जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: वैज्ञानिकों ने एक नया कृत्रिम मेधा उपकरण विकसित किया है। यह आने वाले समय में आर्कटिक सागर की हिम स्थितियों का ज्यादा सटीक पूर्वानुमान व्यक्त करने में मदद करेगा। इससे पता चल सकेगा कि इस ध्रुवीय क्षेत्र में बर्फ की क्या स्थिति है।
इस उपकरण को ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे (बीएएस) और ब्रिटेन के द एलन ट्यूरिंग इंस्टिट्यूट के अनुसंधानकर्ताओं के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने विकसित किया है।
पत्रिका ‘नेचर कम्यूनिकेशंस’ में कहा गया है कि कृत्रिम मेधा प्रणाली-आइसनेट ने आर्कटिक सागर संबंधी हिम स्थितियों का सटीक पूर्वानुमान व्यक्त करने संबंधी एक बड़ी चुनौती का समाधान कर दिया है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में समुद्री जल की जमी हुई विशाल परत के बारे में ऊपर के वातावरण और समुद्र के नीचे के वातावरण से इसके जटिल संबंध के चलते सटीक पूर्वानुमान व्यक्त करना एक मुश्किल भरा काम रहा है।
जलवायु परिवर्तन: मुश्किल होगा हालात पर काबू पाना
आर्कटिक समुद्र में कई हिमखंड पिघलकर तैरते हुए दिखाई दिए हैं। इस बारे में वैज्ञानिकों ने पाया कि जलवायु परिवर्तन का असर इन ध्रुवों पर बड़ी तेजी से पड़ रहा है।
नेचर साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि ये हिमखंड पिघलकर समुद्र का स्तर बढ़ा रहे हैं। शोध लेखक स्टीवन फर्नांडो ने बताया कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो हालात पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा।
जीव-जंतुओं पर भी जांच जारी
आर्कटिक की ही तरह अंटार्कटिक पर भी बर्फ की स्थिति को जांचने के लिए पिछले कई सालों से वैज्ञानिक जांच में लगे हुए हैं।
वैज्ञानिक इस बात की भी जांच कर रहे हैं कि इन बर्फीले स्थानों पर पाए जाने वाले जीव-जंतुओं पर हिम स्थिति का क्या प्रभाव पड़ रहा है। लेकिन अब नए उपकरण के माध्यम से कई दुर्लभ प्रकारों का भी पता किया जा सकेगा।
आइसनेट बताएगा, कहां किस स्तर का खतरा
टीम से जुड़े अग्रणी अनुसंधानकर्ता टॉम एंडरसन ने कहा कि कृत्रिम मेधा प्रणाली आइसनेट आर्कटिक सागर की हिम स्थितियों का आकलन करके बता सकती है कि किस इलाके में समुद्र के नीचे या ऊपर कितनी बर्फ होगी।
इससे यह भी पता चलेगा कि किस इलाके की बर्फ पिघलने के कारण कमजोर हो गई है और वहां किस स्तर का खतरा मौजूद है। वैज्ञानिकों ने कहा कि आइसनेट 95 प्रतिशत सटीक पूर्वानुमान व्यक्त कर सकता है।