Friday, April 19, 2024
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जिंदा रहना है तो करो जैविक खेती

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  • संघ प्रमुख मोहन भागवत बोले-भारत भूमि खस्ताहाल, फिर भी शानदार

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख डा. मोहन राव भागवत ने कहा कि भारत की मातृ भूमि ऐसी हैं, आज खस्ता हालत में है, फिर भी शानदार हैं। अधिकांश अन्न भूमि से मिलता हैं। भूमि से जो वनस्पति आती हैं, औषधीय गुण रखने वाली वनस्पति आती हैं, वो सब हमारी थाली में रहती हैं। मांसाहारी लोग भी बड़ी तादाद में भारत में रहते हैं। वो भी श्रावण माह में मांस का सेवन नहीं करते।

भारत वर्ष का मुख्य अन्न शाकाहारी अन्न हैं। क्योंकि भारत जैसी जमीन सबके पास नहीं हैं। विदेशों में पशु-पक्षियों को मारकर खाते हैं, इसका विकल्प उनके पास दूसरा नहीं हैं। होगा तो भी सदियों से आदत बनी हैं, उसके चलते मुख्य अन्न मांस ही होता हैं। भारत में मांस खाते है तो चावल या फिर रोटी के साथ खाते हैं, लेकिन विदेशों में ऐसा नहीं होता, वहां का मुख्य अन्न मांस ही हैं। स्टेबल फूड, ये अग्रेजी का शब्द हैं।

इसको माना जाता हैं। आलू को भी स्टेबल फूड माना जाता हैं। वो अपनी पद्धति से भोजन करते हैं, हम अपनी पद्धति से भोजन करते हैं। इस तरह से आरआरएस प्रमुख ने किसानों से जैविक खेत अपनाने का आह्वान कर दिया। कहा कि जिंदा रहना है तो जैविक खेती पर लौटना होगा। आरआरएस प्रमुख मोहन भागवत हस्तिनापुर की अय्योध्यापुरी मंडप में महाभारत कालीन प्राचीन भूमि से भारतीय किसान संघ के कार्यक्रम के अंतिम दिन बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।

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उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता में भगवान ने कहा कि ‘स्वधर्मे में निघ्नम श्रेयाह परमधर्मों भयावह’ ये धर्म का अर्थ है पूजा नहीं, बल्कि अपनी प्रकृति, जैसे हम बने अपनी सदियों अनुभव से, सदियों के ज्ञान से बने हैं। जीवन जीते-जीते एक रास्ता खोजा हैं। वो यहां की भूमि के लिए वायुमंडल के लिए, परिस्थिति को देखते हुए, आकाक्षाओं को देखते हुए, वो हमारे लिए ठीक हैं। अपने भरोसे जीना और अपने स्वयं के लिए जीना। 75 वर्ष उत्सव कर रहे हैं।

अंग्रेजों का विशाल साम्राज्य था, उनके साम्राज्य में कहते थे कि सूर्य अस्त नहीं होता था, लेकिन 1857 के युद्ध ने उन्हें ये दिखा दिया कि हम सोच रहे है कि भारत में स्थपरद हो गए, लेकिन ऐसा नहीं हैं। हमारे द्वारा जीते गए हमारे बंदूक की धाक पर जिनको हमने दबाकर रखा वो लोग अपने सारे…भेद भूलकर सारे स्वार्थ छोडकर हमको इस देश से बाहर निकालने के लिए एक होकर खड़े हो जाते हैं, इनका भरोसा रखना ठीक नहीं।

इनको दबाये रखना, इतना काफी नहीं, इनको भूला देना पड़ेगा। पहले तो अग्रेजों ने हमारी व्यवस्थाओं को ध्वस्त किया। पत्थरों से पहले भवन बनते थे। सरकारी भवन पत्थरों से बनते थे। महाराष्टÑ में एक जाति विशेष के लोग पत्थर तोड़ने की कला थी, वही बिल्डिंग बनाते थे। इसमें वो बड़े कुशल थे। अग्रेजों ने कानून बना दिया कि भारत वर्ष में जो भी नया सरकारी भवन बनेगा,

उसके लिए इग्लैंड में पार्टलैंड एक जगह हैं, उसमें जो सीमेंट बनता था, उस सीमेंट का ही प्रयोग करना होगा। ये कानून बना दिया। तब 30 हजार परिवार बेरोजगार हो गए। उन लोगों ने आवाज उठाई तो उन्हें अपराधी करार कर दिया गया। अंग्रेजो ने हमारी शिक्षा को भी नष्ट किया। इसी तरह कृषि को भी नष्ट किया। 10 हजार साल से भारत मे खेती की जा रही थी। किसान की खेती उसकी प्रयोगशाला थी, जिसे किसान ने उत्तम खेती किया किसानों ने।
400 साल पहले विदेश में गाय नहीं थी।

