
- स्वास्थ्य विभाग के अफसर अस्पतालों का निरीक्षण में दबा देते हैं खामियां
- अधिकारियों की शह पर सरकारी अस्पतालों में चल रहा मनमानी का सिस्टम
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: सरधना सीएचसी की जांच ने मेरठ में स्वास्थ्य विभाग में फर्जी निरीक्षणों की पोल खोल कर रख दी। इस विभाग के अधिकारियों आम जनता के स्वास्थ्य से कोई सरोकार नजर नहीं आता। अधिकारी अस्पतालों में निरीक्षण में मिलने वाली खामियों पर पर्दा डाल देते हैं। अधिकारियों की शह दोषियों के खिलाफ कार्रवाई न होने से चिकित्सकों और स्टाफ मनमानी पर उतारू हैं। ऐसे अधिकारियों पर भी गाज गिरने के बाद ही सिस्टम में सुधार की उम्मीद की जा सकती है।
केन्द्र सरकार हो या प्रदेश सरकार वर्षाें से स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का प्रयास कर रही है। इसके लिए हर वर्ष नित नई लाभकारी योजनाएं जारी करती है। लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक ऐसी योजनाओं का जिक्र करके लोगों को उनके स्वास्थ्य के प्रति गंभीर होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन कुछ अधिकारी इन दावों पर पानी फेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। शहर में स्वास्थ्य विभाग में अधिकारियों का लाव लश्कर है। यहां अपर निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की तैनाती है।
वहीं, सीएमओ और उनके अधीन डिप्टी सीएमओ और एसीएमओ की पूरी फौज है, लेकिन इन अधिकारियों का स्वास्थ्य विभाग के सिस्टम पर कितना नियंत्रण यह सरधना सीएचसी पर प्रसव पीड़ा से तड़पती रही 13 वर्ष की गर्भवती किशोरी के मामले ने उजागर कर दिया। खास बात ये है कि उक्त अधिकारी दो माह में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, प्राथमिक स्वस्थ्य केन्द्रों, हेल्थ पोस्टों आदि का निरीक्षण कागजों में दर्शाते हैं। खामियां मिलने पर किसी को दंडित नहीं किया जाता। किसी को कारण बताओ नोटिस तो किसी को चेतावनी देकर बड़ी से बड़ी लापरवाही के बाद भी बख्श दिया जाता है।
अधिकारियों की कागजों की लिखा पढ़ी इतनी सटीक रहती है कि कोई कोर कसर नहीं छोड़ते, लेकिन धरातल पर जिलेभर की स्वास्थ्य सेवाओं का चरमराना अपने आपमें इन अधिकारियों की कार्यशैली का सबूत देती हैं। सरधना सीएसची की जांच ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। अब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बगले झांक रहे हैं। वे मीडिया से दूरी बना रहे हैं। मीडिया कर्मियों से बात करने बच रहे हैं। उनकी मोबाइल कॉल रिसीव नहीं कर रहे। अब सवाल बनता है कि क्या सरकार लापरवाह अधिकारियों पर भी गाज गिराएगी, ताकि सिस्टम में कुछ सुधार हो सके?
पुलिस ने दुष्कर्म पीड़िता के परिजनों से किसी को मिलने नहीं दिया
सरधना के एक गांव में दुष्कर्म का शिकार हुई अनुसूचित जाति की 13 वर्षीय गर्भवती किशोरी को प्रसव के बाद जिला महिला अस्पताल यानी डफरिन अस्पताल में भर्ती किया गया था। पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक पर लापरवाही का दाग लगने के बाद अब डिफरिन में दुष्कर्म पीड़िता के परिजनों से किसी को मिलने नहीं दिया जा रहा। अस्पताल में पुलिस तैनात कर दी गई। दुष्कर्म पीड़िता के कुछ संबंधी उसके परिजनों से मिलने के लिए अस्पताल पहुंचे, लेकिन सभी को बैरंग लौटा दिया गया।
सरधना के गांव में अनुसूचित जाति की 13 वर्षीय किशोरी के साथ पड़ोस में रहने वाले एक शादीशुदा व्यक्ति ने छह माह तक दुष्कर्म किया। किशोरी की अश्लील वीडियो भी बनाकर उक्त व्यक्ति उसे डराता धमकाता रहा और उससे दुष्कर्म करता रहा। जब किशोरी की हालत बिगड़ी तो उसका अल्ट्रा साउंड कराया गया, जिसमें उसके पेट में छह माह का गर्भ होने की पुष्टि हुई। गुरुवार की देर रात उसे प्रसव पीड़ा हुई। शुक्रवार तड़के उसे सरधना सामुदायिक केन्द्र पर ले जाया गया था, जहां करीब डेढ़ घंटे तक वह बेंच पर तड़ती रही और किसी चिकित्सक ने उसको प्रसव नहीं कराया।
