Tuesday, February 11, 2025
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करवाचौथ: पति की दीघार्यु की कामना और सुहागिन श्रृंगार का अद्भुत संगम

Sanskar 7


हिंदू धार्मिक ग्रंथों और संस्कृति में नारी अपने समर्पण, बलिदान और वात्सल्य प्रेम के लिए सदैव ही पूजनीय रही है। करवाचौथ पर पति की दीघार्यु की कामना के लिए पूरे दिन अन्न जल न ग्रहण करने का कठिन संकल्प और चार दिन बाद ही संतान की सुख समृद्धि और दीघार्यु के लिए किए पुन: पूरे दिन अन्न जल ग्रहण न करने का संकल्प, एक पत्नी, एक मां और एक नारी ही कर सकती है।भारतीय संस्कृति में क्या खूब कहा गया है, ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ अर्थात जहां नारी की पूजा की जाती है, उसका सम्मान किया जाता है वहां देवताओं का वास होता है। करवाचौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘करवा’ यानी ‘मिट्टी का बरतन’ और ‘चौथ’ यानि ‘चतुर्थी’। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। सभी विवाहित स्त्रियां इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।

करवाचौथ का इतिहास
बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि देवताओं और दानवों के मध्य युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। देवताओं ने ब्रह्मदेव से रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखने और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करने के लिए कहा। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं की पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इसके बाद ही सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।

महाभारत में भी करवाचौथ के महात्म्य पर एक कथा का उल्लेख मिलता है। भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो, सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा। जिसके प्रभाव से ही पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की।

मेहंदी का महत्व
मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। भारत में ऐसी मान्यता है कि जिस लड़की के हाथों की मेहंदी ज्यादा गहरी रचती है, उसे अपने पति तथा ससुराल से अधिक प्रेम मिलता है। लोग ऐसा भी मानते हैं कि गहरी रची मेहंदी आपके पति की लंबी उम्र तथा अच्छा स्वास्थ्य भी दशार्ती है।

करवाचौथ व्रत विधान
व्रत रखने वाली सुहागन स्त्रियों, सुबह नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान एवं संध्या आदि करके, आचमन के बाद संकल्प लेकर , करवा चौथ का व्रत आरंभ करती है । यह व्रत निराहार ही नहीं, अपितु निर्जला के रूप में किया जाता है। कुछ परिवारों में तारों की छांव में सर्गीय के रूप में सुहागिन स्त्रियों द्वार अल्पाहार करने का भी चलन हैं।करवा चौथ के पूजन में धातु के करवे का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। यथास्थिति अनुपलब्धता में मिट्टी के करवे से भी पूजन का विधान है। ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ के पूजन के दौरान ही सजे-धजे करवे की टोंटी से ही जाड़ा निकलता है अर्थात करवा चौथ के बाद धीरे-धीरे वातावरण में ठंड बढ़ जाती है। इस व्रत में चंद्रमा, शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गौरा की मूर्तियों की पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडियां शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर किसी बड़ी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करती है।।

चांद को अर्घ्य और पूजन विधि
सायं बेला पर स्त्रियां पुरोहित से कथा सुनती हैं और दान-दक्षिणा देती हैं। तत्पश्चात रात्रि में जब पूर्ण चंद्रोदय होता है तब चंद्रमा को छलनी से देखकर अर्घ्य देती हैं , चंद्रमा की आरती उतारते हुए , चंद्रमा के समान अपने पति की दीघार्यु की कामना करती है। पति , अपनी पत्नी को अपने हाथ से पानी पिलाकर व्रत को पूरा करवाते हैं। विवाहित स्त्रियां जीवन के हर मोड़ पर अपने पति का साथ देने वादा करती हैं। चंद्रदेव के साथ-साथ भगवान शिव, देवी पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि माता पार्वती के आशीर्वाद से जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रत अधिकतर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं, लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा अवश्य करती हैं।


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