चंद्र प्रभा सूद |
मनुष्य के भाग्य में जो भी लिखा होता है, वही उसे मिलता है। न उससे अधिक और न ही उससे कम। यह भाग्य हमारे पूर्वजन्मकृत कर्मो के अभनुसार बनता है। यदि पूर्वजन्मों में हमारे शुभकर्मों की अधिकता होती है तो इस जन्म में सुख-सुविधा के सभी साधन उपलब्ध होते हैं। इसके विपरीत दुष्कर्मों की यदि अधिकता होती है तब इस जन्म में कष्टों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इसी विषय को उदाहरण सहित कवि ने बड़े ही सुन्दर शब्दों में समझाया है –
पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किमं
नोलूकोऽप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम् धारा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणमं
यत्पूर्वं विधिना ललाटलिखितं तन्मार्जितुं क क्षम:।
अर्थात करीर के वृक्ष में यदि पत्ते नहीं लगते तो इसमें वसन्त ऋतु का क्या दोष है? उल्लू यदि दिन में नहीं देख पाता तो इसमें सूर्य का क्या दोष है? चातक पक्षी के मुँह में यदि वर्षा की धारा नहीं पड़ती तो इसमें बादल का क्या दोष? विधाता ने जिसके ललाट पर जो पहले लिख दिया है, उसे मिटाने में कौन समर्थ हो सकता है? अर्थात् उसे ब्रह्माण्ड की कोई ताकत भी नहीं मिटा सकती। करीर के वृक्ष पर पत्ते न लगने का कारण वसन्त ऋतु नहीं है। पतझड़ में पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं और वसन्त में तो सभी वृक्ष हरे-भरे दिखाई देते हैं। उन पर खिले रंग-बिरंगे फूल प्रकृति के सौन्दर्य को बढ़ाते हैं। चारों ओर हरियाली का साम्राज्य होता है जो बहुत ही मनमोहक होता है।
विश्व के सभी जीव-जंतु सूर्य की रौशनी में दिन में देखते हैं। रात में उन्हें देखने में कठिनाई होती है परन्तु उल्लू एक ऐसा पक्षी है जो दिन के उजाले में नहीं देख पाता बल्कि रात के अंधेरे में उसे दिखाई देता है। वह दिन में नहीं देख पाता तो हम इसके लिए सूर्य को दोष नहीं दे सकते। वर्षा की पहली बूँद चातक पक्षी के मुँह में यदि पड़ती है तो वह अपनी प्यास बुझाता है। यदि वर्षा की पहली बूँद उसके मुँह में न पड़े तो वह प्यासा रह जाता है और फिर वर्षा की पहली बूंद के लिए वह पूरा वर्ष प्रतीक्षा करता है। सभी जीवों की प्यास बुझाने वाली वर्षा का इसमें कोई दोष नहीं होता। करीर वृक्ष, उल्लू और चातक पक्षी के इन सभी उदाहरणों से यही सिद्ध होता है कि विधाता ने जिसके ललाट पर या मस्तक पर उसके जन्म से पहले ही जो लिख दिया, उसे इस संसार की कोई भी शक्ति नहीं मिटा सकती। न ही उसे बदलने की सामर्थ्य किसी में है।