Wednesday, April 30, 2025
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गेंदा की खेती को नुकसान पहुंचाते हैं मृदा जनित रोग

KHETIBADI


गेंदा की खेती में कई तरह के मृदा जनित रोग नुकसान पहुंचाते हैं, अगर समय रहते इसका प्रबंधन न किया जाए तो काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। गेंदा नर्सरी से लेकर फूलों की तुड़ाई तक कई प्रकार के रोगजनकों जैसे कवक, जीवाणु और विषाणु जनित रोगों से ग्रसित होता हैं। इसकी वजह से फूलों की उपज में होने वाली कमी रोग के प्रकार, पौधों की संक्रमित होने की अवस्था और वातावरणीय कारकों पर निर्भर करता हैं। गेंदा पूरी तरह से बीमारियों से प्रतिरक्षित नहीं है, और उनके सामने आने वाली कुछ सबसे चुनौतीपूर्ण समस्याएं मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियां हैं। यदि प्रभावी ढंग से प्रबंधित नहीं किया गया तो ये बीमारियां गेंदे की वृद्धि और फूलों के उत्पादन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं।

गेंदा के सामान्य मृदा जनित रोग

आर्द्र पतन या आर्द्र गलन नर्सरी में गेंदा के नवजात पौधों को आर्द्र पतन बहुत ज्यादा प्रभावित करता है, जो एक मृदा जनित कवक रोग है, जो पिथियम प्रजाति, फाइटोफ्थोरा प्रजाति और राइजोक्टोनिया प्रजाति द्वारा होता है। इस रोग के लक्षण दो प्रकार के होते हैं। पहला लक्षण पौधे के दिखाई देने के पहले बीज सड़न और पौध सड़न के रूप में दिखाई देता है, जबकि दूसरा लक्षण पौधों के उगने के बाद दिखाई देता है। रोगी पौधा आधार भाग अर्थात जमीन के ठीक ऊपर से सड़ जाता है और जमीन पर गिर जाता है। इस रोग के कारण लगभग 20 से 25 प्रतिशत तक नवजात पौधे प्रभावित होते हैं। कभी कभी इस रोग का संक्रमण पौधशाला में ही हो जाता है।

जड़ सड़न
जड़ सड़न गेंदे को प्रभावित करने वाली सबसे व्यापक मिट्टी जनित बीमारियों में से एक है। यह राइजोक्टोनिया, पाइथियम और फाइटोफ्थोरा सहित विभिन्न मिट्टी-जनित कवक के कारण होता है। संक्रमित पौधों की वृद्धि रुक जाती है, पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और मुरझा जाती हैं।

फ्यूजेरियम विल्ट
गेंदा में उकठा रोग मृदा जनित रोग है जो फ्युजेरियम आॅक्सिस्पोरम प्रजाति केलिस्टेफी नामक कवक द्वारा होता है, जो मैरीगोल्ड की संवहनी प्रणाली को प्रभावित करता है, जिससे पौधा मुरझा जाता है, पीला पड़ जाता है और आखिर में मर जाता है। सामान्य तौर पर रोग के लक्षण बुवाई के तीन सप्ताह बाद दिखाई देता है। रोगी पौधों की पत्तियां धीरे-धीरे नीचे से पीली पड़ने लगती हैं, पौधों की ऊपरी भाग मुरझाने लगती हैं और आखिर में पौधा पीला होकर सूख जाता है। इस रोग के लिए जिम्मेदार कवक की वृद्धि के लिए तापक्रम 25-30 डिग्री सेल्सियस के मध्य उपयुक्त होता है। साउदर्न ब्लाइट
साउदर्न ब्लाइट, स्क्लेरोटियम रॉल्फसी कवक के कारण होता है, जो गेंदे के तने के आधार पर सफेद, रोएंदार विकास के रूप में प्रकट होता है। इससे पौधा मुरझा जाता है और मर जाता है। वर्टिसिलियम विल्ट वर्टिसिलियम विल्ट मिट्टी-जनित कवक वर्टिसिलियम डाहलिया के कारण होता है। संक्रमित गेंदे की पत्तियां पीली पड़कर मुरझाने लगती हैं। यह रोग विशेष रूप से ठंडी और नम स्थितियों में समस्याग्रस्त होता है।

फाइटोफ्थोरा
जड़ सड़न फाइटोफ्थोरा जड़ सड़न के लिए जिम्मेदार है। लक्षणों में जड़ों पर भूरे रंग के घाव, मुरझाना और खराब विकास शामिल है। यह एक मृदा जनित रोग है जो फाइटोफ्थोरा प्रजाति और पिथियम प्रजाति से होता है । इस रोग से नवजात गेंदा के पौधे अधिक प्रभावित होते हैं। नए पौधों में रोग का संक्रमण होने पर पौधे जमीन की सतह से गिर जाते हैं, जबकि पुराने पौधों में संक्रमण होने पर उनकी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं तथा सभी पौधे सूख जाते हैं। रोगी पौधों के मुख्य तने का आधार भाग पर सड़ जाते हैं, जिस पर सफेद कवकीय वृद्धि स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। इस रोग के कारण लगभग 15 से 20 प्रतिशत तक फसल उत्पादन में कमी हो सकती हैं।

