBADI


चुकंदर की खेती मीठी सब्जी के रूप में की जाती है। इसके पत्तों का भी सब्जी बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके फल जमीन के अंदर लगते हैं। चुकंदर के अंदर कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं। जो मनुष्य के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी होते हैं। चुकंदर के खाने से शरीर में खून की कमी पूरी हो जाती है। चुकंदर को सब्जी, सलाद और जूस के रूप में खाया जाता है।

इसका पौधा जमीन के बहार पत्तियों के झुण्ड में बनता है। इसकी खेती के लिए सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है। इसके पौधे को अधिक बारिश की जरूरत नही होती। गर्मीं के मौसम में इसकी खेती नही की जा सकती। क्योंकि तेज गर्मी होने पर इसके फल खराब हो जाते हैं। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।

उपयुक्त मिट्टी

चुकंदर की खेती के लिए उचित जीवाश्म युक्त उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है। जलभराव वाली कठोर या बंजर भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती। क्योंकि जल भराव की वजह से पौधों के फल खराब होकर सड़ जाते हैं। इसकी खेती के लिए भूमि का पी।एच। मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।

जलवायु और तापमान

चुकंदर की खेती के लिए ठंडी जलवायु वाले प्रदेश उपयुक्त होते हैं। सर्दी में मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं। लेकिन अधिक तेज ठंड और पाला इसकी पैदावार को प्रभावित करता है। इसकी खेती के लिए बारिश की ज्यादा जरूरत नही होती। और अधिक गर्म मौसम भी इसकी फसल को नुक्सान पहुँचाता है।

इसके पौधों को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है। उसके बाद विकास करने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान उपयुक्त होता है। तापमान के बढ़ने पर इसके फलों में मीठेपन की मात्रा में वृद्धि देखने को मिलती है। और फल भी जल्दी खराब हो जाते हैं।

उन्नत किस्में

चुकंदर की बहुत सारी किस्में मौजूद हैं। जिन्हें उनके उत्पादन की दृष्टि से तैयार किया गया है।

रोमनस्काया : चुकंदर की इस किस्म को हिमाचल प्रदेश में अधिक उगाया जाता है। इस किस्म के पौधे रोपाई के 140 से 150 दिन बाद पककर उखाड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 150 से 200 क्विंटल के आसपास पाया जाता है। इस किस्म को सिर्फ पर्वतीय क्षेत्रों में ही उगाया जा सकता है।

मिश्र की क्रॉस्बी : इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 65 दिन बाद ही पककर खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 200 क्विंटलके आसपास पाया जाता है। इस किस्म के फल पर हलके रेशे अधिक दिखाई देते है। इसके गुदे का रंग गहरा पर्पल लाल होता है।
क्रिमसन ग्लोब : इस किस्म को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है। इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 300 क्विंटल के आसपास पाया जाता है। लेकिन फसल की और भी अच्छी तरह से देखभाल कर इसके उत्पादन को और बढ़ाया जा सकता है। इसके फलों का रंग बाहर और अंदर से हल्का लाल होता है। जिनको पककर तैयार होने में 70 दिन से ज्यादा का टाइम लगता है।

अर्ली वंडर : इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के बाद लगभग दो से ढाई महीने में पककर तैयार हो जाते हैं। जिनके पत्तों का रंग हरा दिखाई देता है। इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 150 से 200 क्विंटल तक पाया जाता है। इसके फलों के गुदे का रंग हल्का लाल दिखाई देता है। जिसमें चीनी की मात्रा कम पाई जाती है।

चुकंदर की इस किस्म को अधिक उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया है। इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग तीन महीने बाद पककर खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 250 क्विंटल से ज्यादा पाया जाता है। इस किस्म की पत्तियों के डंठल हल्के लाल रंग के दिखाई देता हैं।

खेत की तैयारी

चुकंदर की खेती के लिए भुरभुरी और नर्म भूमि की आवश्यकता होती है। इसके लिए खेत की शुरूआत में मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर खुला छोड़ दें। उसके कुछ दिन बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद उचित मात्रा में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें। खाद को मिट्टी मिलाने के लिए कल्टीवेटर से खेत की दो से तीन तिरछी जुताई करें।

खेत की जुताई करने के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें। पलेव करने के तीन से चार दिन बाद जब जमीन उपर से सूख जाए, तब रोटावेटर के माध्यम से खेत की सघन जुताई करें। खेत की जुताई करने के बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना दें। समतल बनाने के बाद अगर चुकंदर की खेती मेड पर करना चहाते है तो उचित दूरी रखते हुए खेत में मेड का निर्माण कर दें।

