कुंवारे बैठे लड़के-लड़कियों की एक गंभीर समस्या आज सामान्य रूप से सभी समाजों में उभर के सामने आ रही है। इसमें उम्र तो एक कारण है ही, मगर समस्या अब इससे भी कहीं आगे बढ़ गई है, क्योंकि 30 से 35 साल तक की लड़कियां भी कुंवारी बैठी हुई हैं। एक समय था जब संयुक्त परिवार के चलते सभी परिजन अपने ही किसी रिश्तेदार व परिचितों से शादी बालिग होते ही करा देते थे, मगर बढ़ते एकल परिवारों ने इस परेशानी को और गंभीर बना दिया है। अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि एकल परिवार प्रथा ने आपसी व्यवहार खत्म सा ही कर दिया है। अब तो शादी के लिए जांच पड़ताल में और कोई नेगेटिव करे या न करे, अपने ही खास सगे संबंधी नेगेटिव कर बनते संबंध खराब कर देते हैं।
उच्च शिक्षा और हाई जाब बढ़ा रही उम्र : यूं तो शिक्षा शुरू से ही मूल आवश्यकता रही है लेकिन पिछले डेढ़ दो दशक से इसका स्थान उच्च शिक्षा या कहें कि खाने कमाने वाली डिग्री ने ले लिया है। इसकी पूर्ति के लिए अमूमन लड़के की उम्र 23-24 या अधिक हो जाती है। इसके दो-तीन साल तक जाब करते रहने या बिजनेस करते रहने पर उसके संबंध की बात आती है। जाहिर है, इतना होते-होते लड़के की उम्र तकरीबन 30 के इर्द -गिर्द हो जाती है। इतने तक रिश्ता हो गया तो ठीक नहीं तो लोगों की नजर तक बदल जाती है यानी 50 सवाल खड़े हो जाते हैं।
चिंता देता है उम्र का यह पड़ाव : प्रकृति के हिसाब से 30 प्लस का पड़ाव चिंता देने वाला है, न केवल लड़के-लड़की को, बल्कि उसके माता-पिता, भाई-बहन, घर-परिवार और सगे संबंधियों को भी। सभी तरफ से प्रयास भी किए, बात भी जंच गई, लेकिन हर संभव कोशिश के बाद भी रिश्ता न बैठने पर उनकी चिंता और बढ़ जाती है। बिना किसी मीडिएटर के संबंध होना मुश्किल ही होता है मगर कोई मीडिएटर बनना चाहता ही नहीं है। इन्हें कौन समझाए कि जब हम किसी के मीडिएटर नहीं बनेंगे तो हमारा भी कोई नहीं बनेगा।
आखिर कहां जाए युवा मन : अपने मन को समझाते-बुझाते युवा आखिर कब तक भाग्य भरोसे रहेगा। अपनों से तिरस्कृत और मन से परेशान युवा सब कुछ होते हुए भी अपने को ठगा सा महसूस करता है। हद तो तब हो जाती है जब किसी समारोह में सब मिलते हैं और एक दूसरे से घुल मिलकर बात करते हैं, लेकिन उस वक्त उस युवा पर क्या बीतती है, यह वही जानता है। ऐसे में कई बार नहीं चाहते हुए भी वह उधर कदम बढ़ाने को मजबूर हो जाता है जहां शायद कोई सभ्य पुरूष जाने की भी नहीं सोचता या फिर ऐसी संगत में बैठता है जो बदनाम ही न करती हो।
ख्वाहिशें अपार, अरमान हजार : हर लड़की और उसके पिता की ख्वाहिश से आप और हम अच्छी तरह परिचित हैं। पुत्री के बनने वाले जीवनसाथी का खुद का घर हो, कार हो, परिवार की जिम्मेदारी न हो, घूमने-फिरने और आज से युग के हिसाब से शौक रखता हो और कमाई इतनी तगड़ी हो कि सारे सपने पूरे हो जाएं तो ही बात बन सकती है।
हालांकि सभी के अरमान ऐसे नहीं होते लेकिन चाहत सबकी यही है। शायद हर लड़की वाला यह नहीं सोचता कि उसका भी लड़का है तो क्या मेरा पुत्र किसी ओर के लिए यह सब पूरा करने में सक्षम है? ऐसे में सामान्य परिवार के लड़के का क्या होगा? यह एक चिंतनीय विषय सभी के सामने आ खड़ा हुआ है। संबंध करते वक्त एक दूसरे का व्यक्तित्व व परिवार देखना चाहिए न कि पैसा।
कई ऐसे रिश्ते भी हमारे सामने हैं कि जब शादी की तो लड़का आर्थिक रूप से सामान्य ही था मगर शादी बाद वह आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हो गया। ऐसे भी मामले सामने आते हैं कि शादी के वक्त लड़का बहुत अमीर था और अब स्थिति सामान्य रह गई।
पहल तो करें : हो सकता है इस मुद्दे पर समाज में पहले कभी चर्चा हुई हो, लेकिन उसका ठोस समाधान अभी नजर नहीं आता। तो क्यों नहीं बीड़ा उठाएं कि एक मंच पर आकर ऐसे लड़कों व लड़कियों को लाएं जो बढ़ती उम्र में हैं और समझाइश से उनका रिश्ता कहीं करवाने की पहल करें। यह प्रयास छोटे स्तर से ही शुरू हो।
नर्मदेश्वर प्रसाद चौधी