आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर विगत 13 से 15 अगस्त तक राष्ट्रव्यापी स्तर पर घर घर तिरंगा फहराने का एक व्यापक अभियान चलाया गया। तिरंगा यात्राएं तो अभी भी कहीं न कहीं निकाली जा रही हैं। चूंकि स्वयं प्रधानमंत्री ने घर-घर तिरंगा फहराने की अपील की थी इसलिए सरकार के लगभग सभी मंत्रालय व राज्य सरकारें इस अभियान में सक्रिय रहीं। घर घर तिरंगा अभियान के दौरान तमाम तरह की बातें, अंतर्विरोध, प्रवचन सुनने को भी मिले। जहां सत्ताधारियों द्वारा इस अभियान में शिरकत करने को ही राष्ट्रभक्ति का पैमाना बताया गया, वहीं अतीत में तिरंगे की स्वीकार्यता व अस्वीकार्यता से जुड़े कई गड़े मुर्दे भी उखाड़े गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो तिरंगे का गुणगान करते हुए कहा कि-‘भारत के तिरंगे में केवल तीन रंग नहीं हैं, बल्कि हमारा तिरंगा हमारे अतीत के गौरव, वर्तमान के लिए हमारी प्रतिबद्धता और भविष्य के हमारे सपनों का प्रतिबिंब है। हमारा तिरंगा भारत की एकता, अखंडता और विविधता का प्रतीक है।’ पिछले दिनों सूरत में एक तिरंगा यात्रा को संबोधित करते हुये प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने तिरंगे में देश का भविष्य व उसके सपने देखे थे और उन्होंने इसे कभी किसी भी तरह झुकने नहीं दिया।’ तिरंगे की इतनी महत्ता बताने के बावजूद घर घर तिरंगा अभियान के किसी झंडाबरदार के मुंह से इसे फहराने के साथ साथ इसके मान सम्मान व इसकी संहिता के बारे में प्रवचन देते नहीं सुना गया।
किसी को यह कहते नहीं सुना गया कि तिरंगा खादी के कपड़े का ही होना चाहिए, गुजराती सिल्क या चाइनीज पॉलिस्टर का नहीं। किसी ने यह नहीं बताया कि इन राष्ट्रीय ध्वज को कब और किस प्रकार से ससम्मान उतारना भी है। केवल इसके सम्मान से जुड़े भावनात्मक किस्से जरूर सुनाए गए। यह विवाद जरूर सामने आए कि स्वतंत्रता आंदोलन के समय किस विचारधारा के लोगों ने तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। और वही लोग आज इसे न केवल स्वीकार करते दिखाई दिए, बल्कि इसी राष्ट्रीय तिरंगे झंडे के समक्ष नत मस्तक होते भी दिखाई दिए।
परंतु अफसोस तो यह कि न तो स्वयं को तिरंगे का उत्तराधिकारी बताने वालों ने तिरंगे की संहिता पर कोई चर्चा की और तिरंगे के नये नवेले संरक्षकों से तो खैर इसकी उम्मीद ही क्या करनी? यहां तक कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने जिन्होंने अपने कर्मचारियों के घरों पर झंडा फहराने से लेकर आसपास के घरों में भी झंडारोहण करने हेतु लोगों को प्रेरित करने के निर्देश दिये थे उन्होंने भी इन झंडों को ससम्मान उतारने, इसे सहेज कर रखने व इसे क्षतिग्रस्त होने से बचाने संबंधी कोई निर्देश नहीं दिया। राष्ट्र प्रेम में सराबोर भारतवासियों के घरों पर फहरा रहे यह तिरंगे राष्ट्रीय ध्वज अब क्षतिग्रस्त होने लगे हैं। उनका इतना दुरुपयोग हो रहा है जिन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। कोई कमर में गमछे की तरह लपेटे घूम रहा है तो कोई अपने बैठने का आसन बनाए हुये है। कोई पोछे की तरह इस्तेमाल कर रहा है तो कोई रूमाल की तरह इस्तेमाल कर अपने मुंह का पसीना पोछता नजर आ रहा है। हद तो यह है कि बड़ी संख्या में तिरंगे कूड़े के ढेर में पड़े नजर आने लगे हैं। वैसे तिरंगे के सम्मान की एक बानगी तो उसी समय सामने आई थी, जब हरियाणा के करनाल में नगरपालिका की कूड़ा उठाने वाली एक गाड़ी पर एक सफाई कर्मचारी बहुत सारे तिरंगे झंडे इकट्ठे रखकर झंडे बांटता दिखाई दिया था। अभी भी आए दिन मीडिया के माध्यम से तिरंगे के अपमान से जुड़ी अनेक खबरें कहीं न कहीं से आती रहती हैं। उल्टे सीधे झंडे की तमीज न कर पाना यानी केसरिया पट्टी ऊपर होगी या हरी, यह तो आम बात है। इसी तिरंगा अभियान के दौरान भी कई जगह इसतरह की गलतियां दोहराने के समाचार मिले।
बहरहाल, ऐसे में जबकि सत्ता व सरकारों अथवा प्रशासन की ओर से इस विषय पर कोई संज्ञान नहीं लिया जा रहा है इसलिए अब यह देशवासियों का कर्तव्य है कि वे अपने व अपने पड़ोसियों के घरों दुकानों व कार्यालयों पर जहां कहीं तिरंगे राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहे हों उन्हें वे ससम्मान उतारें व उन्हें तह करके सुरक्षित रखें, ताकि अगले वर्ष स्वतंत्रता दिवस अथवा गणतंत्र दिवस के अवसर पर उन्हें पुन: फहराया जा सके। तेज हवा, बारिश, धूप-मिट्टी में फटने से पहले इन झंडों को आदर व सम्मान सहित उतार लेना चाहिए। जो लोग अज्ञानतावश राष्ट्रीय ध्वज का दुरुपयोग या अपमान करते दिखाई दें, उन्हें प्यार से समझा बुझाकर ऐसा करने से रोकें तथा तिरंगे की अहमियत व इसके आदर व सम्मान के विषय में बताएं। उन्हें यह भी बतायें कि तिरंगे का अर्थ है देश के संविधान का सम्मान, तिरंगा यानी सांप्रदायिकता व जातिवाद मुक्त भारत। तिरंगा का सम्मान यानी रिश्वतखोरों, हत्यारों, दुष्कर्मियों, संविधान व लोकतंत्र विरोधियों व बेईमानों का विरोध व इनका बहिष्कार।
तिरंगे की आबरू का मतलब है सांप्रदायिक सद्भाव व पारस्परिक सौहार्द वाला भारत। जो इन बातों को नहीं जानता या मानता है उसके लिए तिरंगा न तो फहराने की चीज है न ही ये इसका सम्मान जान सकते हैं। इसलिए अब यह आम लोगों का ही फर्ज है कि घर घर तिरंगा अभियान की अपार सफलता के बाद, उसी राष्ट्रीय तिरंगे का ‘सम्मान’, जो कि अब और बड़ी चुनौती बन चुका चुका है इससे किस तरह निपटा जाए।