Tuesday, April 16, 2024
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क्यों नहीं सुधरती सरकारी अस्पतालों की दशा ?

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  • सरकारी अस्पतालों में व्यवस्थाओं का बुरा हाल इलाज के लिए भटकते मरीज
  • समय से नहीं बैठते डाक्टर मरीज को दिखा रहे बाहर का रास्ता

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: सरकारी अस्पताल में चिकित्सक ड्यूटी के दौरान कितनी लापरवाही बरतते हैं, इसकी बानगी प्रतिदिन मेडिकल कालेज एवं जिला अस्पताल में देखने को मिल जाएगी। सरकारी अस्पतालों की जमीनी हकीकत ये है कि यहां आने वाले गरीब तबके के लोगों को इलाज मिलना तो दूर उन्हें यहां तैनात डाक्टर देखना भी मुनासिब नहीं समझते।

बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का दम भरने वाला जिला अस्पताल एवं मेडिकल कालेज के चिकित्सालय में मरीजों को समय से इलाज नहीं मिल पा रहा है। यहां दूर-दूर से उपचार कराने के लिए आने वाले मरीज चिकित्सकों के नहीं मिलने के कारण घंटों परेशान होते रहते हैं।

मेडिकल व जिला अस्पताल में गरीब मरीजों के लिए ओपीडी की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन इसके बावजूद अव्यवस्थाओं के चलते जिले के दूरदराज क्षेत्रों से आए मरीजों को इलाज के लिए पूरे दिन भटकना पड़ता है। अपनी पीड़ा से परेशान मरीज राहत की उम्मीद लिए सरकारी अस्पताल पहुंचता है तो वहां चिकित्सकों की लेटलतीफी मरीजों के दर्द को और बढ़ाने का काम करती है।

घंटों मशक्कत के बाद किसी तरह पर्चा काउंटर पर पर्चा कटवाकर मरीज ओपीडी कक्ष तक पहुंचते हैं तो उसे कक्ष के बाहर खड़ा होकर डाक्टर का इंतजार करना पड़ता है। दवा काउंटर पर भी एक-दो दवाएं देकर महंगी दवाओं के लिए बाहर के मेडिकल स्टोरों का रास्ता दिखा दिया जाता है। भले ही स्वास्थ्य विभाग जिला अस्पताल एवं मेडिकल कालेज चिकित्सालय की बिगड़ी व्यवस्था को पटरी पर लाने का दावा कर रही है, लेकिन सरकारी अस्पतालों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

गुरुवार को मेडिकल कालेज चिकित्सालय की ओपीडी सुबह आठ बजे खुल गई, मरीजों का आना भी शुरू हो गया, लेकिन 10 बजे तक ज्यादातर डाक्टर अस्पताल समय पर नहीं पहुंचे थे। उनके कमरों के आगे पर्ची लेकर बैठे मरीज इंतजार कर रहे थे कि कब डाक्टर आएं और हम अपना इलाज करा सकें।

डाक्टर की लेटलतीफी मरीजों के दर्द को और बढ़ाने का काम कर रही है। मरीज को इलाज के लिए घंटों भटकना पड़ रहा है। मरीज दवा काउंटर से लेकर पर्चा काउंटर तक घंटों लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं, लेकिन जब डाक्टर को दिखाने का समय आता है तो अस्पताल में डाक्टर नदारद रहते हैं।

यही हाल जिला अस्पताल का है। जिला अस्पताल की ओपीडी का समय सुबह आठ से दोपहर दो बजे तक का है, लेकिन यहां भी अधिकतर डाक्टर समय पर नहीं बैठते। सरकारी अस्पतालों में व्यव्स्था पर चिकित्सकों की मनमानी हावी है। लेटलतीफी चिकित्सकों की आदत में शुमार होे चुकी है। सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था का आलम यह है कि गरीब मरीजों को इलाज मिलना तो दूर की बात है, डाक्टर देखने तक को तैयार नहीं हैं।

बाहर मेडिकल स्टोर से लिखते हैं महंगी दवाइयां

जिला अस्पताल एवं मेडिकल चिकित्सालय में मरीजों के लिए हर साल करोड़ों रुपये की जीवन रक्षक दवाओं की खरीद की जाती है, लेकिन चिकित्सकों व निजी मेजिकल स्टोर संचालकों की सांठगांठ के चलते मरीजों को अधिकतर दवाएं बाहर से ही लेनी पड़ती हैं। मेडिकल चिकित्सालय हो या फिर जिला अस्पताल डाक्टर वही दवाएं लिखते हैं जो अस्पताल में न मिलकर बाहर से खरीदनी पड़े।

