जनवाणी संवाददाता |
बड़ौत: भाजपा शासित केन्द्र सरकार द्वारा तीन कृषि आधारित विधेयकों में से दो को संसद में कानून बनाने से देश का किसान खुद को ठगा महसूस कर रहा है। केन्द्र सरकार ने एक बार फिर देश के किसानों को पूंजीपतियों के हवाले कर दिए। पूर्व विधायक डॉ अजय तोमर ने कहा कि पूंजीपति जब किसानों की फसलों को औने-पौने दामों में खरीदते थे।
तब चौधरी चरण सिंह ने जमीदारी खात्मा करने के साथ किसानों के अधिकार के लिए मंडी समिति एक्ट, चकबंदी एक्ट आदि लाने का काम किया था। केन्द्र सरकार के कृषि संबंधी लाए गए कानून द्वारा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से फिर से जमींदारी प्रथा शुरू होने की ओर देश जा रहा है। दूसरी तरफ मंडी का अस्तित्व भी समाप्त होता नजर आ रहा है।
किसान चिंतित और परेशान हैं। वह आंदोलन की राह पर है। किसानों की उपज का सही मूल्य मिले तथा किसानों की उपज सही स्थान पर पहुंचे समय से भुगतान हो आदि को देखते हुए चौधरी अजीत सिंह द्वारा हर 15 किलोमीटर पर शुगर मिल की स्थापना कराई गई थी।
आवागमन के साधन के लिए जिन नहर की पटरियों को चौधरी चरण सिंह ने आमजन व किसानों के लिए खुलवाया था। उन पटरियों को पक्का कराने का काम चौधरी अजीत सिंह ने कराया था। अब नए अध्यादेशों के अंतर्गत कृषि मूल्य का निर्धारण कैसे होगा? कृषि उपज कहां बेची जाएगी?
बेचने के बाद उसका भुगतान कैसे होगा? इन सब पर यह कानून मौन है। पूर्व विधायक ने कहा कि इन कानूनों में के प्रावधानों में न तो किसी किसान संगठन से न कृषि वैज्ञानिक से, ना किसानी पेशे से जुड़े सांसदों, नेताओं और न ही राजनीतिज्ञों से सलाह ली गई। किसानों की क्या दिक्कतें हैं, वह क्या चाहते हैं?
किसी भी प्रकार की उनको जानकारी नहीं दी गई है। विभिन्न क्षेत्रों के किसानों से सलाह मशवरा होना चाहिए था। उन्होंने बताया कि देश के 70 प्रतिशत किसान हैं या किसानी पेशे से जुड़े हैं। उससे उनके विषय में लिए जाने वाले निर्णयों में रायशुमारी ली जानी चाहिए थी। सरकार को किसानों को सम्मान जनक तरीके जीने के लिए कानून में संसोधन करना चाहिए।