Friday, December 1, 2023
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गाजर की उन्नत किस्मों से हागी अधिक पैदावार

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जल वाली सब्जियों में गाजर एक प्रमुख फसल है। यह पोषण की दृष्टि से विटामिन ‘ए’ का प्रचूर स्रोत होने के साथ ही साथ यह किसानों की आय में वृद्धि करने का एक उत्तम स्रोत है। जिन किसानों ने अपने खेतों में गाजर की अगेती फसल लगाई हुई है या सर्दियों के दिनों में गाजर की फसल लेना चाहते हैं, उनके लिए उन्नत किस्मों के साथ उर्वरक प्रबंधन एंव अन्य सस्य क्रियाओं के बारे में विस्तार से बता रहें हैं पूसा संस्थान के विशेषज्ञ डॉ. एके सुरेजा….

जिन किसानों ने एक महीने पहले गाजर की अगेती फसल करीब-करीब 15 अगस्त के आस-पास लगाई हैं। उन किसानों को निम्न दो बातों का ध्यान रखना है।

इन दिनों बारिश का मौसम बना हुआ हैं अगर बारिश ज्यादा हो रही है या फिर खेतों में पानी भर गया हैं, तो इस स्थिति में पानी के निकास की व्यवस्था करें। दूसरा जब फसल एक महीने की हो जाये तो निराई-गुड़ाई करके करीब 40-50 किलो नाइट्रोजन मिट्टी में मिलाकर मिट्टी चढ़ा दें। अभी सर्दी का मौसम आ रहा हैं। गाजर प्रमुख रूप से सर्दियों के मौसम में ही लगाई जाती हैं। गाजर की फसल लेने के लिए किसान अभी से तैयारियां करने शुरू कर दें।

गाजर की प्रमुख किस्मों को दो श्रेणी में बांटा गया है।

उष्णवर्गीय किस्में
इस किस्म की श्रेणी में कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार हैं-पूसा रूधिरा, पूसा वसुधा, पूसा अशिता, पूसा कुल्फी।

पूसा वसुधा : पूसा वसुधा एक उष्णवर्गीय श्रेणी की फसल हैं। पूसा वसुधा करीब 85-90 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती है। यह किस्म 35 टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्रदान करती है।

पूसा रूधिरा : पूसा रूधिरा एक उष्णवर्गीय श्रेणी की फसल है। पूसा रूधिरा करीब 90 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती है। यह किस्म 25-30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्रदान करती है।

पूसा अशिता : पूसा अशिता एक उष्णवर्गीय श्रेणी की फसल है। पूसा अशिता एक काली रंग की किस्म है। गहरे बैंगनी रंग जिसको काला गाजर भी कहा जाता हैं। पूसा अशिता करीब 100-110 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 20-25 टन प्रति हेक्टेयर है।

पूसा कुल्फी : पूसा अशिता एक उष्णवर्गीय श्रेणी की फसल है। पूसा अशिता एक पीले रंग की किस्म हैं। पूसा अशिता करीब 90- 00 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 25 टन प्रति हेक्टेयर है।
ये जितनी उष्णवर्गीय श्रेणी की किस्म हैं, इनको किसान उत्तर भारतीय मैदानी क्षेत्रों में सितंबर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक बुवाई कर सकते हैं।

शीतोष्णवर्गीय किस्में
इस किस्म की श्रेणी में कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार हैं-पूसा नेनटीस, पूसा जमदन्गि और पूसा नयन ज्योति।
पूसा नेनटीस व पूसा जमदग्नि : पूसा नेनटीस व पूसा जमदन्गि यह दोनों ही किस्में शीतोष्णवर्गीय श्रेणी की फसल हैं। पूसा नेनटीस व पूसा जमदग्नि करीब 100-110 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं। यह दोनों ही किस्में 10-12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्रदान करती हैं।

पूसा नयनज्योति : पूसा नयनज्योति एक शीतोष्णवर्गीय श्रेणी की फसल है। पूसा नयनज्योति एक संकर फसल किस्म है। यह करीब 100 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती है। यह किस्म 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्रदान करती है।

गाजर की बुवाई से पहले करें ये उपाय

-सर्दियों के मौसम में जो जड़ों वाली सब्जियां लगाई जाती हैं, उनमें गाजर भी शामिल है। इन फसलों की खेती करने से पहले इसकी मिट्टी का चयन बहुत जरूरी हैं। इसके लिए बलुई मिट्टी व दोमट मिट्टी होनी चाहिए।
-मिट्टी की अच्छे से जुताई कर दें तो फासल्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा, नीम की खली 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से म्टिी में अच्छी तरह से मिला दें। इसके साथ ही खेत में मेड़ बना दे। इन मे़ड़ों के बीच अंतराल 45 सेमी. का होना चाहिए और मेड़ों पर लाइन से बुवाई करते हैं।
-बुवाई करने से पहले खेत की सिंचाई कर लें, ताकि मिट्टी में नमी बने रहे। बुवाई करने के तुरंत बाद खरपतवार नाशी पेंडीमेथिलीन को 3 लीटर प्रति 1000 लीटर पानी में मिलाकर पूरे खेत में स्प्रे करें।
-अगर बीज उपचारित नहीं तो उसको आप फफूंदी नाशी कैप्टान या थिरम (2.5-3 ग्राम पाउडर को लेकर 1 किलोग्रम बीज में मिलाकर बिजाई (बुवाई) करें।


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