जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नगर निगम अफसरों की नजरों में 40 साल पहले बनवाई गईं 17 दुकानें जीर्ण-क्षीर्ण होने की वजह से खतरनाक हैं। वो कभी भी गिर सकती हैं। उनसे कोई बड़ा हादसा हो सकता है। जबकि कोतवाली के भगत सिंह मार्केट में 60 साल पहले बनाई गई दुकानों को निगम अफसर जीर्ण-क्षीर्ण की श्रेणी में मानते हैं न ही उनसे किसी प्रकार की हादसे की आशंका जताई जा रही है। निगम अफसरों की इसी समझ पर सवाल खडे किए जा रहे हैं।
ऐसे हुई विवाद की शुरूआत
नगरायुक्त ने 22 जनवरी 021 को एक पत्र नगर निगम के किराया प्रभारी को लिखा है। जिसमें कहा गया है कि क्षेत्रीय अभियंता व सहायक अभियंता की रिपोर्ट में बताया गया है कि वार्ड 49 पुराना बागपत स्टैंड के पास 40 साल पहले मार्केट का निर्माण कराया गया था। सभी दुकानें जीर्ण-क्षीर्ण अवस्था में हैं। कभी भी गिर सकती हैं। इनको दोबारा से बनवाना अति आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि इसको लेकर सभी 17 दुकानदारों को निगम प्रशासन पहले ही नोटिस दे चुका है।
भगत सिंह मार्केट पर चुप्पी
इस मामले के सामने आने के बाद ही सवाल पूछा जा रहा है कि 40 साल पहले बनी दुकानों की इतनी चिंता है तो फिर 60 साल पहले बनाई गई दुकानों को लेकर निगम प्रशासन की लापरवाही का क्या कारण है। वो दुकानें तो वैसे भी घनी आबादी और तंग सड़क के किनारे बनाई गई हैं।
दरअसल यह जगह मुल्क के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को रोटी रोजगार के लिए फड लगाने के लिए दी गई थी। यह बात अलग है कि 60 साल के अंतराल में ज्यादातर दुकानें सबलेट कर दी गई हैं। निगम के वास्तविक किराएदार इक्का दुक्का ही बचे हैं, लेकिन इन दुकानों पर चुप्पी को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।
नगरायुक्त को चिट्ठी
इस पूरे मामले को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल कुमार व्यास निवासी शास्त्रीनगर ने एक चिट्टी नगरायुक्त को 25 जनवरी 2021 को लिखी है। जिसमें उक्त पूरे मामले का उल्लेख करते हुए पुराना बागपत स्टैंड की 17 दुकानों से पहले भगत सिंह मार्केट की 176 पुरानी जीर्ण-क्षीर्ण हो चुकी दुकानों को संदर्भ लेने का आग्रह करते हुए शीघ्र ही अधिस्थों को आदेशित किए जाने का आग्रह किया है। आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना का भी कहना है कि यह गंभीर मामला है। पहले 60 साल पूर्व बनाई गई दुकानों को संदर्भ लेना चाहिए।
आबूलेन स्थित होटल अमृत की पार्किंग मामले में कोर्ट में आज सुनवाई होनी है। इसके चलते लालकुर्ती पैठ एरिया के गड्ढा मार्केट के दुकानदारों के मंगल बाजार में बसाए जाने की कैंट बोर्ड व जिला प्रशासन की एक्सरसाइज पर फिलहाई हाईकोर्ट की रोक है।
मंगल बाजार के नाम पर पार्किंग स्थल में बनाई गई फड़ों को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना की याचिका पर हाईकोर्ट ने स्टे कर दिया है। जिसके चलते फिलहाल तो गडढ़ा बाजार के उन दुकानदारों का भविष्य अधर में लटका हुआ है जिन्हें मेट्रो प्रोजेक्ट के चलते उजाड़ा जाना है।
ये है पूरा मामला
आबूलेन स्थित होटल अमृत के लिए पार्किंग स्थल के रूप में छोड़ी गई जगह जो मंगल बाजार कहलाती है, में कैट बोर्ड प्रशासन ने फड बना दी हैं। पार्किंग स्थल पर फड़ बनाए जाने का विरोध किया जा रहा है। फड़ तो बना दी गई, लेकिन हाईकोर्ट के स्टे के चलते इनका आवंटित नहीं किया जा सका है। मामला बीच में ही रूक गया।
व्यापारी नेताओं और सदस्यों की नजर
मंगल बाजार में जो फडेÞ बनाई गई हैं उनको लेकर आबूलेन समेत दूसरे व्यापारी नेताओं व कैंट बोर्ड के कुछ निर्वाचित सदस्यों की राल टपक रही है। इस बंदरबाट में कैंट बोर्ड का स्टाफ भी पीछे नहीं है। सभी जानते हैं कि आबूलेन सरीखे स्थान एक-एक फड़ की कीमत आने वाले दिनों में कितनी ज्यादा होने वाली है। इसलिए कोई भी पार्किंग स्थल पर फड़ बनाए जाने का विरोध नहीं कर रहा है।
बद से बदतर होगी आबूलेन की हालत
मंगल बाजार में फड़ों के आवंटन के बाद आबूलेन की हालत बद से बदतर हो जाएगी इसमें भी कोई दो राय नहीं है। आबूलेन बाजार में पहले से ही यातायात का ओवरलोड है। जब फड आवंटित हो जाएंगी और वहां काम धंधा शुरू हो जाएगा तो आबूलेन की दशा लालकुर्ती पैंठ एरिया से भी बदत्तर हो जाएगी, लेकिन फड़ों के आवंटन के नाम पर होने वाली बंदरबाट के लालच में लोभियों को यह दिखाई नहीं दे रहा है। शुरूआत में तो जरूर आबूलेन के कुछ व्यापारी नेताओं ने यहां फड बनाए जाने का विरोध किया था, लेकिन जब बंदरबाट में हिस्सा मिलने की बात आयी तो विरोध करने वाले भी समर्थन में आ गए।
ये कहना है कि आरटीआई एक्टिविस्ट का
आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना का कहना है कि मंगल बाजार में फड आवंटित किए जाने के बाद आबूलेन पर यातायात का दबाव बढेÞगा। पहले से ही यहां यातायात की स्थिति खराब है। यह समझते हुए ही हाईकोर्ट ने स्टे दिया है।