- जनवाणी ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था सदर दाल मंडी में कराए गए पैरोकार का अवैध निर्माण
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: बर्खास्ती आदेशों के खिलाफ दायर की गयी कैंट बोर्ड के सीईई अनुज सिंह की याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। उन्हें कहा गया है कि पहले जीओसी इन चीफ मध्य कमान के यहां अर्जी दायर करें। दरअसल बर्खास्तगी के बोर्ड के निर्णय के बाद आगे की कार्रवाई के लिए जीओसी इन चीफ को अवगत कराया गया।
बोर्ड के इस फैसले को प्रथम दृष्टया जीओसी इन चीफ ही चेलेंज कर सकते हैं। नियमानुसार सबसे जीओसी के यहां ही अपील की जानी चाहिए थी। यदि वहां से अर्जी खारिज होती है उसके बाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है। हाईकोर्ट के इस फैसले को अनुज सिंह को बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है।
करीब साल भर पहले हनुमान चौक बॉम्बे बाजार स्थित पैलेस सिनेमा के संबंध में आए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मद्देनजर विभागीय कार्रवाई के चलते कैंट बोर्ड की बैठक में अनुज सिंह की सेवाएं समाप्त कर दी गयी थीं। बोर्ड के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी।
फिलहाल हाईकोर्ट ने यह कह कर सुनवाई को खत्म कर दिया कि पहले इस मामले में जीओसी इन चीफ के समक्ष अनुज सिंह अपना पक्ष रखें। वहां यदि सुनवाई नहीं होती तो उसके बाद ही हाईकोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है।
सीईओ सख्त पैरोकार सस्पेंड
अवैध निर्माण के खिलाफ सीईओ प्रसाद चव्हाण ने जाने से पहले एक बड़ी कार्रवाई की है। बोर्ड के पैरोकार राजीव शर्मा को सस्पेंड कर दिया है। सीईओ की कार्रवाई से कैंट बोर्ड में हड़कंप मचा हुआ है। राजीव शर्मा के खिलाफ इस कार्रवाई को लेकर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। पूछा जा रहा है कि कार्रवाई के पीछे अवैध निर्माण या फिर राजीव की गिनती एसीईओ के खेमे में होना है।
सदर दाल मंडी निवासी राजीव पर आरोप है कि जितने आवासीय निर्माण की अनुमति उन्हें दी गयी थी उससे ज्यादा निर्माण कर लिया। वार्ड सदस्य से तनातनी भी एक कारण माना जा रहा है। इसके अलावा आवासीय के बजाए व्यवसायिक निर्माण किया गया है। निलंबन की कार्रवाई से पूर्व सीईओ ने उन्हें कोर्ट की पैरवी से हटाकर सैनिटेशन में भेज दिया था। तभी से उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई की आशंका जतायी जा रही थी। इसको लेकर जनवाणी ने भी प्रमुखता से खबर प्रकाशित की थी।
सेलरी बैंक में भेजे जाने की मांग
कैंट बोर्ड के सफाई कर्मचारियों ने सीईओ प्रसाद चव्हाण से उनकी सेलरी सीधे पंजाब नेशनल बैंक में भेजे जाने की मांग की है। कर्मचारियों का कहना है कि जाते-जाते यदि इस आश्य के आदेश सीईओ ने कर दिए तो सफाई कर्मचारियों के कल्याण के लिए उनका यह बड़ा व स्वागत योग्य निर्णय होगा। इसको लेकर कर्मचारियों की एक ओर से सीईओ को ज्ञापन भी दिया गया है।
नहीं कर रहे कॉल रिसीव
इस संबंध में कैंट प्रशासन तथा पीड़ित पक्ष के पैरोकारों से बातचीत का काफी प्रयास किया, लेकिन मामला बेहद संवेदनशील होने की वजह से कोई भी पक्ष प्रतिक्रिया देने को तैयार नहीं। जानते हुए भी तमाम पक्ष अनजान या पेपरों के आने की प्रतिक्षा की बात कह रहे हैं।
लंबी है बॉम्बे मॉल के गुनाहकारों की फेहरिस्त…
गैर कानूनी तरीके से बनाए गए बॉम्बे मॉल को जमींदोज करने का हाईकोर्ट का हुकुनामा और उसकी हुकुम उदूली करने वालों की फेहरिस्त काफी लंबी है। इसके लिए केवल कैंट बोर्ड के अफसर ही कुसूरवार नहीं बल्कि अपने साइन से मॉल को जमींदोज कर दिए जाने का दावा करने वाली हाईकोर्ट को भेजी गयी चिट्ठी पर साइन करने वाले भी कम कुसूरवार नहीं। लंबी चली सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने यथास्थिति के आदेशों के बाद किए गए निर्माण को ध्वस्त कर परिसर को सील किए जाने के आदेश दिए थे।
ध्वस्तीकरण के बाद कैंट प्रशासन के सीईई, एईई व जेई के संयुक्त हस्ताक्षर से जो रिपोर्ट कोर्ट को भेजी गयी उसमें मॉल को सील किए जाने की बात कही गयी है। जबकि वहां गुलजार दुकानें व बाजार कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है। कोर्ट की इस चिट्ठी के अलावा एक दूसरी चिट्ठी 21 फरवरी 2007 को भेजी गयी। इस चिट्ठी पर बोर्ड के एक सदस्य, तत्कालीन पुलिस क्षेत्राधिकारी, अपर नगर मजिस्ट्रेट प्रथम, इंस्पेक्टर सदर बाजार व थाना सदर बाजार के एसएसआई, कैंट बोर्ड के सीईई व अन्य के अलावा रेवेन्यू सेक्शन हेड समेत तमाम ने बतौर गवाह हस्ताक्षर किए थे।
चिट्ठी में कहा गया है कि दुकानदारों का सामान बाहर निकलवाकर मॉल को सील कर दिया गया। जबकि सील के दावे की पोल वहां खुली दुकानें खोल रही हैं। सवाल पूछा जा रहा है कि मामला हाईकोर्ट में होने के बावजूद रियायत देने का कोर्ट का गुनाहगार कौन बनता है।