Friday, March 29, 2024
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ईश्वर का कार्य

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AMRITWANI 1


बहुत पुरानी बात है। किसी राज्य में दर्शनशास्त्र के एक विद्वान को राजा ने बुलाया और कहा, ‘तीन प्रश्न मेरे लिए पहेली बने हुए हैं। ईश्वर कहां है? मैं उसे क्यों नही देख सकता हूं?

और वह सारा दिन क्या करता है? यदि तुमने इनका सही उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारा सिर कटवा दिया जाएगा।’ विद्वान डरकर कांपने लगा, क्योंकि उन प्रश्नों का उत्तर उसे असंभव लगा।

अगले दिन विद्वान का बेटा दरबार में आया और उसने राजा से पूछा कि क्या वह उन प्रश्नों के उत्तर दे सकता है? राजा ने मान लिया। विद्वान के बेटे ने दूध का एक बड़ा कटोरा लाने के लिए कहा। कटोरा लाया गया। फिर लड़के ने कहा कि दूध को मथा जाए, ताकि मक्खन अलग हो जाए। वह भी कर दिया गया।

लड़के ने राजा से पूछा, ‘दूध मथने से पहले मक्खन कहां था?’ राजा बोला, ‘दूध में।’ बालक ने सवाल किया, ‘दूध के कौन से हिस्से में?’ राजा ने कहा, ‘पूरे में।’ लड़के ने कहा, ‘इसी तरह ईश्वर भी हम सब में व्याप्त है, सभी वस्तुओं में।’ राजा ने पूछा, ‘तब मैं क्यों नहीं ईश्वर को देख पाता हूं?’

लड़के ने जवाब दिया, ‘क्योंकि आप सच्चे मन से उसका ध्यान नहीं करते।’ राजा बोला, ‘अब यह बताओ कि ईश्वर सारा दिन क्या करता है?’ बालक बोला, ‘इसका उत्तर देने के लिए हमें स्थान बदलना होगा। आप यहां आ जाएं और मुझे राजसिंहासन पर बैठने दें। राजा ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।

बालक ने कहा, ‘एक क्षण पहले आप यहां थे और मैं वहां। अब दोनों की अवस्थाएं उलट गई हैं। ईश्वर हमें उठाता और गिराता रहता है। एक जन्म में हमें ऊंचे पद पर प्रतिष्ठित कर देता है और दूसरे में नीचे कर देता है।

कई बार एक ही जन्म में स्थितियां बदलती रहती हैं।’ जवाब से संतुष्ट हो गया। प्रसन्न होकर राजा ने विद्वान और उसके पुत्र को सम्मानित करके विदा किया।


SAMVAD

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