Saturday, December 14, 2024
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चमत्कारी तस्वीर ने दिलाया था बसिलिका का दर्जा

  • करीब 63 वर्ष पूर्व इटली से सरधना आई थी माता मरियम की चमत्कारी तस्वीर
  • 1961 में चर्च को मिली थी छोटी बसिलिका की पदवी
  • तब से आज तक हर साल मनाया जाता है कृपाओं की माता का महोत्सव

जनवाणी संवाददाता |

सरधना: नगर का ऐतिहासिक कैथोलिक चर्च देश दुनिया में अपने इतिहास से जाना जाता है। चर्च का इतिहास और उसकी सुंदरता ही इसे खास बनाती है। नवंबर माह में लगने वाले मेले का इतिहास भी चर्च की तरह काफी पुराना है। चर्च में लगने वाले मेले की शुरूआत करीब 63 वर्ष पूर्व हुई थी। मेरठ की नई डायस के बिशप इटली से आई माता मरियम की चमत्कारी तस्वीर को एक बड़े जुलूस के रूप में सात नवंबर 1957 को लेकर सरधना पंहुचे थे। मान्यता है कि जो इस तस्वीर के समक्ष शीश नवाकर सच्चे मन से प्रार्थना करता है माता मरियम उसकी मुराद पूरी करती हैं। छोटे स्तर पर शुरू हुए इस मेले में अब लाखों की संख्या में देशभर से तीर्थयात्री पहुंचते हैं।

सरधना के एतिहासिक चर्च की प्रसिद्धि वैसे तो निर्माण के साथ ही दूर-दूर तक फैल गई थी। चर्च की ख्याति उस समय और बढ़ गई, जब 1957 में माता मरियम की चमत्कारी तस्वीर मेरठ से सरधना पहुंची। दरअसल आगरा प्रांत के सहायक आर्च बिशप जेबी इवांजे लिस्टी सन् 1955 में इटली भ्रमण पर गए थे। उस दौरान आर्च बिशप टस्कनी प्रांत के लैघोर्न शहर पहुंचे तो मौनटेनैरो की पहाड़ी पर कृपाओं की माता का मशहूर तीर्थ स्थान के दर्शन करने भी गए। जहां पर उन्होंने माता मरियम की एक चमत्कारी तस्वीर देखी थी। बिशप को उस तस्वीर ने इतना आकर्षित किया कि उन्होंने सरधना चर्च के लिए तस्वीर की नकल बनवा ली थी। लकड़ी पर रंगो से बनी इस तस्वीर में माता मरियम को बच्चे यीशू के साथ दिखाया गया है। यीशू के हाथ में रस्सी दिखाई गई है।

जिसमें मरिया के हाथ पर बैठी एक चिड़िया का पैर बंधा है। इस का आशय यह है कि माता मरियम से होकर ही प्रभु यीशू तक पंहुचा जा सकता है। 1955 में आर्च बिशप 12वें संत पोप से मिलने पहुंचे और उन्होंने उत्तरी भारत में एक तीर्थ स्थान शुरू करने की इच्छा जताई। पोप ने इसे सहर्ष स्वीकार करते हुए तस्वीर को सिजदा कर उस पर अपनी बरकत देकर इवांजे को सौंप दी थी। उन्होंने तस्वीर को सरधना में स्थापित्त कर वहां तीर्थ स्थान बनाने की प्रेरणा दी थी। इसके बाद 7 नवंबर 1957 को इवांजे ने सरधना में तीर्थ स्थान की नींव रखी थी।

माता मरियम की तस्वीर को मेरठ से गाड़ियों व भारी जनसमूह के साथ सरधना लाया गया था। इस उपलक्ष्य में चर्च के आसपास मेले का माहौल हो गया था। बिशप के साथ आए दर्जनों फादर्स ने तस्वीर को चर्च परिसर के बांई ओर बने चैपिल में स्थापित किया। उसी समय गाजियाबाद की एक श्रद्धालु महिला ने अपने बीमार बच्चे को तस्वीर से छुआया था। जिसको चिकित्सकों ने लाईलाज घोषित कर दिया था। मगर चमत्कारी तस्वीर से टच होते ही बालक ठीक हो गया था। तस्वीर के करिश्मे की बात दूर तक पहुंची तो इसकी ख्याति बढ़ती चली गई। उसको देखते हुए दिसंबर 1961 में संत पोप द्वारा चर्च को छोटी बसिलिका की पदवी दी गई।

सैकड़ों की संख्या में शुरू हुआ यह मेला आज करीब 63 वर्ष बाद लाखों की संख्या तक पंहुच गया है। मेलें में देश के विभिन्न प्रांतों व विदेशों तक से श्रद्धालु चमत्कारी तस्वीर के सामने शीश नवाकर मन्नते मांगते हैं। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, केरल और बिहार आदि से आए श्रद्धालु माता मरियम की चमत्कारी तस्वीर को जुलूस की शक्ल में संत चार्ल्स इंटर कॉलेज तक लेकर जाते हैं। जहां पर फादर सभा को संबोधित करते हैं। इसके बाद प्रतिमा को फिर से उसी स्थान पर स्थापित कर दिया जाता है।

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