- बसों से मिलने वाला राजस्व की हो रही थी बंदरबाट
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: भैंसाली रोडवेज डिपो में करोड़ों का घोटाला खुल रहा है, जिसमें क्लर्क से लेकर अधिकारी तक लिप्त हैं। रोडवेज में जो बस प्रतिदिन राजस्व की वसूली किराए के रूप में करती है, उस किराए की धनराशि को परिवहन निगम के परिचालक लेखाधिकारी के कक्ष में प्रतिदिन जाम कराते हैं, ये नियम हैं, लेकिन क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी सिपहसलार क्लर्क शोकेंद्र बसों से खुद कलेक्शन कर व्यापक स्तर पर सरकारी धनराशि को खुर्द बुर्द कर रहे थे।
इसका खुलासा हुआ तो करोड़ों का घोटाला सामने आया है। हालांकि शौकेन्द्र क्लर्क को परिवहन विभाग के अधिकारियों ने सस्पेंड तो कर दिया, लेकिन जो घोटाला किया था, उसमें से सिर्फ 22 लाख की धनराशि ही सरकारी खजाने में जमा कराई है। यह घोटाला सिर्फ एक क्लर्क तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अधिकारियों की भी संलिप्तता है। यह जगजाहिर हो चुकी है।
इसी वजह से घोटाले की फाइल दबा दी गई है। इसमें घोटाले में संलिप्त कर्मचारी और अधिकारियों की बर्खास्तगी होनी चाहिए थी, लेकिन यहां पर सस्पेंड के नाम पर ही खानापूर्ति की जा रही है। जब यह साबित हो गया है कि क्लार्क शौकेन्द्र भी खुद ये मान गये है कि उसने भ्रष्टाचार किया है और 22 लाख की धनराशि वापस सरकारी खाते में जमा भी करा दी गई है तो फिर उसके खिलाफ एफआईआर और बर्खास्तगी की कार्रवाई क्यों नहीं की गई है?
ये बड़ा सवाल है। एक नहीं, बल्कि कई अफसर इस भ्रष्टाचार में लिप्त है, जिनकी जांच होने पर नाम सामने आ सकता है। क्षेत्रीय प्रबंधक रोडवेज केके शर्मा पिछले तीन वर्ष से मेरठ में जमे हुए हैं। इस दौरान यह घोटाला हुआ है। जब लेखाधिकारी को प्रत्येक बस परिचालक द्वारा प्रतिदिन होने वाले किराए के कलेक्शन को जमा कराने का नियम है तो फिर बस परिचालकों से क्लर्क शौकेन्द्र रुपये क्यों ले रहे थे?
किसके आदेश पर ले रहे थे? यदि किसी आला अफसर का आदेश पर ये वसूली चल रही थी तो फिर उस अफसर के खिलाफ इसमें कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही हैं? निश्चित रूप से आला अफसर की इसमें मिलीभगत थी, तभी क्लर्क स्तर के एक कर्मचारी ने इतने बड़े घोटाले को अंजाम दे दिया। भैंसाली रोडवेज डिपो के पास 150 बस हैं। एक बस का प्रतिदिन किराया कलेक्शन करीब 10 हजार रुपये प्लस होता है।
ऐसे में 15 से 20 लाख रुपये प्रतिदिन का रेवेन्यू भैंसाली रोडवेज डिपो का कलेक्शन हो रहा है। इतने बड़े स्तर पर घोटाला हुआ है, जिसकी जांच पड़ताल के दौरान यह तथ्य भी सामने आ रहा है कि वर्ष 2018 में घोटाले की शुरुआत हुई है। दो साल पहले घोटाले की फाइल चली और फिर फाइल को बंद कर दिया।
क्या अब फिर से 14 सितंबर को शासन इसकी जांच के आदेश हुए हैं। अपर आयुक्त महेंद्र प्रसाद और एडीएम सिटी दिवाकर इस घोटाले की जांच पड़ताल कर रहे हैं। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि घोटाले में लिप्त अफसर और क्लर्क भैंसाली रोडवेज डिपो में ही तैनात हैं। ऐसे में निष्पक्ष जांच होना असंभव नहीं है। इन अधिकारियों के तबादले के बाद ही इसकी निष्पक्ष जांच संभव हो सकती है।