Thursday, June 8, 2023
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भावों की भाषा

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एक महात्मा ने अपने शिष्यों से पूछा, हम गुस्से में एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों है? एक शिष्य ने कहा, क्योंकि इससे हमारा क्रोध निकल जाता है और हम शांत हो जाते हैं। लेकिन, जब दूसरा व्यक्ति आपके ठीक बगल में है तो चिल्लाना क्यों? क्या हम उससे नम्रता से बात नहीं कर सकते? महात्मा ने फिर प्रश्न किया।

शिष्यों ने उन्हें और भी कई उत्तर दिए लेकिन किसी ने भी गुरु को संतुष्ट नहीं किया। अंत में उन्होंने समझाया, जब दो लोग एक-दूसरे पर गुस्सा होते हैं तो उनके दिल बहुत दूर हो जाते हैं और एक दूसरे को सुनने में असक्षम होने के कारण वे चिल्लाते हैं।

वे जितने अधिक क्रोधित होंगे, दूरी उतनी अधिक होगी और उन्हें उतना ही चिल्लाना पड़ेगा, क्योंकि दूरी हमारे मुंह और कानों की नहीं होती बल्कि हृदय एक दूसरे से दूर हो जाते है। जब दो लोगों में प्रेम होता है उनके दिल बहुत करीब होते हैं। उनके बीच की दूरी बहुत कम होती है, वे नम्रता से धीरे-धीरे बात करते हैं।

जब वे एक दूसरे से और भी ज्यादा प्यार करते हैं, बोलते नहीं बस फुसफुसाते हैं और फिर ऐसा भी समय आता है जब वे कानाफूसी भी नही करते बस आंखों से ही भावों को समझ जाते हैं, न कुछ बोलना पड़ता है, न ही चिल्लाना पड़ता है। ईश्वर भी हमसे इसी भाषा और लहजे में बात करना चाहता है , पर हम भक्ति में भी शोर करते हैं।

उसने अपने शिष्यों की ओर देखा और कहा, तो जब तुम ईश्वर से बहस या शिकायत करो तो दिलों को दूर मत होने दो, ऐसे शब्द मत कहो जो तुम्हे ईश्वर से और दूर कर दें, वरना एक दिन ऐसा आएगा जब दूरी इतनी बड़ी होगी कि तुम्हें लौटने का रास्ता नहीं मिलेगा। तुम नितांत अकेले रह जाओगे। ईश्वर भावों की भाषा जनता है।

प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


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