Sunday, May 18, 2025
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तीन दशकों में एक बार गरजा हाथी

  • बिना हवा नहीं चली साइकिल, फूल हमेशा मुरझाता रहा, अधिकांश निर्दलीय उम्मीदवार ही चुने गए अध्यक्ष
  • 2000 में पार्टी सिंबल पर सिर्फ एक बार बसपा पार्टी के उम्मीदवार ने अध्यक्ष पद पर दर्ज की जीत
  • निकाय चुनाव में कांग्रेस ने पहली बार उतारा अपना उम्मीदवार

जनवाणी संवाददाता |

खरखौदा: नगर पंचायत चुनाव में राजनीतिक दलों व निर्दलीय उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह मिलने के बाद चुनाव प्रचार जोरों पर चल रहा है। सभी पार्टी व निर्दलीय उम्मीदवार अपनी अपनी जीत के लिए जनता के बीच जाकर वोट मांगने रहे हैं और अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। वहीं नगर पंचायत में तीन दशकों के बीच की बात करें तो नगर पंचायत के चुनाव में केवल एक बार बसपा पार्टी का उम्मीदवार अपनी जीत दर्ज कराने में सफल हो पाया। बाकी अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों को जनता ने नकार दिया था और वे जीत के आसपास तक भी नहीं पहुंच सके।

कस्बे की जनता ने 1989 के चुनाव से अब तक हुए चुनावों में पार्टी उम्मीदवारों को नकारते हुए ज्यादा तर निर्दलीय उम्मीदवार पर अपना भरोसा जताते हुए निर्दलीय उम्मीदवार को नगर पंचायत अध्यक्ष बनाया है। 1989 में खरखौदा नगर पंचायत के अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में शौराज त्यागी निर्दलीय अध्यक्ष चुने गए, 1995 में शौराज त्यागी की पत्नी शारदा त्यागी निर्दलीय अध्यक्ष चुनी गई, 2000 में बसपा से पहली बार विष्णु त्यागी ने अपने प्रतिद्वंद्वी शौराज त्यागी निर्दलीय को हराकर अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की।

हालांकि उन्हें कार्यकाल पूरा होने से एक साल पहले पद छोड़ना पड़ा। बसपा प्रत्याशी विष्णु त्यागी के जीतने से पूर्व विपक्षी द्वारा कागजों में खामियां बताकर कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसके बाद शिकायत के आधार पर सुनवाई के चलते करीब डेढ़ साल बाद विष्णु त्यागी को पद से मुक्त होना पड़ा। इनका कार्य काल एक दिसंबर 2000 से 22 जुलाई 2002 तक रहा। इसके बाद कोर्ट के आदेश पर शौराज त्यागी को अध्यक्ष का चार्ज दिया गया हालांकि यह चार्ज केवल पांच दिन ही रहा।

उसके बाद 2004 में हुए उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार लल्लू सिंह त्यागी अध्यक्ष चुने गए। एक साल बाद 2006 में हुए चुनाव में लल्लू सिंह त्यागी की भाभी लोकेश त्यागी निर्दलीय अध्यक्ष चुनी गई। इसके बाद 2012 में ओबीसी के लिए सीट रिजर्व हो गई और अर्चना प्रजापति निर्दलीय अध्यक्ष चुनी गई और सपा सरकार के साथ मिलकर विकास कार्य कराए। भाजपा के संजय प्रजापति करीब 1400 मत प्राप्त कर सके।

वहीं 2017 के चुनाव में सीट एससी के लिए रिजर्व रही और रमेश चंद्र ठेकेदार निर्दलीय अध्यक्ष चुने गए और बाद में भाजपा में शामिल हो गए। वहीं जानकारों के अनुसार भाजपा को करीब 500, सपा को करीब 300, बसपा को करीब 1100 मत प्राप्त कर सके। वहीं इससे पूर्व हुए चुनावों में भी भाजपा, सपा, बसपा उम्मीदवार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके बाद में रमेश चंद्र भाजपा में शामिल हो गए। इस बार नगर पंचायत अध्यक्ष अनारक्षित है।

जिसमें पांच उम्मीदवार पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीं तीन उम्मीदवार निर्दलीय के रुप में जनता के बीच मैदान में हैं। वहीं कांग्रेस ने पहली बार नगर पंचायत चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारा है, अब इस चुनाव में देखना होगा जनता इस बार भी किसी निर्दलीय पर भरोसा करती है या फिर बदलाव कर किसी पार्टी उम्मीदवार पर अपना भरोसा जताती है।

प्रत्याशियों के वादों की ‘कढ़ाई’ में दावों का गोता लगा रहे मतदाता

सरूरपुर: नगर निकाय चुनाव में प्रचार शुरू होने के साथ कस्बों में सियासी पारा लगातार बढ़ने लगा है। सियासी पारा बढ़ने के साथ वोटरों को लुभाने का सिलसिला भी अब चुनाव में जोर-शोर से शुरू कर दिया गया है। दावत के बहाने वोटरों को लुभाने के लिए कई प्रत्याशियों ने जहां रिसेप्शन और अन्य बड़े प्रोग्राम करके पूरे कस्बों की दावत का न्योता भिजवाया है। जिसके जरिए वोटरों को लुभाया जा सके तो वहीं दूसरी ओर चुनाव के जोर पकड़ने के साथ ही अब विधानसभा क्षेत्र के चारों कस्बों में शराब और कबाब का दौर भी चढ़ने लगा है।

