ग्रामीणों को सांसे लेना हुआ मुश्किल, गन्ना कोल्हू संचालक झोंक रहे पॉलिथीन
जनवाणी संवाददाता |
भोपा: थानाक्षेत्र में गन्ना कोल्हू संचालकों के द्वारा पोलिथीन व अन्य हानिकारक चीजों को ईधन के रूप में प्रयोग किए जाने से पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य पर भी हानिकारक प्रभाव पढ़ रहा आबादी से कुछ ही दूरी पर चलाए जा रहे कोल्हू की चिमनी से उठता जहरीला धुआं लोगों की सांसो को घोट रहा है लेकिन जनपद का प्रदूषण विभाग कुम्भकरणी नींद में बेसुध होकर सो रहा है। ऐसा नहीं है कि प्रदूषण विभाग के आला अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है लेकिन विभाग तब तक कोई कार्रवाई करने के मूड में नहीं होता जब तक की लोगों की रूकती सांसों से दर्द भरी चींखें न निकल पड़े।
घने आबदी के बीच या आबादी से सटे इलाकों में बिना किसी मानकों के बेहतरतीब ढंग से कोल्हों को चलाया जा रहा है।एक ओर छोटे छोटे वाहनों को हल्का सा धुआं दिखाई देने पर प्रशासन द्वारा बिना कोई देरी किए कानूनी कार्यवाही कर दी जाती है लेकिन कोल्हुओं में ईंधन के रूप में इस्तेमाल की जा रही अपशिष्ट प्लास्टिक, पोलीथीन, जूते चप्पल आदि के इस्तेमाल की खुली छूट दिए जाने से जनपद का प्रदूषण विभाग सवालों के घेरे में घिरता जा रहा है। उधर प्रतिदिन सैकड़ों वृक्षों को काटकर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ हो रहा है तो दूसरी तरफ कोल्हुओं में पोलीथीन के बेजा इस्तेमाल से पर्यावरण में जहरीले तत्वों को अधिकता बढ़ने लगी है जिसका सीधा असर लोगों की सांसों पर पड़ने से दुश्वारियां बढ रही है।
क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में गन्ना कोल्हू चल रहे हैं जिसमें काफी मात्रा में प्रतिदिन गन्ने की पेराई कर गुड़ तैयार होता है। गुड तैयार करने के लिए ईंधन के रूप में बेगास (खोई) का इस्तेमाल न करके सस्ते ईंधन के चक्कर में पैसे बचाने के लिए फैक्ट्रियों से निकली पॉलिथीन, प्लास्टिक वस्तुओं, जूता चप्पल व अन्य हानिकारक वस्तुओं का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जाने से लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार गांव जौली में घनी आबादी के बीच कोल्हू का संचालन किए जाने से आसपास रहने वाले ग्रामीणों की सांसे रुकने लगी है, ना चाहते हुए भी ग्रामीण सांस संबंधी बीमारियों की चपेट में आने शुरू हो गए हैं। इसके साथ ही आबादी से सटे दूसरे में भी कमोबेश ऐसा ही हाल है। आधे अधूरे मानकों व नियम कायदे कानूनों को ताक पर रख थोड़े से पैसों के लालच में लोगों की जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
कुकुरमुत्तों की तरह थोड़ी थोड़ी दूरी पर स्थापित गुड़ कोल्हुओं में शायद ही कोई ऐसा कोल्हू संचालक हों जो ईंधन के रूप में खोई का इस्तेमाल कर रहा है। चीनी के विकल्प के रूप में गुड स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है पोस्टिक होने के साथ-साथ स्वास्थ्य पर भी इसका लाभदायक प्रभाव पड़ता है बुजुर्गों का कहना है कि चीनी कभी भी गन्ने से बने गुड़ का विकल्प नहीं हो सकती पाचन क्रिया में आयुर्वेदिक दबाव में भी प्राचीन ऋषि-मुनियों के द्वारा गुड की महत्ता बताई गई है लेकिन इंधन के रूप में प्लास्टिक व पोलीथीन आदि वस्तुओं का इस्तेमाल किए जाने से पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ लोगों की सांसो में भी जहर घुल रहा है सस्ते में गुड़ बनाने के चक्कर में लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। ऐसा भी नहीं है कि प्रशासन व प्रदूषण विभाग के आला अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है लेकिन प्रशासन शिकायत मिलने पर ही कार्यवाही के नाम पर खानापूर्ति कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेता है।
पर्यावरण विभाग को ठेंगा दिखा रहे कोल्हु संचालकों में कार्यवाही का कोई डर न होने से रात के अंधेरे में ही नहीं बल्कि दिन के उजाले में भी पोलीथीन का धड़ल्ले से इस्तेमाल जारी है। गांव जौली में पुलिस चौकी से महज 50 मीटर की दूरी पर खुलेआम पॉलिथीन जलाएं जाने से पुलिस की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में है।गुड कोल्हू में लगे पॉलिथीन के अंबार का सोशल मीडिया पर फोटो एक फोटो वायरल हो रहा है जिसमें कोल्हू परिसर में पोलीथीन आदि वस्तुओं के ऊंचे ऊंचे ढेर लगे दिखाई दे रहे हैं।
वर्जन
जिला प्रदूषण अधिकारी अंकित सिंह ने बताया कि ईंधन के रूप में गन्ना कोल्हू पर पॉलिथीन आदि वस्तुओं का इस्तेमाल करना प्रतिबंधित है।टीम बनाकर गन्ना कोल्हूओं की जांच की जाएगी और उचित कार्रवाई की जाएगी।