Tuesday, July 8, 2025
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पूर्वोत्तर में शरणार्थियों का संकट

Samvad 51


PANKAJ CHATURVEDIपिछले दिनों म्यांमार में सुरक्षा बलों और भूमिगत संगठन अरकान आर्मी के बीच खुनी संघर्ष हुआ और उसके बाद फिर से सैंकड़ों शरणार्थी भारत की सीमा में आने लगे हैं। इस बार आगमन लावंग्तालाई जिले में वारांग और उसके आसपास के गाँवों से हुआ है। इसी साल सात सितम्बर को ही राज्य के गृह मंत्री लाल्चामालियान्न ने विधान सभा में स्वीकार किया कि राज्य में इस समय 30,401 म्यांमार के शरणार्थी हैं और इनमें से 30,177 लोगों को कार्ड भी जारी कर दिए गए हैं। इन लोगों को मदद के लिए राज्य सरकार ने आपदा प्रबंधन विभाग के मद से तीन करोड़ रुपए भी जारी किए हैं। सैनिक शासन को डेढ़ साल हो गए हैं और इसके साथ ही वहां से आए हजारों शरणार्थियों को ले कर दिक्कतें बढती जा रही हैं। पड़ोसी देश म्यांमार में उपजे राजनैतिक संकट के चलते हमारे देश में हजारो लोग अभी आम लोगों के रहम पर अस्थाई शिविरों में रह रहे हैं। यह तो सभी जानते हैं कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास किसी भी विदेशी को ‘शरणार्थी’ का दर्जा देने की कोई शक्ति नहीं है। यही नहीं, भारत ने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। हमारे यहां शरणार्थी बन कर रह रहे इन लोगों में कई तो वहां की पुलिस और अन्य सरकारी सेवाओं के लोग हैं, जिन्होंने सैनिक तख्ता पलट का सरेआम विरोध किया था और अब जब म्यांमार की सेना हर विरोधी को गोली मारने पर उतारू है सो उन्हें अपनी जान बचने को सबसे मुफीद जगह भारत ही दिखाई दी। लेकिन यह कड़वा सच है कि पूर्वोत्तर भारत में म्यांमार से शरणार्थियों का संकट बढ़ रहा है।

उधर असम में म्यांमार की अवैध सुपारी की तस्करी बढ़ गई है और इलाके में सक्रिय अलगाववादी समूह म्यांमार के रास्ते चीन से इमदाद पाने में इन शरणार्थियों की आड़ ले रहे हैं। यह बात भी उजागर है कि पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय कई अलगाववादी संगठनों के शिविर और ठिकाने म्यांमार बने ही हैं और चीन के रास्ते उन्हें इमदाद मिलती है। ऐसे में असली शरणार्थी और संदिग्ध में विभेद का कोई तंत्र विकसित हो नहीं पाया है और यह अब देश की सुरक्षा का मुद्दा भी है। गौर करना होगा कि इस साल 16 सितंबर तक, राज्य पुलिस ने 22.93 किलोग्राम हेरोइन और 101.26 किलोग्राम मेथामफेटामाइन की गोलियों सहित विभिन्न ड्रग्स बरामद किए हैं, जिनकी कुल कीमत 39 करोड़ है।

भारत के लिए यह विकट दुविधा की स्थिति है कि उसी म्यांमार से आए रोहिंग्या के खिलाफ देश भर में अभियान और माहौल बनाया जा रहा है, लेकिन अब जो शरणार्थी आ रहे हैं वे गैर मुस्लिम ही हैं। यहीÑ नहीं रोहिंगया के खिलाफ हिंसक अभियान चलाने वाले बौद्ध संगठन अब म्यांमार फौज के समर्थक बन गए हैं। म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय को रोहिंग्या के खिलाफ नफरत का जहर भरने वाला अशीन विराथु अब उस सेना का समर्थन कर रहा है, जो निर्वाचित आंग सांग सूकी को गिरफ्तार कर लोकतंत्र को समाप्त कर चुकी है।

म्यांमार से सैकड़ों बागी पुलिसवाले और दूसरे सुरक्षाकर्मी चोरी-छिपे मिजोरम में आना जारी हैं। सितंबर-22 में ही 589 नए लोग आए हैं, जिनमें से 210 को हमान्ग्बुच्चा, 115 को जोजछुआ, 127 को लाइतालांग और शेष को इमजाउतंग में टिकाया गया है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग उन लोगों को सुरक्षित निकालने और इस तरफ पानाह देने की काम में लगा है। ये लोग सीमा के घने जंगलों को अपने निजी वाहनों- कार, मोटरसाइकिल और यहां तक कि पैदल चलकर पार कर रहे हैं। भारत में उनके रुकने, भोजन स्वास्थ्य आदि के लिए कई संगठन काम कर रहे हैं।

मिजोरम के लावंग्तालाई जिले में ही कोई 5909 शरणार्थी हैं। चंपई और सियाहा जिलों में इनकी बड़ी संख्या है। विदित हो भारत और म्यांमार के बीच कोई 1,643 किलोमीटर की सीमा हैं, जिनमें मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड का बड़ा हिस्सा है। मिजोरम के छह जिलों की कोई 510 किलोमीटर सीमा म्यांमार से लगती है और अधिकांश खुली हुई है।
म्यांमार से आ रहे शरणार्थियों का यह जत्था केंद्र सरकार के लिए दुविधा बना हुआ है। असल में केंद्र सरकार नहीं चाहती कि म्यांमार से कोई भी शरणार्थी यहां आ कर बसे, क्योंकि रोहिंग्या के मामले में केंद्र का स्पष्ट नजरिया है, लेकिन यदि इन नए आगंतुकों का स्वागत किया जाता है तो धार्मिक आधार पर शरणार्थियों से दुभात करने की आरोप से दुनिया में भारत की किरकिरी हो सकती है। उधर, मिजोरम और मणिपुर में बड़े-बड़े प्रदर्शन हुए, जिनमें शरणार्थियों को सुरक्षित स्थान देने और पनाह देने का समर्थन किया गया। यहां जानना जरूरी है कि मिजोरम की कई जनजातियों और सीमाई इलाके के बड़े चिन समुदाय में रोटी-बेटी के ताल्लुकात हैं।

एक फरवरी 2021 को म्यांमार की फौज ने 8 नवंबर 2000 को संपन्न हुए चुनावों में सू की की पार्टी की जीत को धोखाधड़ी करार देते हुए तख्ता पलट कर दिया था। वहां के चुनाव आयोग ने सेना के आदेश को स्वीकार नहीं किया तो फौज ने वहां आपातकाल लगा दिया। हालांकि भारत ने इसे म्यांमार का अंदरूनी मामला बता कर लगभग चुप्पी साधी हुई है, लेकिन भारत इसी बीच कई रोहिंग्याओं को वापिस म्यांमार भेजने की कार्यवाही कर रहा है और उस पार के सुरक्षा बलों से जुड़े शरणार्थियों को सौंपने का भी दवाब है, जबकि स्थानीय लोग इसके विरोध में हैं। मिजोरम के मुख्यमंत्री जोनार्थान्ग्मा इस बारे में एक खत लिख कर बता चुके हैं कि यह महज म्यांमार का अंदरूनी मामला नहीं रह गया है। यह लगभग पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश के रूप में उदय की तरह शरणार्थी समस्या बन चुका है। हाल ही में मिजोरम सरकार का केंद्रीय गृह मंत्रालय को स्पष्ट बता चुकी है कि वह म्यांमार में शांति स्थापित होने तक किसी भी शरणार्थी को जबरदस्ती सीमा पर नहीं धकेलेगी।


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