Friday, April 19, 2024
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बच्चों को कुपोषित बनाती मोबाइल संस्कृति

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BALWANI


बच्चा नासमझ है, अपरिपक्व है, अपना भला बुरा नहीं जानता। उसे नहीं पता होता की उसे एक ऐसे उपकरण का आदी बनाया जा रहा है, जो उसके शारीरिक विकास में एक बड़ा अवरोधक है, जो उसकी शारीरिक शक्ति को धीरे-धीरे क्षीण करता जा रहा है। बच्चे को व्यस्त करने के इस सरल और शॉर्ट कट तरीके के परिणाम बच्चे और उसके परिवार के सदस्यों के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं।

पिछले दिनों एक रेस्टोरेंट में परिवार के साथ खाना खाने के लिए जाना हुआ। हमारी टेबल के सामने की टेबल पर भी एक परिवार भोजन करने आया हुआ था। उनके परिवार में एक छोटी बच्ची भी थी, जिसकी आयु शायद 5 या 6 वर्ष की रही होगी। जैसे ही वेटर ने उन्हें भोजन परोसा, उस बच्ची की मां ने अपना मोबाइल उस बच्ची को देते हुए कहा, ‘इससे खेल लो।’

जो बच्ची अभी तक चंचलता और जिज्ञासा से इधर-उधर चीजों को उठा उठा कर देख रही थी, बिल्कुल शांत हो गई और कुछ ही देर में वो अपने आस पास के माहौल से बेखबर हो मोबाइल में पूरी तरह डूब गई। परिवार के अन्य सभी सदस्य स्वादिष्ट भोजन का आनंद उठाने में व्यस्त हो गए। बच्ची की मां को बीच बीच में जब ख्याल आता तो रोटी का निवाला बच्ची के मुंह तक ले जाती, परंतु बच्ची की तवज्जो न पाकर वह रोटी का निवाला वापिस आकर मां के मुंह में समा जाता। परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य का आंकलन करने से महसूस हुआ की बच्ची किसी कुपोषण का शिकार लग रही थी, जबकि बच्ची की मां अतिपोषण का शिकार लग रही थी। अर्थात ओबेसिटी (मोटापे) से ग्रस्त थी।

यह एक ऐसी मोबाइल सभ्यता और संस्कृति का उदघोष है, जिसमें मोबाइल से निकलने वाली विकिरण से सेहत पर कोई कुप्रभाव पड़े या न पड़े पर मोबाइल का आकर्षण ही परिवार के बच्चो की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहा है। परिवार के वयस्क, समझदार सदस्य ही इस संस्कृति को उन्नत करने में लगे हुए हैं। आज माता-पिता में संयम और धैर्य का अभाव पूरी तरह से घर कर चुका है। बच्चों की परवरिश में भी अभिवावक सरल और शॉर्ट कट ढूंढते हैं।

ऊपर वर्णित घटनाक्रम में ऐसा ही कुछ हुआ था। माता पिता बिना किसी हस्तक्षेप के शांति से रेस्टोरेंट के स्वादिष्ट भोजन का आनंद उठाना चाहते थे। ऐसे में छोटी बच्ची को प्यार और संयम से खाना कौन खिलाए? अगर बच्ची को खाना खिलाने बैठेंगे तो अपना भोजन ठंडा और बेस्वाद हो जाता। ऐसे में बच्ची की माता जी ने बच्ची को व्यस्त करने का सबसे सरल तरीका निकाला और अपना मोबाइल बच्चे को गेम खेलने के लिए पकड़ा दिया।

आजकल यह एक चलन बन चुका है। मां ब्यूटी पार्लर गई है, बच्चा परेशान कर रहा है, उसे अपना मोबाइल देकर व्यस्त कर दिया जाता है, घर पर कोई काम है और बच्चा पिता को परेशान कर रहा है या बाहर खेलने की जिद कर रहा है तो पिता भी अपना मोबाइल निकाल कर देता है और बच्चे को व्यस्त कर देता है। बिना यह जाने कि बच्चे के शरीर और मस्तिष्क पर इसका क्या प्रभाव होगा।

बच्चा नासमझ है, अपरिपक्व है, अपना भला बुरा नहीं जानता। उसे नहीं पता होता की उसे एक ऐसे उपकरण का आदी बनाया जा रहा है, जो उसके शारीरिक विकास में एक बड़ा अवरोधक है, जो उसकी शारीरिक शक्ति को धीरे-धीरे क्षीण करता जा रहा है। बच्चे को व्यस्त करने के इस सरल और शॉर्ट कट तरीके के परिणाम बच्चे और उसके परिवार के सदस्यों के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं।

मोबाइल का अत्यधिक प्रयोग जब वयस्कों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है तो बच्चों की संवेदनशील कोशिकाओं पर, रेडिएशन का क्या प्रभाव पड़ता होगा, अनुमान लगाया जा सकता है। बच्चा निरंतर मोबाइल पर व्यस्त रहता है, शारीरिक खेलों से दूर होता जाता है, मोबाइल व्यवस्ता के कारण उसे भोजन एक दैनिक औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं लगता अर्थात शारीरिक आवश्यकता से कम भोजन करना उसकी आदत बनती जा रही है। सूर्य के प्रकाश से दूर होना, बाहर की ताजी हवा से संपर्क खत्म हो जाना और भोजन के प्रति उदासीनता बच्चे के स्वास्थ्य को बरबाद करने के लिए काफी है।

आधुनिक माता-पिता ने एक ऐसी संस्कृति को विकसित कर दिया है, जिस में बच्चों और अभिवावकों के मध्य दूरिया दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं। पारिवारिक ताना-बाना छिन्न भिन्न होने के कगार पर खड़ा है। अगर हम अब भी नही संभले तो समय दूर नहीं जब बच्चे, बड़े होने से पहले ही अभिवावक को भूल बैठेंगे। बच्चों को मोबाइल की नहीं, माता पिता के प्यार और समय की जरूरत है। बच्चा चाहता है कि उसके अभिवावक उसे सुनें, उससे बातचीत करें, उसके साथ पार्क में खेलें, डाइनिंग टेबल पर उसके साथ भोजन करें, सारा दिन की स्कूल की गतिविधियों, जो बच्चा बताना चाहता है, उसे धैर्य से सुनेें।

अगर अभिवावक आज अपने बच्चे के लिए समय निकालेंगे, तो कल वे अपने अभिवावकों के लिए समय निकालेंगे, वरना आज बच्चा अकेलेपन का शिकार हो रहा है, कल आप अकेले रह जाएंगे। बच्चों को मोबाइल संस्कार और संस्कृति देने के स्थान पर पारिवारिक संस्कार और संस्कृति देने की ज्यादा आवश्यकता है।

राजेंद्र्र कुमार शर्मा


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