गेंदा में मृदा जनित रोगों का प्रबंधन
-गेंदे में मिट्टी से होने वाली बीमारियों के प्रभावी प्रबंधन में निवारक उपायों और कृषि कार्यों का संयोजन शामिल है।
-अधिकांश गेंदे के पौधे के मृदा जनित रोग कवक बीजाणुओं के कारण होते हैं, इसलिए सही मात्रा में पानी देना जरूरी है।
-संक्रमित पौधों के सभी हिस्से को एकत्र करके जला देने से मृदा जनित रोगों के प्रसार को सीमित करने में मदद मिलती है।
-खूब अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट को मिट्टी में मिलाना चाहिए।
-यदि आपके पास भारी मिट्टी है, तो मिट्टी को ढीला करने के लिए रेत या अन्य कोकोपीट डालें।
-ऐसे कंटेनरों का उपयोग करें जिसमें से अच्छी तरह से पानी निकल सके।
-गेंदा लगाने से पहले रोगजनक मुक्त पॉटिंग मिक्स का उपयोग करें या अपनी मिट्टी को जीवाणु रहित करें।
-यदि आपके पास अतीत में एक संक्रमित पौधा था, तो किसी भी नई पौधे की प्रजाति को स्थापित करने से पहले कंटेनरों को साफ करने के लिए ब्लीच का उपयोग करें।
-अनेक अखाद्य खलियों (कार्बनिक मृदा सुधारकों) जैसे करंज, नीम, महुआ, सरसों और अरण्ड आदि के प्रयोग द्वारा मृदा जनित रोगों की व्यापकता कम हो जाती हैं।
-बुवाई के लिए हमेशा स्वस्थ बीजों का चुनाव करें। फसलों की बुवाई के समय में परिवर्तन करके रोग की उग्रता को कम किया जा सकता हैं।
-निरंतर एक ही नर्सरी (पौधशाला) में लंबे समय तक एक ही फसल या एक ही फसल की एक ही किस्म न उगायें।
-संतुलित उर्वरकों का उपयोग करें।
-सिंचाई का पानी खेत में अधिक समय तक जमा न होने दें। गहरी जुताई करने के बाद मृदा का सौर ऊर्जीकरण (सॉइल सोलराइजेशन) करें। इसके लिये 105-120 गेज के पारदर्शी पॉलीथिन को नर्सरी बेड के ऊपर फैलाकर 5 से 6 सप्ताह के लिए छोड़ दें।
-मृदा को ढंकने के पहले सिंचाई कर नम कर लें। नम मृदा में रोगजनकों की सुसुप्त अवस्थाएं हो जाती हैं, जिससे उच्च तापमान का प्रभाव उनके विनाश के लिए आसान हो जाता है। रोग ग्रसित पौधों को उखाड़कर जला दें या मिट्टी में गाड़ दें।
-नर्सरी बेड की मिट्टी का रोगाणुनाशन करने की एक सस्ती विधि यह है कि पशुओं अथवा फसलों के अवशेष की एक से डेढ़ फीट मोटी ढेर लगाकर उसे जला दें।

गेंदे के पौधों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए
-खेत का चयन जल जमाव वाली मिट्टी को रोकने के लिए एक अच्छी जल निकासी वाली रोपण साइट चुनें।
-मिट्टी के दूषित होने के खतरे को कम करने के लिए उन क्षेत्रों में गेंदे के पौधे लगाने से बचें जहां हाल ही में अन्य अतिसंवेदनशील पौधे उग आए हैं।
-मिट्टी की तैयारी मिट्टी में खाद जैसे कार्बनिक पदार्थ मिलाकर मिट्टी की जल निकासी में सुधार करें। उचित पीएच स्तर (लगभग 6.0 से 7.0) सुनिश्चित करने के लिए मिट्टी का परीक्षण करें, क्योंकि कुछ मिट्टी-जनित रोगजनक अम्लीय या क्षारीय स्थितियों में पनपते हैं।
-बीजों को बोने से पूर्व ट्राइकोडर्मा विरिडी से उपचारित कर लें। इसके लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी के 5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें अथवा स्युडोमोनास फ्लोरेसेंस का 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मृदा में अनुप्रयोग करने से पद-गलन रोग के प्रकोप को काफी हद तक कम किया जा सकता हैं।
-मृदा सौरीकरण सोलराइजेशन में गर्मी के महीनों में मिट्टी का तापमान बढ़ाने और मिट्टी से पैदा होने वाले रोगजनकों को मारने के लिए मिट्टी को पारदर्शी प्लास्टिक से ढंकना शामिल है। रोग नियंत्रण के लिए यह एक प्रभावी तरीका हो सकता है।

जल प्रबंधन
अत्यधिक पानी देने से बचें, क्योंकि अत्यधिक गीली मिट्टी जड़ रोगों के विकास को बढ़ावा दे सकती है। पौधों के आधार तक सीधे पानी पहुंचाने और पत्तियों पर मिट्टी के छींटे कम करने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करें।


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