Tuesday, April 16, 2024
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सहालग की धूम कम, धंधा भी हुआ चौपट

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  • शादियां रद होने से घोड़ा-बग्घी व्यवसाय से जुड़े लोग भी जूझ रहे आर्थिक संकट से

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: शादियों के सीजन में हर तरफ रौनक होती है। खासतौर पर दूल्हे की चढ़त के लिए मंगवाई जाने वाली घोड़ा-बग्घी की शान ही अलग होती है। इसको लेकर कई गाने भी हैं, जो दूल्हे के लिए घोड़ा-बग्घी पर सवार होकर बरात लेकर आने की खूबसूरती को बयां करते हैं। मगर असल जिंदगी में भी लोग शादियों को यादगार बनाने के लिए इनकी बुकिंग में कोई कसर नहीं छोड़ते है।

यही कारण है कि कई पीढ़ियों से घोड़ा-बग्घी वाले इस व्यवसाय को जिंदा रखे हुए हैं, लेकिन पिछले साल से लेकर इसबार की लगन ने इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की कमर तोड़ दी है। गत वर्ष जहां एक ओर कोरोना के चलते लॉकडाउन था। उसकी वजह से बुकिंग नहीं हो सकी थी मगर इस वर्ष कोरोना की दूसरी लहर के चलते भयभीत लोगों ने कोरोना गाइडलाइन आने के बाद अधिकांश बुकिंग रद करा दी है। ऐसे में इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर अब घर का खर्च कैसे चलाए। सीजन में ही यह काम जोर पकड़ता है सहालग न होने पर यह लोग खाली रहते हैं।

जानवरों के खाने-पीने का भी रखना होता है ध्यान

तीन पीढ़ियों से घोड़ा-बग्घी का काम करने वाले कैलाश बताते है कि बाबा और दादा के समय से ही यही काम चला आ रहा है। इसलिए कोई दूसरा काम करने की नहीं सोची मगर एक साल से जो परिस्थितियां है उसने कमर तोड़ कर रख दी है। एक साल से कर्ज हो गया है और अब समझ नहीं आ रहा है कि उसे कैसे चुकाया जाए।

वहीं मुर्गी फार्म स्थित पप्पू बग्घी वाले नफीस का कहना है कि कोरोना की वजह से अधिकांश बुकिंग रद हो गई है, जो बुकिंग बची है उनकी शादियां दोपहर में हो रही है। जिसमें कई तरह की परेशानियां हो रही है। जिस बग्घी का पहले 10 हजार मिलता था। अब लोग केवल पांच से छह हजार ही दे रहे हैं। कुल मिलाकर लोग भी कोरोना का फायदा उठाने में लगे हुए है। महंगाई का आलम यह है कि कोई चीज सस्ती नहीं है। ऐसे में समझ नहीं आ रहा है कि खुद क्या खाए और जानवरों को कैसे खिलाए।

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