दवा वितरण काउंटर के पास खड़ी सोनिया ने बताया कि अस्पताल तो सिर्फ दो ही दवाएं मिल पाई। बाकी बची हुई दवाओं को बाहर से खरीदने के लिए कहा गया है। वहीं, शाहिद ने बताया कि अस्पताल से केवल तीन दवाएं ही मिली हैं। बाकी 900 रुपये की दवा बाहर से खरीदी है।

चिकित्सक जान बूझकर मंहगी दवाइयां बाहर से खरीदने के लिए लिख देते हैं। सरकारी अस्पताल में गरीब मरीज इस उम्मीद से आते हैं कि कम खर्च पर बेहतर इलाज मिल सके, इसलिए सरकारी अस्पतालों को गरीबों का अस्पताल कहा जाता है। अफसोस की बात है कि यहां भी सांठगांठ के चलते गरीब मरीजों को लूटा जा रहा है।

केस-1

खतौली निवासी विकलांग सोनू ने बताया कि तीन दिन से इलाज के लिए मेडिकल चिकित्सालय के चक्कर लगा रहा है, लेकिन उसे इलाज मिलना तो दूर डाक्टर देखने तक को तैयार नहीं है। कुछ दिनों पूर्व एक हादसे में पैर टूटने के कारण घायल हो गया था।

गरीबी के चलते गांव में ही किसी वैद्य से इलाज करा रहा था, लेकिन आराम नहीं मिला। सोनू ने बताया कि इतनी दूर से अस्पताल तक किसी तरह आता हूं, लेकिन तब मायूसी हाथ लगती है जब डाक्टर उसे फिर अगले दिन आने के लिए कह देते हैं। ये कहते हुए वह सोनू की आंखों में आंसू भर आए।

सोनू की बेबसी के बहते आंसू अस्पताल के सिस्टम पर सवाल खड़े कर रहा है। सोनू का कहना है कि आखिर क्यों उसे बार-बार अस्पताल से बिना इलाज के वापस लौटाया जा रहा है।

केस-2

शामली निवासी शबनम ने बताया कि उनके हाथ में फेक्चर हो गया था। मेडिकल में सुबह से ही बड़ी मशक्कत के बाद पर्चा कटवाया है। अब यहां आकर डाक्टर साहब नहीं आए हैं। ओपीडी में खड़े सहायक ने बताया है कि डाक्टर साहब इमरजेंसी में किसी मरीज को देखने गए हैं।

शबनम का कहना है कि हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर उसे लौटा दिया जाता है। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के नदारद रहने से मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। डाक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। जिससे गरीब मरीज को समय से बेहतर इलाज मिल सके।

केस-3

गांव कुंडा निवासी रोहित ने बताया कि जिला अस्पताल में डाक्टर समय से नहीं बैठ रहे हैं। आपातकालीन कक्ष के बराबर में सर्जन केओपीडी कक्ष के सामने मरीजों की लंबी लाइन लगी रही, लेकिन ओपीडी में डाक्टर साहब नदारद रहे। रोहित ने बताया कि एक्सरे कराने के बाद जांच रिपोर्ट डाक्टर को दिखानी थी, लेकिन डाक्टर नहीं मिले।

इतनी दूर से पौसे खर्च करके सरकारी अस्पताल में इसलिए आते हैं, ताकि कम खर्च पर बेहतर इलाज मिल सके, लेकिन यहां इलाज तो दूर की बात है डाक्टर देखना तक मुनासिब नहीं समझते।

केस-4

खरखौदा निवासी आसिफ ने बताया कि उनके बच्चे के गले में फोड़ा है। मेडिकल चिकित्सालय में किसी सर्जन को दिखाना था। सुबह से ही बड़ी मश्किलों के बाद लाइन में घंटों लगकर पर्चा कटवाया है। अब यहां आकर डाक्टर साहब का इंतजार कर रहे हैं। अभी कर डाक्टर नहीं आए हैं। बच्चे के गले में अधिक परेशानी हो रही है। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक अपनी मनमानी करते हैं। जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है।

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