भारत से देशी गाय अंग्रेज ले गए, जिसकी ब्रीड चेंज करके कई प्राजातियों में तब्दील कर दिया। कहा कि भारत की गाय ज्यादा दूध नहीं देती, ऐसा प्रचार किया। दूध व घी मांगने पर दिया जाता था, बेचा नही जाता था। गाय दूध के लिए नही खेती के लिए थी। गाय का बैल खेती में काम करता था। पेशाब-गोबर प्रयोग होता था। अब रासायनिक ने खेती को नष्ट कर दिया हैं। हमारे भीतर भी रसायन एंट्री कर रहा हैं।

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रसायन सब्जी खेती के जरिये आदमी के भीतर जा रहा है। पंजाब से कैंसर ट्रेने चलने लगी, हमारे पास सही रास्ता है। वापस लौटने का। रसायन छोड़कर लौटना होगा प्राकृति खेती पर। स्वतंत्रा का 75 वर्ष मना रहे है। अफ्रीका की खेती 400 साल में बंंजर बन गई। परंपरागत कृषि ही श्रेष्ठ है। मेढक का एक्सपोर्ट भारत से किया गया। मेढक, कीडेÞ को खाता था। मेढक ज्यादा हो गया तो उसे सर्प खाता था। रासायनिक खेती चिपके नहीं, बल्कि जैविक खेती अपनाने का उन्होंने किसानों से आह्वान कर दिया।

तालाब व नदिया गांवों में थी, ये प्रकृति का चक्र था। इसे लागू करने की आवश्यकता है। किसानों की समस्याएं ये मैं मानता हूं। मांगे भी है। किसानों को खेती की लागत कम करनी होगी, तभी आमदनी बढेÞगी। हमारा देश अंहिसा का है। अहिंसा पालन करें। तमाम रीति-रिवाज भी जंगल से हमें मिले। किसान आंदोलन ही नहीं करता, बल्कि किसान संघ जैविक खेती करें। किसान भारत वर्ष का प्राण है। खेती में परिवर्तन का डंका बजाना होगा।

भागवत प्राचीन धरोहर से हुए रूबरू

भारतीय किसान संघ के कार्यक्रम में दो दिन आरआरएस चीफ मोहन भागवत ने प्राचीन हस्तिनापुर की धरती पर बिताये। उनका ये आगमन इतिहास में दर्ज हो गया। मोहन भागवत हस्तिनापुर की प्राचीन धरोहर से भी रूबरू हुए। यहां का इतिहास जानने में बेहद उत्सुकता दिखाई। शनिवार की सुबह मोहन भागवत हस्तिनापुर पहुंचे थे तथा रविवार को उन्होंने हस्तिनापुर के इतिहास को करीब से देखा भी और जाना भी।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को श्रीकर्ण मंदिर के इतिहास और उसकी महत्ता के बारे में पूछा। मंदिर की गुंबज पर जिस तत्व को केन्द्र सरकार ने उतरवाया था, वो क्या था? इसके बारे में भी बताया गया। ये तत्व क्या था? कहां ले गए? सरकार के पास ये मौजूद हैं या फिर नहीं? इसकी भी जानकारी करने में उत्सुकता दिखाई। ये तमाम महत्वपूर्ण बिन्दुओं को श्रीकर्ण मंदिर के पुजारी ने बताया। इसे सुनकर मोहन भागवत हतप्रभ रह गए। मंदिन के दर्शन किये..पूजा करने के बाद लौट गए।

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प्राचीन पांडेश्वर मंदिर भी पहुंचे। बताया गया कि यहां जो शिवलिंग हैं, उसे पांच पांडवों ने स्थापित कर पूजा-अर्चना की थी। इस मंदिर के महंत स्वामी शंकर देव ने विधि-विधान से मोहन भागवत को भगवान आशुतोष का रुद्राभिषेक कराया गया। मंदिर का इतिहास कितना प्राचीन हैं, इसके तमाम तथ्यों से भी अवगत कराया। मोहन भागवत कर्ण मंदिर मेंं लगभग 15 मिनट रुके। कर्ण मंदिर के महंत स्वामी शंकर देव एवं नेचुरल साइंसेज ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं शोभित विवि के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंक भारती ने संयुक्त रूप से श्रीमद् भागवत गीता भेंट की।