आखिरकार किशोरी ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसे अस्पताल के स्टाफ ने मृत घोषित कर दिया। जहां निर्दयता में स्वास्थ्य विभाग ने कोई कसर नहीं छोड़ी वहीं पुलिस ने छह दिन पूर्व थाने में शिकायत के बाद भी न तो रिपोर्ट दर्ज की और न ही आरोपी को पकड़ा। इस पर हंगामा होने पर पुलिस हरकत में आई और आनन-फानन में किशोरी को जिला महिला अस्पताल में भर्ती कराया। पुलिस ने नामजद आरोपी सुभाष को गिरफ्तार कर अपना दामन साफ दिखाने की कोशिश की।
जिला महिला अस्पताल में शुक्रवार से ही दुष्कर्म पीड़िता व उसके परिजनों से मिलने के लिए उनके संबंधियों का आना जाना लग रहा है, लेकिन पुलिस ने अब पूरे परिवार से किसी से भी मिलने पर रोक लगा दी है। डिफरिन अस्पताल में पुलिस तैनात कर दी गई। अस्पताल में जिनके मरीज भर्ती हैं, उसके परिजनों की लिखा पढ़ी करके बाहर बुलवाकर मिलवाया जा रहा है। मीडियाकर्मियों को भी अस्पताल के अंदर जाने नहीं दिया जा रहा।
फास्ट ट्रैक कोर्ट में चले मुकदमा, पीड़ित परिवार को मिले आर्थिक मदद
सरधना: सीएचसी में दुष्कर्म पीड़िता दलित किशोरी के खुले में प्रसव के मामले में जांच टीम ने रिपोर्ट तैयार कर ली है। जो सोमवार को डीएम के समक्ष पेश हो जाएगी। उसी के आधार पर दोषी स्वास्थ्यकर्मियों पर कार्रवाई होना तय है। वहीं दुष्कर्म पीड़िता के परिवार की मदद को हाथ उठने लगे हैं। रविवार को कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन की टीम पीड़िता के परिवार से मिली। उन्होंने परिवार की हर संभव मदद कराने का आश्वासन दिया। उन्हें विधिक कानूनी सलाहकार मुहैया कराने के साथ ही सरकार से आर्थिक मदद के लिए आवाज उठाने का आश्वासन दिया।
सरधना के एक गांव में दलित किशोरी को बस्ती के व्यक्ति ने कई महीने तक अपनी हवस शिकार बनाया। जिससे किशोरी गर्भवती हो गई। दो दिन पूर्व परिवार के लोग दुष्कर्म पीड़िता को सरधना सीएचसी में प्रसव के लिए लेकर पहुंचे थे। मगर स्टाफ ने उसे भर्ती नहीं किया था। जिसके चलते पीड़िता अस्पताल परिसर में पड़ी बैंच पर तड़पती रही। अंत में खुले में ही उसने बच्चे को जन्म दे दिया था। हालांकि बच्चें की मौत हो चुकी थी। पुलिस की सख्ती के बाद उसे अस्पताल में दाखिल किया गया। स्वास्थ्य विभाग के स्टाफ की क्रूरता मीडिया में छाई तो उच्चाधिकारी हरकत में आए।
डीएम दीपक मीणा ने तीन सदस्य टीम गठित करके मजिस्टेÑट जांच के आदेश कर दिए। टीम को 48 घंटे में जांच पूरी करके रिपोर्ट सौंपने को कहा गया। शनिवार को टीम ने सरधना सीएचसी पहुंच कर स्टाफ के बयान दर्ज किए थे। साथ ही सीसीटीवी कैमरों की रिकॉर्डिंग चेक की थी। जिसमें स्वास्थ्यकर्मियों की क्रूरता साफ नजर आ रही थी। टीम ने रिपोर्ट तो तैयार कर ली है। जो सोमवार को डीएम के समक्ष पेश की जाएगी। उसके आधार पर लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों पर कार्रवाई होना तय है। वहीं पीड़ित परिवार के लिए भी मदद के हाथ उठने लगे हैं।
रविवार को कैलाश सत्यर्थी फाउंडेशन की टीम पीड़ित परिवार से मिलने पहुंची। जिसमें सहायक परियोजना अधिकारी शेर खान व पुष्पेंद्र कुमार शामिल रहे। उन्होंने परिवार से बात करके पूरी जानकारी प्राप्त की। कहा कि परिवार की हर संभव मदद कराई जाएगी। फाउंडेशन की ओर से परिवार को विधिक सलाहकार मुहैया कराया जाएगा। इसके अलावा सरकार से परिवार की आर्थिक मदद कराने और मुकदमा फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलवाने की मांग करेंगे। ताकि पीड़िता को जल्द से जल्द न्याय मिल सके।