मत्स्य उद्योग एक ऐसा व्यवसाय है जिसे निर्धन से निर्धन व्यक्ति अपना सकता है एवं अच्छी आय प्राप्त कर सकता है तथा समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। विभिन्न माध्यमों से मत्स्य पालन व्यवसाय में लगकर अपना आर्थिक स्तर सुधारा है तथा सामाजिक स्तर में भी काफी सुधार हुआ है। आज मत्स्य व्यापार में लगी महिलाएं-पुरुषों के साथ बराबर का साथ देकर स्वयं मछली बेचने बाजार जाती हैं, जिससे उनकी इस व्यवसाय से संलग्न रहने की स्पष्ट रूचि झलकती दिखाई देती है।
मछली पालन का महत्व
भारतीय अर्थव्यवस्था में मछली पालन एक महत्वपूर्ण उद्योग है, जिसमें रोजगार की अपार संभावनाएँ हैं। ग्रामीण विकास एवं अर्थव्यवस्था में मछली पालन की महत्वपूर्ण भूमिका है। मछली पालन के द्वारा रोजगार सृजन तथा आय में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़े हुए लोगों में आमतौर पर आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य कमजोर तबके के हैं जिनका जीवनस्तर इस वृद्धि को बढ़ावा देने से उठ सकता है।
मत्स्योद्योग एक महत्वपूर्ण उद्योग के अंतर्गत आता है तथा इस उद्योग को शुरू करने के लिए कम पूंजी की आवश्यकता होती है। इस कारण इस उद्योग को आसानी से शुरू किया जा सकता है। मत्स्योद्योग के विकास से जहां एक ओर खाद्य समस्या सुधरेगी वहीं दूसरी ओर विदेशी मुद्रा अर्जित होगी, जिससे अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा। भारत विश्व में मछली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और अंतदेर्शीय मत्स्य पालन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
मत्स्य क्षेत्र देश में 11 लाख से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। चूंकि कृषिभूमि में कोई वृद्धि नहीं हो रही है तथा ज्यादातर कृषि कार्य मशीनरी से होने लगे हैं, इसलिए राज्य की निर्धनता की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है, इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में मत्स्य पालन जैसे लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा तभी ग्रामीण क्षेत्र के निर्धनों का आर्थिक एवं सामाजिक स्तर सुधारा जा सकेगा। सामाजिक विकास के लिए निर्धन, बेरोजगार, अशिक्षित लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए एक सुलभ, सस्ते एवं कम समय में अधिक आय देने वाले मत्स्य पालन उद्योग व्यवसाय को अपनाने हेतु प्रेरित करने की आवश्यकता होगी।
विपणन माध्यम
मत्स्य पालन के बाद इनके विपणन की प्रक्रिया या उपयुक्त बाजार की सुविधा का होना नितांत आवश्यक है क्योंकि नियमित बाजार के माधयम से ही हम सही कीमत प्राप्त कर सकते है। प्राय: ग्रामीण क्षेत्रों में लगने वाले बाजारों में छोटे-छोटे मछुआरे लोग मछली बेचते हंै, जबकि बड़े स्तर पर उत्पादन करने वाले किसान या तो खुद बाजारों में बेचने के लिए ले जाते हैं या फिर होलसेलर के पास बेच देते, इस प्रकार आढ़तिया जो है, छोटे-छोटे खुदरा व्यापारियों के पास बेच देता है, खुदरा व्यापारी जो है अपना लाभ निकालकर अन्य लोगों के पास बेच देते हैं, इस प्रकार मत्स्य पालन का मार्केटिंग का कार्य किया जाता है।
मत्स्य पालन से लाभ
मत्स्य पालन आज कई देशों में विदेशी मुद्रा अर्जन करने का एक मुख्य साधन बन गया है। भारत जैसे अन्य कई देश जहां मत्स्य की खपत कम है परंतु उत्पादन अधिक है, वहां मत्स्य का निर्यात करके भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा इससे प्राप्त की जाती है। आज जापान में विश्व का सर्वाधिक मत्स्य उत्पादन होता है जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा आदि विदेशों में वहां की खपत के अनुरूप उत्पादन नहीं है। जिन देशों में मत्स्य खपत से अधिक उत्पादन होता है वे देश ऐसे देशों को जहां खपत से कम उत्पाद ना हो, को भारी मात्रा में मत्स्य का निर्यात करते हैं। कई देशों में अंतरराष्ट्रीय बाजार से धन प्राप्त करने का एकमात्र जरिया मत्स्य उत्पादन और मत्स्य निर्यात पर टिका है।
आर्थिक विकास में सहायक
आज आवश्यकता इस बात की है कि इन्हें मत्स्य पालन से प्राप्त होने वाली आर्थिकी से अवगत कराया जाए। इनकी मानसिकता में बदलाव लाने, इनमें विश्वास जगाने, घर एवं समाज के बंधन में बाहर निकलकर व्यवसाय में लगाने हेतु उन्हें पूर्ण सहयोग देने की जरूरत है, तभी ये बाहरी परिवेश में आकर अपना आर्थिक स्तर सुधार सकेंगे तथा एक अच्छे समाज का निर्माण कर क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन लाने में सक्षम हो सकेंगे एवं निर्भीक बन सकेंगे। जिससे समाज का आर्थिक स्तर बहुत अच्छा होगा, निश्चित ही उस समाज का सामाजिक स्तर उच्च रहेगा। उनका रहन-सहन, खानपान, वातावरण अच्छा होगा, उनका आचरण शीलवान होगा।
अत: ग्रामीण क्षेत्र में निर्धन वर्ग के लोगों को खासतौर पर अनुसूचित/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को मत्स्य पालन व्यवसाय में लगाकर उनका आर्थिक स्तर सुधारना होगा, तभी उनका सामाजिक स्तर सुधरेगा। इस प्रकार मछलीपालन देश की अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है।
माधवी खिलारी