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बच्चों से काम लेना भी एक कला है

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बच्चों से काम लेना भी एक कला है

BALWANI

नीतू गुप्ता

कामकाजी माता -पिता होने के कारण छोटे छीटे कामंों को करने का समय कई बार नहीं मिलता। आप बड़े काम तो कर लेते हैं पर छोटे छोटे काम छूटते चले जाते हैं। कई बार उन कामों को अंजाम देने से दिमागी बोझ बढ़ता चला जाता है। जल्दी सभी को होती है। धैर्य कम होता है इसलिए परिवार में मनमुटाव बढ़ता जाता है।

परिवार में जितने सदस्य हों,प्रयास कर उनकी क्षमता, आयु, समय के अनुसार थोड़ी थोड़ी जिम्मेदारी सभी को बांटें ताकि परिवार का कोई सदस्य ओवर बर्डन महसूस न करे। जरूरत होने पर उनकी मदद भी करें ताकि वह काम उनके लिए बोझ न बन जाए।

कुछ आदतें प्रारंभ से बच्चों में हंसते खेलते डालें ताकि उन्हें वे काम अपनी जिंदगी का हिस्सा लगें। अगर अभी अभी माता-पिता बने हैं तो प्रारंभ से ही सोच लें कि बच्चों को कैसे काम में लगाना है ताकि वो बोर न होकर कुछ सीखें, अनुशासित बने, मददगार और आत्म निर्भर भी।

छोटे कामों से करें शुरुआत

जब बच्चा चलना,बोलना और समझने लगे तो लगभग डेढ़ से दो साल की आयु में उसे अपने खिलौने एक टोकरी में रखना,अपने जूते लाना, अपनी बोतल रखना सिखाएं ताकि बच्चा अपने छोटे खिलौने टोकरी में रखे और उसे पता चले कि खेलने के बाद उन्हें इक_ा करके रखना है। छोटी हल्की चीजें उसे इधर से उधर रखने को कहें या घर के अन्य सदस्यों को देने के लिए कहें। इससे बच्चे रिश्ते और चीजों का नाम जानने लगते हैं।

बच्चा प्ले स्कूल जाने लगे तो बैग-बोतल रखने का स्थान उसे बताएं। घर जाकर जूते रखने और चप्पल लेने को कहें। बैग से टिफिन निकालना सिखाएं। टिश्यू पेपर डस्टबिन में डालना सिखाएं। थोड़ा बड़ा होने पर यूनिफार्म उतारना, जूते मोजे उतारना, मैला रूमाल व जुराबें धोने वाले बैग में डालना बताएं। होमवर्क के बाद बैग संभालना, रात्रि में जूते-मोजे, रूमाल, यूनिफार्म निकालना भी सिखाएं। इस प्रकार उम्र बढ?े के साथ-साथ काम बढ़ाते जाए जैेसे डस्टिंग करना, बिस्तर ठीक करना, अपना स्टडीटेबल साफ करना, अपनी अलमारी साफ रखना, फ्रिज के लिए पानी की बोतलें भरना। अगर बच्चों को प्रारंभ से काम करना सिखाएंगे तो उन्हें आदत बन जाएगी।

गलतियां न निकालें

जब बच्चे शुरू में काम करना प्रारंभ करेंगे तो गलती भी करेंगे। उनकी गलतियों को बार-बार प्वाइंट आउट न करें बल्कि साथ लगकर उनकी कमियों को सुधारें। अगर हम उन्हें कहेंगे यह सही नहीं या खराब किया है तो बच्चे निरूत्साहित होंगे और काम करने के प्रति रूचि भी घटेगी। माता पिता का काम है कि उन्हें काम में लगाना न कि काम से दूर करना। विशेषज्ञों के अनुसार किसी गलत काम हेतु उन्हें डांटे नहीं,कहें प्रयास ठीक है। बाकी स्वयं ठीक कर व्यवहारिक रूप से समझाएं। झट से बच्चे उसे समझ लेंगे।

बच्चों को उनके इंटरेस्ट का काम दें

अगर बच्चे को गार्डनिंग का शौक है तो छुट्टी वाले दिन उससे पौधे साफ करवाएं,पानी दिलवाएं। अगर पेंटिग या चित्र बनाने का शौक है तो छुट्टी वाले दिन उसे उसके शौक पूरा करने दें। उसके साथ उससे अन्य कामों की भी मदद लें ताकि वह खुशी खुशी आपके काम कर सकें। उसके शौक को नजरअंदाज न करें।
धैर्य न खोएं

छोटे बच्चों को काम पर लगाना माता-पिता के लिए एक चैलेंज होता है। उसके लिए धैर्य अवश्य रखें। तभी आप बच्चों की योग्यता और क्षमता समझ पायेंगे। अगर आप बार-बार झुंझलाएंगे तो बच्चे सीख भी नहीं पाएंगे और कुछ समय बाद वे आपसे मिक्स होना भी कम कर देंगे। उनसे प्यार व सहानुभूति से बात करें और सिखाएं तो वे भी उसी तरह से आपसे बात करेंगे और सुनेंगे।

कोई भी काम उन्हें दें तो शुरू शुरू में उन पर नजर अवश्य रखें।

कोई भी काम कराते समय प्यार से बात करें। उन पर चिल्लाएं नहीं। वे भी चिल्लाना सीख जाएंगे।janwani address 5