- कौम के नाम वक्फ की गई प्रॉपर्टी वक्फ अलल खैर से वक्फ अलल औलाद कैसे हो गई
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: मंसब अली खां द्वारा 1914 में कौम के नाम वक्फ की गई कोलकाता और लखनऊ के बाद देश की तीसरी सबसे बड़ी वक्फ प्रॉपर्टी (वक्फ मनसबिया मेरठ) के प्रति इस वक्त कौम की दीवानगी सिर चढ़कर बोल रही है। इस प्रॉपर्टी का सरताज बनने के लिए हमेशा से ही जहां गोटियां फिट करने की जद्दोजहद रहती है वहीं तिजोरियों के मुंह भी खुले रहते हैं।
अरबों रुपये की इस प्रॉपर्टी पर 1931 में जब मुहम्मद हुसैन ‘शॉक’ इसके मुतवल्ली बने तब से लेकर आज तक मुर्तजा हुसैन जैदी, सैयद अली अहमद, अशरफ अली जैदी अच्छू मियां, नायाब अली, डॉ. सरदार हुसैन, अलहाज सैयद शाह अब्बास सफवी, फखरी जाफरी और दानिश अनवर ने इस मनसबिया की कमान संभाली।
कौम के रहनुमाओं के अनुसार इन मुतवल्लियों में से कई ऐसे थे। जिन्होंने मनसबिया के हित के लिए वो सब कुछ किया जिसकी मनसबिया हकदार थी। इसके मुतवल्ली रहे मुर्तजा हुसैन जैदी के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि उन्होंने मनसबिया की इंक तक अपनी कलम के लिए इस्तेमाल नहीं की। जबकि एक अन्य मुतवल्ली रहे अच्छू मियां के बारे में कौम के कई रहनुमाओं का कहना है कि इन्होंने दोनों हाथों से मनसबिया को लूटा। बताया जाता है कि कौम ने ही एक तहरीक चलाकर उनको उनके पद से हटवाया।
बताया जाता है कि मो. हुसैन शॉक से लेकर सैयद अली और नायाब अली से लेकर शाह अब्बास सफवी ने मनसबिया के हित के लिए बहुत कुछ किया। इसके अलावा बाकी के मुतवल्लियों को लेकर कौम में इंतशार है। डा. सरदार हुसैन के नाम पर भी बहुत कम लोग अंगुली उठाते हैं। हालांकि पिछले आठ सालों के इतिहास पर प्रकाश डालें तो मामला सिर्फ ‘कमाई’ तक आकर सिमट गया है। कौम के कई रहनुमाओं से लेकर आम व्यक्ति तक का आरोप है कि जिस समय इस बोर्ड का निजाम वसीम रिजवी के हाथों में उस समय शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार का खुला अड्डा बन चुका था।
बताया जाता है कि जो प्रॉपर्टी वक्फ अलल खैर थी उसको भी भ्रष्टाचार की ऐसी दीमक लगी कि वो वक्फ अलल औलाद हो गई। आरोप है कि इस खेल में वक्फ बोर्ड के एक इंस्पेक्टर मुंतजिर मेहंदी का वसीम रिजवी ने बेजा इस्तेमाल किया और उससे वक्फ अलल खैर को वक्फ अलल औलाद बनवाने में मोहरा बनाया गया और उसी इंस्पेक्टर से इसकी गलत रिपोर्ट लगवाई गई। हांलाकि बताया जाता है कि इस इंस्पेक्टर को बाद में दोषी पाते हुए सस्पेंड कर दिया गया। वर्तमान मुतवल्ली दानिश अनवर से पूर्व फखरी जाफरी का कार्यकाल भी विवादित रहा।
काबलियत दरकिनार, जेब मोटी तो कुर्सी उसी की !
इस वक्त मनसबिया का सरताज बनने के लिए काबलियत की कोई एहमियत नहीं है, सब दरकिनार है। शिया धार्मिक राजनीति से जुड़े लोगों के अनुसार मनसबिया का सरताज (मुतवल्ली) बनने के लिए आदमी चाहे कितना ही हल्का हो, लेकिन उसकी जेब भारी होनी चाहिए। मनसबिया का मुतवल्ली बनने के लिए आपकी जेब में लाखों करोड़ों रुपये होने चाहिए। मेरठ की मनसबिया उस समय फिर सुर्खियों में आई जब प्रसिद्ध शिया आलिम मौलाना कब्ले जब्बाद (लखनऊ) ने एक मुतवल्ली के हटने पर यह कहकर बड़ा बयान दिया कि मेरठ की मनसबिया के मुतवल्ली पद से एक बड़ा चोर हट गया। उनका सीधा इशारा मनसबिया के आर्थिक घोटालों की ओर था। उधर सूत्रों के अनुसार मनसबिया की जायदाद और कमाई को देखते हुए ही नायाब मुतवल्ली का कांसेप्ट भी अचानक चलन में आ गया और इस पर विरोध के बावजूद नायाब मुतवल्ली पद पर भी अपॉइंटमेंट होने लगे।