सन 1967 में एक सुपर हिट फिल्म आई थी। नाम था ‘उपकार’। इस फिल्म में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के जय-जवान, जय किसान नारे को केंद्र में रखकर एक गीत था। गीत के बोल थे, मेरे देश की धरती सोना, उगले-उगले हीरे मोती। यह बात उत्तर प्रदेश पर हूबहू लागू होती है। दुनिया की सबसे उर्वर भूमि में शुमार इंडो गंगेटिक बेल्ट का सबसे विस्तृत क्षेत्र, गंगा, यमुना, सरयू जैसी सदानीरा नदियां, भरपूर बारिश, 9 तरह की कृषि जलवायु क्षेत्र (एग्रो क्लाइमेटिक जोन)। इसमें उगने वाली अलग-अलग फसलें इसका सबूत हैं। उत्तर प्रदेश में पांच साल के आंकड़े खेतीबाड़ी के क्षेत्र में हुई तरक्की के प्रमाण हैं। 2016-2017 के दौरान खाद्यान्न उत्पादन 558 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2020-2021 में बढ़कर 619.47 एमटी हो गया। इसी समयावधि में तिलहन का उत्पादन 12.41-17.95 एमटी, फलों एवं सब्जियों का उत्पादन 383.19 403.78 एमटी, दुग्ध उत्पादन 277.697 305 लाख एमटी, मत्स्य उत्पादन 618 7.47, गन्ना उत्पादन 1486.57 2232.82, चीनी उत्पादन 8773 11059, लाख एमटी हो गया। इसी क्रम में प्रति हेक्टेयर गन्ने की उत्पादकता 72.38- 81.5 टन हो गई। इस दौरान गन्ना मूल्य का भुगतान 2012-2017 तक 0.95 लाख करोड़ रुपये था जबकि पिछले पांच साल में यह बढ़कर 151 करोड़ रुपये हो गया। यही नहीं इस दौरान सरकार ने किसानों के शुरू लाभपरक योजनाओं के मद में उनके बैंक खातों में करीब करीब एक लाख 80 हजार करोड़ रुपये भेजे।
अकेले प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना से लाभान्वित किसानों की संख्या रही 260 करोड़। अब तक 11 किश्तों में इनके खातों में 48311 करोड़ रुपये भेजे जा चुके हैं। योगी सरकार-1 किसानों के हित मे शुरू किये गये कार्यों का सिलसिला योगी सरकार-2 में भी जारी है। उत्पादन बढ़ाने के साथ सरकार का जोर अब खेतीबाड़ी को बड़े पैमाने पर रोजगार से जोड़ने का है। यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। विधानसभा चुनाव के पहले जारी लोककल्याण संकल्प पत्र-2022 में भी भाजपा ने खेतीबाड़ी के जरिए बड़े पैमाने पर स्थानीय स्तर पर रोजगार देने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। मसलन प्रधानमंत्री कुसुम परियोजना के जरिए किसानों को सोलर ऊर्जा के अधिकतम प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा। किसानों को भारी अनुदान पर दिये जाने वाले सोलर पंप से सिंचन क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे पैदा होने वाली अतिरिक्त बिजली को सरकार खरीद लेगी।
अकेले इस योजना से डीजल द्वारा होने वाले प्रदूषण और इसको खरीदने में होने वाला संसाधन भी बचेगा। साथ ही बिजली की बिक्री से आय भी बढ़ेगी। प्रस्तावित जैव ऊर्जा नीति के लागू होने पर कंप्रेस्ड बायोगैस, बायो इथनॉल,बायोडीजल एवं बायोकोल इकाइयों के लिए कच्चे माल के रूप में फसल अपशिष्ट से लेकर गोबर्धन तक के जिस तरह तय दाम मिलने लगेंगे उससे भी स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर सृजित होंगे।
इसी तरह प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में बनने वाले 6 मेगा फूड पार्क भी उस क्षेत्र की खेतीबाड़ी का कायाकल्प करने में मददगार साबित होंगे। इससे सर्वाधिक संभावनाओं वाले खाद्य प्रसंस्करण और इससे संबंधित ग्रेडिंग, पैंकिंग, ट्रांसपोर्टेशन और विपणन के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार मिलेगा। यही लाभ उन फसलों एवं उन उत्पादों के प्रोसेसिंग से भी होगा, जिनको केंद्र और प्रदेश सरकार ने ओडीओपी में शामिल किया है।
मालूम हो कि मुजफ्फरनगर एवं अयोध्या का गुड़, प्रतापगढ़ का आंवला, कुशीनगर एवं कौशांबी का केला, सिद्धार्थनगर का कालानमक चावल, बलरामपुर एवं गोंडा का गुड़, औरैया का देशी घी, हाथरस का हींग आदि ऐसी फसलें या फसल उत्पाद हैं जिनको प्रदेश सरकार ने अपनी बेहद महत्वाकांक्षी योजना ओडीओपी में चयनित किया है। 25 हजार करोड़ रुपए से शुरू होने वाली सरदार वल्लभभाई पटेल एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन के तहत बनने वाली छंटाई एवं ग्रेडिंग की इकाइयां, कोल्ड चेन चेम्बर्स, गोदाम एवं प्रोसेसिंग सेंटर इसमें मददगार होंगे।
खेतीबाड़ी को समग्रता में देखें तो रोजगार उपलब्ध कराने में पशुपालन एवं मत्स्य पालन की बेहद अहम भूमिका होती है। एक दुधारू पशु तो पशुपालक के लिए बैंक जैसा होता है। इससे उसे रोज या हर महीने आय होती है। पशुपालन को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार एक हजार करोड़ रुपए की लागत से नंद बाबा दुग्ध मिशन शुरू करेगी। इस मिशन के जरिए सरकार की योजना हर गांव में दुग्ध सहकारी समितियां गठित करना और पशुपालकों को गांव में ही उनके दूध का वाजिब दाम दिलाना है। इसी तरह मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए भाजपा ने संकल्पपत्र में निषादराज बोट सब्सिडी योजना शुरू करने का वायदा किया है। इसके तहत मछली बीज के उत्पादन की इकाई लगाने के लिए सरकार 25 फीसदी तक अनुदान देगी। नाव के लिए भी मछुआरा समुदाय को 40 फीसदी तक अनुदान देय होगा। प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में 6 अत्याधुनिक मछली मंडियों की स्थापना के पीछे भी यही मकसद है।
खेती संबंधित क्षेत्र के कृषि जलवायु क्षेत्र और बाजार की मांग के अनुसार हो इसके लिए सरकार का जोर जैविक खेती पर है। हाल ही में विश्व बैंक ने भी इस संबंध में रुचि दिखाई है। वह अगले पांच साल में खेतीबाड़ी और किसानों की बेहतरी के लिए 35 हजार करोड़ खर्च करने को तैयार है। इस बाबत बैंक के प्रतिनिधि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कृषि एवं एमएसएमई विभाग के शीर्ष अधिकारी से मिलकर अपनी कार्ययोजना भी प्रस्तुत कर चुके हैं।