भाषणा गुप्ता |
आज मानसिक तनाव, चिंता व अवसाद आदि गम्भीर रोग मानव जीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप सामाजिक जीवन में अनेक प्रकार की विकृतियां पैदा होती जा रही हैं। यदि शारीरिक स्वास्थ्य की तरह ही मानसिक स्वास्थ्य के प्रति भी सजग रहा जाए तो मन को बड़ी आसानी से अनुशासित बनाया जा सकता है क्योंकि किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक समाप्त करने हेतु मन का शांत एवं अनुशासित होना अति आवश्यक है।
मन को वश में रखने से इंद्रियां वश में रहती हैं व व्यक्तित्व में समरसता बनी रहती है। यदि मन को स्वस्थ रखने के कुछ नियमों को दृढ़तापूर्वक अपनाया जाए तो मनोविकृतियों को सुधारा जा सकता है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है। अतएव शरीर को स्वस्थ रखने हेतु यह अति आवश्यक है कि आप जिस आहार का सेवन करते हैं, वह पूर्णरूप से शुद्ध होना चाहिए।
भूख से अधिक खाना, गरिष्ठ व तली-भुनी वस्तुओं का सेवन अधिक करने से पेट में भारीपन आ जाता है, जिससे मन पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इससे आलस्य में वृद्धि होती है। मादक पदार्थों का सेवन मन को मदहोशी की स्थिति में लाकर खड़ा कर देता है, अत: मन को नियंत्रित रखने के लिए यह आवश्यक है कि आपका भोजन सादा व सुपाच्य होना चाहिए। भोजन उचित समय, उचित मात्रा व प्रकृति के अनुकूल ही करना चाहिए।
मन को स्वस्थ रखने हेतु जीवन का कोई लक्ष्य निर्धारण करें क्योंकि ऐसा करने से आप में संघर्ष की प्रवृत्ति स्वयंमेव आ जाएगी। अपने लक्ष्य तक पहुंचने हेतु जब हम संघर्ष करते हैं तो कई बार मन भटकने लगता है और विचलित हो जाता है। ऐसी मन: स्थिति में अपनी इच्छाशक्ति का विकास करें। इच्छा को संकल्प का रूप दें व लक्ष्य प्राप्ति हेतु पूरी दृढ़ता व योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ें।
मन बहुत ही जिद्दी व परिवर्तनशील है। यह सदैव कुछ न कुछ सोचता रहता है। यदि इसे जरा सी ढील देंगे तो यह आप पर हावी हो जाएगा। इससे बचने के लिए स्वयं को किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखें क्योंकि खाली दिमाग सदैव सपनों के ताने-बाने बुनता रहता है और उन सपनों को पूरा करने के लिए इंसान किसी भी हद तक जा सकता है, अत: कभी भी खाली न रहें।
खाली समय में अपनी रूचि के कार्य करें। रचनात्मक कार्य मन को स्वस्थ रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अपनी रूचि का कोई भी कार्य चुनकर उसे खाली समय में पूरा करें। हर मनुष्य में क्रोध, ईर्ष्या, शोक, मोह, इत्यादि मनोविकार पाए जाते हैं। मनोविकार मनुष्य को खोखला बना देते हैं। यदि ये सीमा से बाहर हो जाएं तो मनुष्य के जीवन में विष घोल देते हैं इसलिए उन्हें काबू में रखने का प्रयास करें।
इन पर काबू पाने का आसान तरीका है-सकारात्मक सोच। यदि आप सकारात्मक सोचेंगे तो किसी प्रकार की दुर्भावनाएं आपके मन में नहीं पनपेंगी। निडरता, प्रेम, शान्ति, त्याग आदि गुणों को अपने मन में विकसित करें, तभी आप इनसे बच सकते हैं।
मन स्वस्थ रहे, इसके लिए जरूरी है आपका आशावादी होना क्योंकि निराशा मनुष्य को कमजोर बना देती है। कई बार मनुष्य में असंतोष की भावना इस कदर पनप जाती है कि वह जीवन से निराश हो जाता है और यही निराशा एक दिन उसे बरबादी के कगार पर ले जाती है।
आज मनुष्य में भौतिक वस्तुओं की चाह इस कदर बढ़ गई है कि वह कभी भी संतुष्ट नहीं होता। वह सदैव अपने से ऊंची हैसियत वाले लोगों को देख-देख कर निराश होता रहता है। अपने मन से इस भावना को निकालने का प्रयत्न करें। इच्छाएं तो उन लोगों की भी पूर्ण नहीं होतीं, जो आपसे ऊंची हैसियत के हैं अत: इसे लेकर निराश न हों। याद रखें, निराशा सदैव हमें पतन की ओर ही ले जाती है इसलिए आशावादी दृष्टिकोण अपनाएं ताकि आपका जीवन सुखमय बीत सके।
आशा-निराशा, सुख-दुख, मान-अपमान, यश-अपयश जीवन के दो-पहलू हैं। इनका सामना करना सीखें। सहनशक्ति बनाए रखें। जीवन में आने वाली छोटी-मोटी तकलीफों व परेशानियों का सामना मन से करें। इनसे घबराकर अपना मानसिक संतुलन न खोएं। कई मनुष्य किसी कार्य में असफलता मिलने पर इतने हतोत्साहित हो जाते हैं कि आत्महत्या तक करने का विचार उनके मन में उत्पन्न हो जाता है परंतु वे यह नहीं सोचते कि असफलताओं से निजात पाने का एकमात्र यही विकल्प नहीं है।
कहा गया है ‘गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में’। यह तो तय है कि जो चलेगा, वही गिरेगा। यदि आप चलेंगे ही नहीं तो गिरने का सवाल ही नहीं उठता मगर चलना तो आवश्यक है। यह सदैव ध्यान में रखें कि जो लोग बाधाओं व असफलताओं से नहीं घबराते, वही अंत में सफल होते हैं। अपनी हर असफलता से सबक सीखें। यह विचार करें कि क्या कारण रहे जिनकी बदौलत असफलता आपके हाथ लगी। उन कारणों पर गौर करके अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें। याद रखें, जीत उन्हीं की होती है, जो निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़े चले जाते हैं, उन्हें मुसीबतों व असफलताओं से कोई अंतर नहीं पड़ता।
अपने वर्तमान को बेहतर बनाना सीखें। भविष्य व भूत के चक्कर में न उलझें। अतीत में हुई बुरी घटनाओं को दिल से लगाए रखना बुद्धिमानी नहीं। यदि आप ऐसा करेंगे तो मन सदैव तनावग्रस्त रहेगा, अत: ऐसी बातों को भुला देना ही बेहतर है।
आपका भविष्य बेहतर हो, इसके लिए प्रयास तो अवश्य करें परंतु इस बारे में सोच-सोच कर तनाव न पालें कि कल क्या होगा? भविष्य और भूत में उलझ कर आप अपने वर्तमान को भी हाथ से निकाल देंगे। यदि वर्तमान सुखमय होगा, तभी भविष्य के सुखमय होने की भी संभावना बनी रहती है इसलिए वर्तमान में जीना सीखें।