- बचा लो विरासत: बादशाह जहांगीर और बेगम नूरजहां ने अपने पीर की याद में बनवाई थी यह इमारत
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: वैसे तो मेरठ न जाने कितनी ही शाही इमारतों और धरोहरों का गवाह है, लेकिन इन शाही विरासतों की बेकद्री कर पुरातत्व विभाग एक प्रकार से अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहा है। मेरठ की कुुछ शाही इमारतें तो ऐसी हैं कि यदि उन पर पुरातत्व विभाग की नजर ए इनायत हो जाए तो इनका वजूद फिर से जाग जाए। इन्दिरा चौक के पास स्थित हजरत शाहपीर साहब के मकबरे की इमारत भी इन्ही इमारतों में से एक है।
जब नूरजहां मेरठ आर्इं
शाहपीर साहब की 13वीं पीढ़ी के पीरजादा सैयद अहमद अली बताते हैं कि जब नूरजहां अपने शौहर जहांगीर की आदतों से परेशान हो गई थीं, तो वो उसी दौर में जहांगीर को लेकर मेरठ आई थीं। वो यहां आकर शेख पीर (शाहपीर साहब) से मिलीं और अपनी सारी परेशानी उनके सामने रखी। नूरजहां की सारी परेशानी सुन शाहपीर साहब ने उन्हें एक ठीकरी (पत्थर व मिट्टी की एक ढेलेनुमा वस्तु) दी, जिस पर लिखा था ‘पिया की खिदमत कर, पिया तेरा हो’।
यह ठीकरी लेकर नूरजहां वापस चली गर्इं। कुछ समय बाद जहांगीर में परिवर्तन देख नूरजहां फिर मेरठ आर्इं और शाहपीर साहब का शुक्रिया अदा किया। इसके बाद नूरजहां और जहांगीर दोनों शाहपीर साहब के मुरीद हो गए। दोनों ने उन्हें अपना पीर (धार्मिक गुरु) मान लिया। शाहपीर साहब को पीर मानने के बाद नूरजहां और जहांगीर फिर मेरठ आए और यहां सुर्ख लाल पत्थरों से विशाल मकबरे का निर्माण शुरू कराया।
आज भी अधूरा है मकबरे का निर्माण
इसी बीच जब जहांगीर दरिया ए झेलम (लाहौर) की ओर बादशाह अकबर के सिपहसलार महावत खां के पास जा रहे थे तब शाहपीर साहब ने जहांगीर को यह कहते हुए वहां जाने से रोका था कि ‘जहांगीर वहां मत जाओ, वहां से बगावत की बू आती है’। जहांगीर ने शाहपीर साहब की बात को अनसुना कर दिया। इस पर शाहपीर साहब ने जलाल में आकर अपने मकबरे का निर्माण कार्य बीच में ही रुकवा दिया था।
बारिश में भी नहीं भीगता था मकबरा
पीरजादा सैयद अहमद अली बताते हैं कि अब से लगभग 40 साल पहले जब बारिशें हुआ करती थीं तब मकबरा तो भीगता था, लेकिन मकबरे के बीचों बीच बनी शाहपीर साहब की मुख्य कब्र पर बारिश के पानी की एक बूंद तक नहीं गिरती थी, जबकि कब्र के ऊपर कोई छत भी नहीं है। हालांकि पीरजादा अहमद अली यह भी कहते हैं कि जैसे-जैसे लोगों का अकीदा (विश्वास) कम होता चला गया तो यह कारनामा भी धीरे-धीरे खत्म हो गया।
शाहपीर साहब के नाम से आज भी पूरे मोहल्ले का वजूद है
शाहपीर साहब के नाम से आज भी पूरा मोहल्ला वजूद में है। इसी मोहल्ले में एक बड़ी मस्जिद भी है जो कि खुद शाहपीर साहब ने बनवाई थी। बताया जाता है कि इस मस्जिद की तामीर के लिए खुद बादशाह जहांगीर ने उस समय के चार हजार रुपये नजर किए थे।
40 फीट नीचे है असली कब्र
शाहपीर साहब के मकबरे में उनकी जिस कब्र की जियारत अकीदतमंद करते हैं वो दरअसल एक डमी कब्र है। शाहपीर साहब की असली कब्र इस डमी कब्र के ठीक नीचे 40 फीट गहराई में है। शाहपीर साहब के खानदान के कई अन्य लोगों की कब्रें भी इसी मकबरा परिसर में मौजूद हैं।
अंग्रेज शासक ने तामीर कराया था शाहपीर गेट
पीरजादा सैयद अहमद अली बताते हैं कि अंग्रेज शासक हीलियस ने जब शाहपीर साहब की हिस्ट्री पढ़ी तो वो उनसे बेहद मुतास्सिर (प्रभावित) हुआ और उनकी याद में 1892 में शाहपीर गेट का निर्माण कराया जो आज भी मौजूद है।