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मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों हर्रा, खिवाई और सिवालखास में जहां मिठाई से लेकर बिरयानी तक वोटरों को लुभाने के लिए परोसी जा रही है तो वही हिंदू बाहुल्य कस्बे करनावल में शराब का बोलबाला भी बढ़ने लगा है। शाम ढलते ही कस्बे में मतदाताओं को लुभाने के लिए कुछ प्रत्याशियों द्वारा लुकाछिपी करके शराब का वितरण कर उन्हें मदहोश किया जा रहा है। शराब के नशे में कस्बे के कुछ लोग सुबह से लेकर शाम तक मदहोश भी दिखाई दे रहे हैं। मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रत्याशियों द्वारा जमकर शराब और मिष्ठान के साथ कबाब का वितरण भी हुआ है।

कस्बे के एक प्रत्याशी द्वारा हिंदू बाहुल्य कस्बा होने के बाद भी कबाब का वितरण हुआ है। वहीं, दूसरी ओर मुस्लिम बाहुल्य कस्बों में मतदाताओं को मिठाई और कबाब के दौर में गोता लगाने के लिए खुला आमंत्रित किया गया है। मतदाताओं को लुभाने के लिए यहां प्रत्याशी ऐड़ी चोटी का जोर लगाने के साथ कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। दावत के दौर के साथ ही यहां मतदाताओं को लुभाने के लिए जोर आजमाइश भी शुरू हो चुकी है। सोशल मीडिया पर तेजी से ऐसे वायरल मैसेज भी ट्रेंड में आ रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मिठाई के आॅर्डर देने आदि के लिए भी कुछ लोग सक्रिय हो चुके हैं। कस्बे के कई प्रत्याशी द्वारा कढ़ाई और भट्टी चढ़ाकर मतदाताओं को उसमें गोता लगाने का प्रयास किया जा रहा है।

भाजपा-सपा दोनों पार्टियों को अपनों से ही ‘खतरा’

नगर निकाय चुनाव में भाजपा, सपा पार्टी की उनकी ही पार्टी के धुरंधर उन दावेदारों ने परेशानी बढ़ा दी है जो टिकट पाने की फेहरिस्त में थे। दोनों पार्टियों को अपने ही बागियों और भितरघातियों से खतरा बना हुआ है। चुनाव में टिकट पाने के लिए ऐड़ी चोटी का जो और धनबल के बूते पर टिकट पाने की जुगत में लगे निराशा मिलने वाले सपा, भाजपा के बागियों ने इन दोनों पार्टियों की परेशानी को अब बढ़ा कर रख दिया है। भाजपा और सपा दोनों ही पार्टी में टिकट पाने वालों की लंबी फेहरिस्त थी।

टिकट पाने की चाह रखने वाले इन पार्टी के कार्यकर्ताओं ने घोषित प्रत्याशियों की अब टांग खींच रहे हैं। कस्बा खिवाई में जहां भाजपा प्रत्याशी सतीश कुमार की मुश्किलें उनकी पार्टी के ही बागी लोकेंद्र सिंह ने बढ़ाकर रख दी हैं। यहां लोकेंद्र सिंह के अलावा कृष्णपाल सिंह और डा. राकेश गिरी भी टिकट पाने की लाइन में थे, लेकिन पार्टी ने सतीश चेयरमैन का टिकट कर दिया। जिसके बाद लोकेंद्र सिंह ने बगावत कर चुनावी बिगुल फूंक रखा है। लोकेंद्र सिंह के चुनाव में जहां कुछ पार्टी कार्यकर्ता खुलकर हैं तो कुछ चुपचाप भी चुनाव लड़ाने में लगे हुए हैं।

यहां भाजपा प्रत्याशी की धड़कन बढ़ी हुई हैं और उसे अपनी ही पार्टी के बागी और कार्यकर्ताओं से खतरा है। यही हाल मुस्लिम बाहुल्य कस्बा खिवाई, हर्रा और सिवालखास का है। खिवाई में जहां गठबंधन से टिकट पाने की लाइन में जहां शमशाद प्रधान मौलवी मुस्तफा और तस्लीम मारूफ टिकट पाने की लाइन में थे, लेकिन यहां गठबंधन पार्टी ने मारूफ की पत्नी को टिकट दिया है। जिसके बाद यहां गठबंधन में दम भरने वाले और निर्दलीय चुनाव लड़कर ताल ठोकने प्रत्याशियों ने गठबंधन प्रत्याशी की भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

इसके अलावा खिवाई में भाजपा प्रत्याशी मीरा चौहान की अपने ही पार्टी के भी बागी बने अनिल राघव ने मुश्किलें बढ़ा रखी है। वह अपनी मां स्नेहलता को भाजपा के बागी बनकर चुनाव लड़ा रहे हैं। हालांकि उन्होंने खुलकर भाजपा की मुखालफत तो छोड़ दी है, लेकिन अब कुछ कार्यकर्ता और एक गुट के लोग उन्हें चुनाव लड़ने के लिए चुपचाप लगे हुए हैं। यहां भी भाजपा प्रत्याशी को अपनों से ही खतरा बना हुआ।

इसी तरह हर्रा और सिवालखास में भी गठबंधन और भाजपा से टिकट पाने के लिए कई लोग लाइन में थे। वही स्थिति है भी है जहां सपा भाजपा के भेलिए अंतरकलह और गुटबाजी से जूझ रहे हैं। फिलहाल निकाय निकाय चुनाव में सपा और भाजपा दोनों पार्टियों को अपने ही भितरघातियों और पार्टी के उन कार्यकर्ताओं से खतरा बना हुआ जिन्होंने पार्टी को खून से सींचने और लंबे समय तक रहकर सेवा की है, लेकिन अब यही पार्टी के लिए खतरा भी बने हुए हैं।

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