हिंदी दिवस पर विशेष
- तहसील नजीबाबाद के राजपुर नवादा गांव मेंं जन्में थे हिन्दी गजल नायक दुष्यंत
- दुष्यंत आशावादी कवि थे और लोगों को भी आशावादी बनने की प्रेरणा देते थे
जनवाणी ब्यूरो |
नजीबाबाद: ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा, मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा..जैसे बेबाक शेर व हिन्दी गजलों के नायक दुष्यंत कुमार एक ऐसे कवि व गजल सम्राट रहे हैं जिन्होंने हिन्दी गजलों से हिन्दी कविता का रचनात्मक मिजाज व मौसम बदल दिया।
उनके संबंध में कमलेश्वर ने अपने ये विचार रखते हुए आभास करा दिया था कि दुष्यंत कुमार की कविताएं व गजलें आम आदमी के दर्द, सामाजिक व राजनैतिक व्यवस्थाओं पर प्रहार करने वाली रही है। समाजिक, राजनैतिक व अपने आस पास होने वाली घटनाएं दुष्यंत कुमार की कविताओं व गजलों में देखने को मिलती है।
हिन्दी गजलों के नायक दुष्यंत कुमार का जन्म तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में एक जमींदार परिवार में एक सितम्बर 1933 को श्रीमती राम किशोरी देवी एवंचौधरी भगवत सहाय के यहां हुआ।
दुष्यंत कुमार प्रारम्भिक शिक्षा गांव की पाठशाला में हुई। 1948 में नहटौर से हाईस्कूल, 1950 में चंदौसी, मुरादाबाद के एसएम कॉलेज से इंटरमीडिएट करते हुए वे उच्च श्क्षिा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय चले गए।
दुष्यंत कुमार ने आकाशवाणी दिल्ली के हिन्दी वार्ता-विभाग में स्क्रिप्ट राइटर के रूप में कार्य किया। 1960 में भोपाल पहुंचे। जहां उन्होंने मध्य प्रदेश के संस्कृत संचालनालय के अन्तर्गत भाषा-विभाग के सहायक संचालक पद पर नियुक्ति पायी। हिन्दी गजल के प्रेणता स्व. दुष्यंत कुमार ने अपनी गजलों से समाज को नई दिशा दी।
दुष्यंत यर्थाथ को जीते थे। उनकी प्रमुख गजलों के शेर देखे तो, सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए।….ये वो पंक्तियां है जो गजल नायक दुष्यंत कुमार की गंभीर सोच, समाज व आम आदमी की वेदना व संवेदना की कसौटी पर खरा उतरती है।
दुष्यंत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने अपने समय के सामाजिक एवं राजनीतिक विषयों को अपनी गजल का विषय बनाया। उन्होंने गजल के स्वरूप को छेड़ा नहीं बल्कि उसे ज्यों का त्यों अपना लिया। भाषा और विषय पर उनका जादू चल निकला।
दुष्यंत ने जिन विषयों को चुना उन्हें भरपूर अभिव्यक्ति दी। दुष्यंत की गजल के अशआर सामाजिक या राजनीतिक दस्तावेज ही बनकर नहीं रहे बल्कि गजल की कलात्मकता का उदाहरण बन गये जैसे : गूँगे निकल पड़े हैं, जबाँ की तलाश में, सरकार के खिलाफ ये साजिश तो देखिए।
उनकी अपील है कि उन्हें हम पसंद करें, चाकू से पसलियों की गुजारिश तो देखिए। स्पष्ट हो जाता है कि उक्त दोनों शेर तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में कहे गए हैं।
इनको देखें: वह आदमी नहीं है, मुकम्मल बयान है,माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है। फिसले जो इस जगह तो लुढकते चले गए ,हमको पता नहीं था कि इतना ढलान है। सार रूप में यही कहा जा सकता है कि दुष्यंत कुमार ने हिन्दी साहित्य में जो काम किया है अभी उसका उचित मूल्यांकन नहीं हो पाया है।
दुष्यंत कुमार और उनके साहित्य पर शोध की आवश्यक्ता है। उनकी जन्म भूमि राजपुर नवादा में उनके मकान की खस्ता हालत पर भी शासन व प्रशासन का कोई विशेष ध्यान नहीं है।
पैतृक मकान स्मारक बनाने को देने को तैयार दुष्यंत के पुत्र
तहसील नजीबाबाद में उनके परिवार के सबसे निकट रहे आलोक त्यागी, मनोज त्यागी, अतुल त्यागी, अमन त्यागी का कहना है कि दुष्यंत जी ने अपनी साहित्य साधना की खुशबू जो पूरे देश में फैलाई है वह समाज व नई पीढ़ी के लिए एक नई उर्जा स्त्रोत बनी है। नई पीढ़ी तक भी उनके संबंध में जानकारी फैले इसलिए शासन प्रशासन को दुष्यंत जी की जन्म भूमि को विकसित करना चाहिए जब दुष्यंत कुमार के पुत्र आलोक त्यागी व आगरा में रह रहे अपूर्व त्यागी उस हवेली को शासन को स्मारक बनाने के लिए देने को तैयार हैं।
स्व. दुष्यंत त्यागी स्मृतिद्वार के पुर्ननिर्माण कार्य शुरू
देश विदेश में अपनी रचनाओं के लिए पहचान रखने वाले हिंदी गजल के प्रणेता दुष्यंत कुमार त्यागी की स्मृति में पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना के बाद तहसील नजीबाबाद के ग्राम मंडावली क्षेत्र के ग्राम मिजार्पुर सैद-मौज्जमपुर मार्ग पर एक वर्ष पूर्व ध्वस्त हुए दुष्यंत त्यागी द्वार का पुर्ननिर्माण कार्य भी क्षेत्रीय नागरिकों की मांग के कारण काफी मशक्कत से प्रारम्भ हुआ है।
हिन्दी को और मजबूत करना है
हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में दुष्यंत कुमार पर लिखा गया यह लेख सार्थक है. धन्यवाद जनवाणी और अजय जैन साहब.