Sunday, June 16, 2024
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श्री हेमकुंड साहिब यात्रा में जत्थे को राज्यपाल और संतों ने किया रवाना

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  • यात्रा का शुभारंभ, पंच प्यारों के नेतृत्व में पहला जत्था हुआ रवाना

जनवाणी ब्यूरो |

ऋषिकेश: गुरूद्वारा हेमकुंड साहिब, ऋषिकेश से बुधवार को उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि.) गुरमीत सिंह, परमार निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती, हंस फाउंडेशन की प्रणेता मंगला माता, भोले जी महाराज ने पंच प्यारों की अगुवाई में श्रद्धालुओं के जत्थे को रवाना किया। इसके साथ ही हेमकुंड धाम की यात्रा का भी शुभारंभ हो गया।

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गुरूद्वारा हेमकुंड साहिब, ऋषिकेश से आज परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती, गवर्नर उत्तराखंड गुरमीत सिंह, सेवा की मूर्ति माता मंगला एवं भोले जी, पर्यावरण प्रहरी पद्मश्री बलवीर सिंह सीचेवाल ने पंचप्यारों व उनके नेतृत्व में जाने वाले सभी श्रद्धालु यात्रियों को माला पहनाकर और रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंटकर श्री हेमकुंड साहिब यात्रियों के दल को शुभकामनायें देकर रवाना किया।

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स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि उत्तराखंड आध्यात्मिक ऊर्जा का पावर बैंक है। चाहे चार धाम यात्रा हो या श्री हेमकुंड साहिब यात्रा हो यहां आने पर हृदय अध्यात्म और आनन्द से भर जाता है। यह शान्ति, शक्ति और भक्ति की भूमि है। यह हमारा स्विट्जरलैण्ड भी है और स्पिरिचुअललैण्ड भी है क्योंकि यहां पर मां गंगा हैं और हिमालय भी है इसलिये यह पूरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।

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उत्तराखंड की धरती तप की धरती है, संयम की धरती है। यहां पर गुरूगोबिंद सिंह जी ने भी आकर तपस्या की, यह उनकी भी तपोभूमि है। इसलिये इसे प्रदूषण से मुक्त और पर्यावरण से युक्त बनाये रखना है क्योंकि पवणु गुरू पानी पिता माता धरति महतु।। के संदेश को सभी यात्रियों को याद रखना है। यात्रा गप करते हुये नहीं बल्कि जप करते हुये और जपजी साहब जी का पाठ करते हुये यात्रा करना है।

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गवर्नर उत्तराखंड गुरमीत सिंह ने श्री हेमकुंड साहिब जाने वाले सभी यात्रियों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि पहाड़ की संस्कृति व संस्कारों को बनाये रखते हुये इस दिव्य यात्रा का आनन्द लें।

स्वामी जी ने कहा कि गुरू नानक देव जी से लेकर दसवें गुरू, गुरूगोबिंद सिंह जी ने जीवन के बड़े ही प्यारे मंत्र दिये। नाम जपना, हमेशा ईश्वर का सुमिरन करना, किरत करना और ईमानदारी से आजीविका अर्जित करना। वंड छकना, अर्थात दूसरों के साथ अपनी कमाई साझा करना, जरूरत मंदों को दान देना एवं उनकी देखभाल करना।

वास्तव में यही जीवन जीने व सेवा करने का माध्यम है। ईमानदारी से जीवन जीना, अपराध से दूर रहना और प्रकृति के अनुरूप जीना यही सच्चा धर्म है। हर क्षण प्रभुनाम का सुमिरण करना इस मंत्र के साथ आप सभी अपनी यात्रा का संकल्प लें क्योंकि उत्तराखंड पर्यटन की नहीं तीर्थाटन की भूमि है। आज्ञा भई अकाल की, तभी चलायो पंथ, सब सिखन को हुक्म है, गुरू मानियो ग्रंथ। अद्भुत संदेश है गुरु गोबिंद सिंह जी का उसे आत्मसात कर अपनी यात्रा का शुभारम्भ करें। यह यात्रा जागृति और नई ऊर्जा के समावेश की है।

स्वामी जी ने कहा कि आज अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस भी है, पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिये जैवविविधता के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना होगा ताकि प्रकृति के साथ सद्भाव युक्त व्यवहार हो।

उत्तराखण्ड तो प्राकृतिक सौन्दर्य, अपार जल से युक्त नदियों और प्राणवायु ऑक्सीजन से समृद्ध राज्य है। इस राज्य में ऑक्सीजन, जल, आयुर्वेद व जड़ी-बूटी, योग, ध्यान व अध्यात्म चारों ओर समाहित है। यहां पर अपार प्राकृतिक संपदा है।

यह राज्य आध्यात्मिक ऊर्जा का पावर बैंक हैं जो पूरी दुनिया को इनरपावर, आध्यात्मिक शक्ति देने वाला देवत्व से युक्त राज्य है इसलिये उत्तराखंड की इन वादियों में प्रवेश करते ही अपनी जीवनशैली को बदलना होगा, हमें ग्रीड कल्चर से ग्रीन कल्चर की ओर बढ़ना होगा। ग्रीड कल्चर से नीड कल्चर की ओर बढ़ना होगा।

नीड कल्चर से नये कल्चर की ओर कदम बढ़ाने होंगे। साथ ही यूज एंड थ्रो कल्चर से यूज एंड ग्रो कल्चर की ओर बढ़ना होगा और सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल बंद करना होगा। आप यात्रा पर जाये परन्तु उत्तराखंड की पवित्रता का भी ध्यान रखे। यहां के जल, वायु और पवित्र नदियों, पहाड़ों और जंगलों की समृद्धि को बनाये रखे।

उत्तराखंड के इस नैसर्गिक समृद्धि, सुन्दरता और शान्ति को बनायें रखने के लिये सहयोग प्रदान करे। अपने कचरे की जिम्मेदारी स्वयं लें, वाटरबाट्ल्स को जंगल में ही फेंक कर न आये। इन पहाड़ों की संस्कृति और संस्कारों को जीवंत बनायें रखने के लिये पहाड़वासियों का महत्वपूर्ण योगदान है। यहां की पवित्रता को बचाये रखने के लिये सभी को एकल उपयोग प्लास्टिक से परहेज करना होगा।

इस अवसर पर ब्रह्मस्वरूप जी ब्रह्मचारी जी, जयराम आश्रम, कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय प्रोफेसर दिनेश चन्द्र शास्त्री, महंत श्री भरत मन्दिर श्रीवत्सल प्रपन्न जी और विशिष्ट विभूतियों उपस्थित रहीं।

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