- रमजान की 20 तारीख को सूरज डूबने से कुछ देर पहले शुरू होता है मसनून ऐतकाफ
जनवाणी संवाददाता |
देवबंद: मुकद्दस महीने रमजान में ऐतकाफ (एकांतवास) खास अहमियत रखता है। यह रमजान के महीने में भरपूर नेकियां कमाने का एक जरीया है। रमजान के आखिरी अशरे (आखिरी दस दिन) के लिए नीयत करके खुद को मस्जिद में रोक लेना मसनून ऐतकाफ है।
दारुल उलूम वक्फ के शेखुल हदीस मौलाना अहमद खिजर शाह मसूदी ने मसनून ऐतकाफ पर रोशनी डालते हुए कहा कि रमजान माह के आखिरी अशरे (दस दिनों) में किया जाने वाला ऐतकाफ सुन्नत मोअक्कदा अलल किफाया है।
ऐतकाफ इसलिए होता है ताकि बंदा सारी दुनिया से अपने आपको अलग कर एकांतवास में पूरी एकाग्रता के साथ अल्लाह की इबादत में लग जाए। ऐतकाफ कम समय में ज्यादा से ज्यादा नेकियां कमाने को जरिया है। रमजान की 20 तारीख को सूरज डूबने से कुछ देर पहले मसनून ऐतकाफ का वक्त शुरू हो जाता है और ईद का चांद नजर आने तक रहता है।
महिलाएं भी कर सकती है ऐतकाफ
मौलाना अहमद खिजर ने बताया कि पुरुषों की तरह महिलाएं भी ऐतकाफ कर सकती है। औरतें अपने घरों में ऐतकाफ के लिए वह स्थान चुन लें जहां नमाजें पढ़ी जाती हो। कोई ऐसी जगह न हो तो घर के किसी भी कोने में बैठ जाएं। औरतों को यह ख्याल रखना चाहिए कि ऐतकाफ की तारीखों में उसे अय्याम (पीरियड) न हो।
यदि ऐतकाफ के दौरान अय्याम शुरू हो गए तो ऐतकाफ छोड़ देना चाहिए। विवाहित महिलाओं को चाहिए कि वे अपने पति की इजाजत के बिना ऐतकाफ न करें। क्योंकि पति की इजाजत के बिना ऐतकाफ करना जायज नहीं है।
ऐतकाफ टूटा तो कजा लाजमी
मौलाना अहमद खिजर ने बताया कि मसनून ऐतकाफ शुरू करने के बाद टूट जाए तो उसकी कजा (बाद में ऐतकाफ करना) जरूरी है। ऐतकाफ चाहे गलती से टूटा हो या जानबूझ कर, मजबूरी में टूटा हो या फिर बिना मजबूरी के। सभी में कजा जरूरी है। कजा ऐतकाफ के साथ भी रोजा रखना जरूरी है।