कर्ण मंदिर एवं बूढ़ी गंगा का जाना इतिहास

मोहन भागवत ने श्री कर्ण मंदिर एवं बूढ़ी गंगा के बारे मेंं जाना। प्रियंक भारती ने बूढ़ी गंगा पर हुए फर्जी आवंटन के बारे मेंं मोहन भागवत को अवगत कराया। वहीं, कर्ण मंदिर के महंत स्वामी शंकर देव ने मंदिर की जमीन एवं गलत तरीके से हुए आवंटन के बारे मेंं जानकारी दी।

किसान सम्मेलन या फिर 2024 पर फोकस

बेहद सरल स्वभाव…तमाम सुरक्षा चक्र को तोड़कर किसानों से सीधे संवाद करना, ये काबिलियत राष्टÑीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख डा. मोहन राव भागवत में ही हो सकती हैं। दो दिन के उनके इस दौरे के दौरान कई बार सुरक्षा चक्र टूटा। रविवार की सुबह स्नान किया, फिर पूजा-अर्चना करने के लिए पांडवों द्वारा स्थापित शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करने के लिए पहुंच गए। ये बड़ा संदेश देने में वह कायमयाब भी हो गए।

फिर शनिवार को मोहन भागवत और कोर-कमेटी के साथ संवाद स्थापित किया, जिसमें सिर्फ पदाधिकारियों की मौजूदगी रही। मोहन भागवत का दो दिन का गन्ना बेल्ट पश्चिमी यूपी का दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। फिर किसान सम्मेलन में उनका आगमन भी बहुत कुछ कह रहा हैं। गौ आधारित जैविक कृषि पर लौटने का आरआरएस चीफ ने आह्वान भी किया, लेकिन गन्ना बेल्ट में होने के बावजूद उन्होंने गन्ने पर कोई जिक्र नहीं किया। 45 मिनट का उनका भाषण किसानों पर केन्द्रित रहा।

बीच में अंग्रेज भी निशाने पर आये, लेकिन पूरा फोकस जैविक खेती ही रहा। दरअसल, पश्चिमी यूपी एक तरह से भारतीय किसान यूनियन(टिकैत)का गढ़ हैं। हालांकि भाकियू टिकैत अराजनीतिक हैं, लेकिन किसानों के मुद्दों और समस्याओं को लेकर आंदोलन व पंचायत करती रहती हैं। हाल ही में भाकियू टिकैत की महापंचायत क्रांतिधरा पर हुई। कमिश्नरी पार्क पर ये पंचायत हुई। अच्छी भीड़ भी जुटी। दूसरे भाकियू (अराजनीतिक) ग्रुप ने भी कमिश्नरी पर पंचायत की।

इसमें भी केन्द्र सरकार को निशाना बनाया गया, लेकिन इसी बीच आरआरएस के भारतीय किसान संघ ने भी कार्यक्रम के लिए हस्तिनापुर की प्राचीन धरती का चयन किया। मार्च माह में इस तरह से तीन बड़े किसानों को फोकस करने वाले कार्यक्रम मेरठ की क्रांतिकारी धरती पर हुए। तीनों ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम रहे। 2024 से ठीक पहले अचानक किसान फिर से फोकस में आ गए हैं।

किसानों को साधने के लिए हर कोई जुट रहा हैं। वैसे विपक्ष की तरफ से कोई पंचायत या फिर रैली वेस्ट यूपी में अभी नहीं की गई हैं, लेकिन जिस तेजी के साथ घटनाचक्र चल रहा हैं, उसमें किसान महत्वपूर्ण भूमिका में आते हुए दिखाई दे रहे हैं। पश्चिमी यूपी किसान राजनीति का भी बड़ा सेंटर हैं, इसलिए भी पश्चिमी यूपी की धरती को ही महापंचायत करने के लिए चुना जा रहा हैं।

हालांकि राजनीति को लेकर किसी भी किसानों के कार्यक्रम में जिक्र नहीं हुआ, लेकिन बिना जिक्र किये, एक तरह से पूरा फोकस ही 2024 को कर दिया गया हैं। 20 मार्च को दिल्ली में भाकियू डेरा डालने का ऐलान कर चुकी हैं, वहां भी किसान कुछ मुद्दों को लेकर बैठेंगे, ऐसे में किसानों की घेराबंदी अवश्य ही बड़ा संदेश दे रही हैं।

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