- नेत्रहीन सोनू कपूर और विकलांग गुलजार के प्यार पर लोग फिदा
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: ‘तेरे जैसा यार कहां, कहां ऐसा याराना, याद करेगी दुनिया, तेरा मेरा अफसाना’। दो ऐसे जिगरी यारों की कहानी जिनमें से एक खुद दो कदम भी आगे नहीं चल सकता तो दूसरा खुद अकेले दो सीढ़ियां भी नहीं चढ़ पाता। इसके बावजूद इनके हौंसलों की उड़ान को सलाम।
ब्रह्मपुरी निवासी कैलाश कपूर उर्फ सोनू व ढवाई नगर निवासी गुलजार सैफी ये वो दो नाम हैं जो कि शरीर से तो विकलांग हैं लेकिन हौंसलों से नहीं। विकलांगता को अभिशाप की जगह वरदान मानने वाले यह दोनों दोस्त इस समय उन लोगों के लिए नजीर बन चुके हैं, जो हालातों से हार मान चुके हैं। सोनू कपूर पूरी तरह से नेत्रहीन हैं जबकि गुलजार सैफी अपने दोनों पैरों से पूरी तरह विकलांग हैं। इसके बावजूद इनके हौंसले सातवें आसमान पर हैं।
यूट्यूब चैनल बनाकर लोगों को कर रहे मोटिवेट
एक-दूसरे पर जान निसार करने वाले ये दोनों जिगरी दोस्त खुद शरीर से विकलांग होने के बावजूद दूसरे लोगों को माटिवेट कर रहे हैं। इन दोनों ने फील्ड भी वो चुना जिसके जरिए लोगों को किसी भी प्रकार से शिक्षित कर सकें। सोनू कपूर चौधरी चरण सिंह विवि में कार्यरत हैं जबकि गुलजार प्राइमरी स्कूल में सरकारी सहायक अध्यापक हैं। इस कार्य के साथ साथ इन दोनों ने मिलकर अब अपना एक यूट्यूब चैनल ‘तू हारना नहीं’ भी शुरु किया है।
इस चैनल के माध्यम से यह दोनों दोस्त हालातों से हार चुके लोगों को बेहद खूबसूरत टिप्स दे रहे हैं। गुलजार सैफी कहते हैं कि जो लोग हर तरह से नाउम्मीद हो चुके हैं हम उनके लिए आशा की नई किरण बनेंगे। उधर सोनू कपूर सीधे गुलजार पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं ‘तेरे बिन मैं क्या, कुछ भी नहीं’। आज के इस माहौल में इन दोनों की दोस्ती अपने आप में एक नजीर बन चुकी है।
केन्द्र, प्रदेश सरकार कर चुकी है सम्मानित
गुलजार सैफी को तो उनकी जन सेवाओं के लिए केन्द्र व प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। 2013 में प्रदेश सरकार द्वारा व 2015 में केन्द्र सरकार द्वारा उन्हें ‘उत्कर्ष्ट रोल मॉडल एवॉर्ड’ से नवाजा जा चुका है। केन्द्र में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली द्वारा उन्हें एक समारोह के दौरान सम्मानित किया गया था।
आॅस्कर एवार्ड की दहलीज पर ला खड़ा किया था मेरठ को
जिस समय देश पोलियो के खिलाफ जंग लड़ रहा था, उस समय गुलजार व सोनू मिलकर लोगों में पोलियों को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर कर रहे थे। पोलियो उन्मूलन को लेकर लड़ी जा रही इस जंग ने गुलजार व सोनू की मेहनत को विश्व पटल पर पहचान दिलाई। इसी का नतीजा था कि एक अमेरिकी फिल्म डायरेक्टर आयरन टेलर ब्रूडस्टॉय ने यूनिसेफ, गूगल व वरमिलियन पिक्चर्स के बैनर तले एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘द फाइनल इंच’ बनाई जिसमें खुद गुलजार सैफी ने काम किया और बाद में यह फिल्म आॅस्कर की शॉट डॉक्यूमेंट्री फिल्म में नोमिनेट हुईऔर दूसरे स्थान पर रही थी।