किसी शहर के फरीसी ने एक बार ईसा मसीह से विनती की-प्रभु, आप कृपया एक दिन मेरे घर पर आकर भोजन करें। उन्होंने उसका निवेदन स्वीकार कर लिया और बता दिया कि वह किस दिन उसके घर आएंगे। निर्धारित दिन वह उसके घर पहुंचकर भोजन करने को बैठ गए। उसी शहर की एक पापिन स्त्री यह खबर मिलते ही संगमरमर के पात्र में इत्र लेकर वहां आ पहुंची। ईसा के पांवों के पीछे खड़ी हो रो-रोकर वह उनके पांवों को अपने आंसुओं से भिगोने लगी। थोड़ी-थोड़ी देर में वह अपने सिर के बालों से ईसा के पांव पोंछने लगी। इस बीच उसने पैर ईसा के कई बार चूमे और उन पर इत्र मला। फरीसी सोचने लगा कि यदि यह ईसा भूत-भविष्य जानता होता तो समझ जाता कि जो स्त्री उसे छू रही है, वह तो पापिन है। वह ईसा पर शक करने लगा। सोचने लगा कि शायद लोग बेमतलब भी उन्हें इतना महत्व देते हैं। वह यह सोच ही रहा था कि तभी प्रभु ईसा ने उससे कहा-हे शमीन, किसी महाजन के दो देनदार थे। एक से उसे पांच सौ दीनार लेने थे और दूसरे से पचास। लेकिन जब उनके पास कुछ रहा ही नहीं तो महाजन ने दोनों को माफ कर दिया। तो उनमें से कौन उसे अधिक प्रेम करेगा? फरीसी बोला-वह, जिसका अधिक पैसा उसने छोड़ दिया। प्रभु ईसा ने कहा, तू ठीक कहता है। इस स्त्री को देख। मैं तेरे घर में आया, लेकिन तूने मुझे पैर धोने को पानी भी न दिया। इस स्त्री ने अपने आंसुओं से मेरे पैर धोए, अपने बालों से उन्हें पोंछा। तूने तो मुझे चूमा तक नहीं, लेकिन जबसे यह आई है, तबसे मेरे पैरों को चूम रही है। इसने मेरे पांव पर इत्र भी डाला और बहुत प्रेम किया। इस वजह से इसके सारे पाप क्षमा हो गए। इसके विश्वास ने मुझे बचा लिया।