बीज रोपण का तरीका और टाइम

बीज रोपण के दौरान ध्यान रहे की चुकंदर की उन्नत किस्म का बीज खरीदकर ही रोपाई करें। चुकंदर की एक हेक्टेयर खेत के लिए उन्नत किस्म का 6 से 8 किलो बीज काफी होता है। इसके बीजों को खेत में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए। ताकि पौधे को शुरूआत में किसी तरह के रोग का खतरा ना हो। इसके बीजों को खेत में रोपाई से पहले लगभग 8 घंटे तक पानी में भिगोकर रखा जाता है। ताकि बीजों का अंकुरण जल्दी से हो सके। इसके बीजों की रोपाई करते वक्त कभी भी सम्पूर्ण खेत में एक साथ ना लगाए। सम्पूर्ण खेत में इसके बीजों की रोपाई 10 दिन के अंतराल में दो से तीन बार में करनी चाहिए। इससे पैदावार अलग अलग समय पर मिलती है।

पौधों की सिंचाई

चुकंदर के पौधों को अंकुरित होने के लिए नमी को जरूरत होती है। इसके लिए शुरूआत में बीज रोपाई के तुरंत बाद खेत में पानी दे देना चाहिए। इसके बीज के अंकुरित हो जाने के बाद पौधों में पानी की मात्रा कम कर देनी चाहिए। पौधों के अंकुरित होने के बाद जब पत्तियां बड़ी हो जाए, तब पौधे को पानी कम मात्रा में देना चाहिए। क्योंकि इसकी पत्तियां जमीन पर गिरी होती है। और ज्यादा पानी देने पर पानी अधिक समय तक खेत में भरा रहता है। जिससे पत्तियां खराब हो जाती है। इस परिस्थिति से बचने के लिए पौधों की 10 दिन के अंतराल में हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए।

उर्वरक की मात्रा

चुकंदर के पौधे को उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है। क्योंकि इसके पौधे भूमि की ऊपरी सतह में रहकर अपना विकास करते है। जिस कारण इनकी जड़ें ज्यादा गहराई से खनिज पदार्थों को ग्रहण नही कर पाती। इसकी खेती के लिए शुरूआत में 15 गाडी पुरानी गोबर की खाद खेत की जुताई के वक्त खेत में देनी चाहिए। जबकि रासायनिक उर्वरकों में नाइट्रोजन 40 किलो, फास्फोरस 60 किलो और पोटाश 80 किलो की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में छिड़क दें। इसके अलावा जब पौधा अंकुरित हो जाए तब पौधों की तीसरी सिंचाई के वक्त 20 किलो नाइट्रोजन सिंचाई के साथ पौधों को दें।

खरपतवार नियंत्रण

चुकंदर के पौधों में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीके से किया जाता है। रासायनिक तरीके से इसकी खेती में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए पेंडीमेथिलीन की उचित मात्रा का छिडकाव बीज रोपण के तुरंत बाद कर दें। इससे खेत में खरपतवार जन्म नही लेती और अगर जन्म लेती भी हैं तो उनकी मात्रा बहुत ही कम होती है। जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की दो से तीन नीलाई गुड़ाई की जाती है। इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपण के 15 से 20 दिन बाद कर देनी चाहिए। उसके बाद बाकी की गुड़ाई 20 दिन के अंतराल में करनी चाहिए। इसकी गुड़ाई के दौरान पौधों का खास ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि इसके फल भूमि की ऊपरी सतह पर ही होते हैं।

चुकंदर में लगने वाले रोग और रोकथाम

चुकंदर के पौधों में काफी कम ही रोग पाए जाते हैं। लेकिन कुछ रोग हैं, जो इसके पौधे और पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं। जिनकी उचित वक्त रहते देखभाल करना जरूरी होता है।

चुकंदर के पौधे में लीफ स्पॉट रोग पत्तियों पर देखने को मिलता है। इस रोग के लगने पर शुरूआत में पत्तियों पर भूरे गोल या कोणीय धब्बे बनने लगते हैं। जिनका प्रभाव बढ़ने पर पतियों में छिद्र दिखाई देने लगते हैं। और कुछ दिन बाद पत्तियां सूखकर गिरने लगती है। जिससे इसके फलों की वृद्धि रुक जाती है। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एग्रीमाइसीन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।

कीटों का आक्रमण

चुकंदर के पौधे पर कीटों का आक्रमण काफी ज्यादा देखने को मिलता है। इन कीटों के लार्वा से जन्म लेने वाले कीड़े लगातार पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं। जिससे पौधों की पैदावार कम होती है। क्योंकि पत्तियों के खाने पर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नही हो पाने से पौधे का विकास रुक जाता है। पौधों को कीटों के आक्रमण से बचाने के लिए मैलाथियान या एंडोसल्फान की उचित मात्रा का उपयोग करना चाहिए।

जड़ गलन

जड़ गलन का रोग अधिक जल भराव की वजह से ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग के लगने पर पौधा शुरूआत में मुरझाने लगता है। जिसके कुछ दिनों बाद पौधा सम्पूर्ण रूप से सूख जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए शुरूआत में बीज की रोपाई के दौरान उन्हें बाविस्टिन से उपचारित कर लेना चाहिए। जबकि खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर डाइथेन एम 45 की उचित मात्रा का पौधों पर छिडकाव करना चाहिए।


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