नरेंद्र देवांगन |
हमारी परंपरा में धार्मिक आयोजन में फूलों का विशेष महत्व है। देवताओं की पूजा विधियों में कई तरह के फूल-पत्तों को चढ़ाना बड़ा शुभ माना गया है। धार्मिक अनुष्ठान, पूजन आरती आदि कार्य बिना फूल के अधूरा ही माना जाता है। कुछ विशेष फूल देवताओं को चढ़ाना निषेध होता है। किंतु शास्त्रों में ऐसे भी फूल बताए गए हैं, जिनको चढ़ाने से हर देवशक्ति की कृपा मिलती है यह बहुत शुभ, देवताओं को विशेष प्रिय होते हैं और हर तरह का सुख-सौभाग्य बरसाते हैं। कौन से भगवान की पूजा किस फूल से करें। ये भी पूजा विधि का खास हिस्सा है। फूल हमारे जीवन को रंग और सुगंध से भरते हैं। ये हमारे लिए हमारी भावना के प्रतीक हैं, इसलिए हम पूजा करते हुए पुष्प अर्पित करते हैं। क्योंकि पूजा करते हुए हम भावना को भी अभिव्यक्त कर रहे होते हैं। लेकिन पूजा पद्धति में कौन से फूल किस देवता को वर्जित है और कौन से प्रिय अक्सर हम जान नहीं पाते हैं।
गणपति
आचार भूषण ग्रंथानुसार भगवान गणपति को तुलसीदल छोडकर सभी तरह के फूल चढ़ाए जा सकते हैं। पद्म पुराण आचार रत्न में भी लिखा है कि ‘न तुलस्या गणाधिपम’ अर्थात तुलसी से गणपति की पूजा कभी न करें। गणेशजी को पारंपरिक रूप से दूर्वा चढ़ाई जाती है। माना जाता है कि उन्हें दूर्वा प्रिय है। दूर्वा के ऊपरी हिस्से पर तीन या पांच पत्तियां हों तो बहुत ही शुभ माना जाता है। गणपति को लाल रंग प्रिय है, इसलिए उन्हें लाल रंग का गुलाब चढ़ाया जाता है।
शिव
अवधूत शिव को धतूरे के फूल, हरसिंगार, नागकेसर के सफेद पुष्प, सूखे कमल गट्टे, कनेर, कुसुम, आक, कुश आदि के फूल प्रिय है। इनमें भी उन्हें सबसे अधिक प्रिय धतूरे का फूल है। इसके अतिरिक्त बिल्व पत्र और शमी पत्र भी उन्हें पसंद है। शिव को सेमल, कदम्ब, अनार, शिरीष, माधवी, केवड़ा, मालती, जूही और कपास के फूल नहीं चढ़ाए जाते हैं।
विष्णु
भगवान विष्णु को कमल, मौलसिरी, जूही, कदंब, केवड़ा, चमेली, अशोक, मालती, वासंती, चंपा, वैजयंती के पुष्प विशेष प्रिय हैं। इनको पीले फूल बहुत पसंद है। विष्णु भगवान तुलसीदल चढ़ाने से अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं। कार्तिक मास में भगवान नारायण केतकी के फूलों से पूजा करने से विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं, लेकिन विष्णु जी पर आक, धतूरा, शिरीष, सहजन, समेल, कचनाल और गूलर आदि के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए। विष्णु पर अक्षत भी नहीं चढ़ाए जाते हैं।
कृष्ण
अपने प्रिय फूलों का उल्लेख करते हुए महाभारत में कृष्ण युधिष्ठिर को कहते हैं, ‘मुझे कुमुद, करवरी, चणक, मालती, नंदिक, पलाश और वनमाला के फूल प्रिय हैं।’ भगवान श्रीकृष्ण केसर का तिलक अथवा पीले चंदन का तिलक करने और पीलू फूल चढ़ाने से वह अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
हनुमान जी
हनुमान जी को लाल या पीले रंग के फूल विशेष रूप से अर्पित किए जाने चाहिए। इन फूलों में गुड़हल, गुलाब, कमल, गेंदा आदि विशेष महत्व रखते हैं। हनुमान जी को नित्य इन फूलों और केसर के साथ लाल चंदन घिसकर तिलक करना शुभ माना जाता है।
शनि
शनि देव को नीले लाजवंती के पुष्प चढ़ाएं जाते हैं। कोई भी नीले या गहरे रंग के फूल शनि देव को चढ़ाना शुभ माना जाता है।
सूर्य
सूर्य की उपासन कुटज के फूलों से की जाती है। इसके अतिरिक्त आक, कनेर, कमल, चंपा, पलाश, अशोक, बेला, मालती आदि के फूल भी उन्हें प्रिय है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि यदि सूर्य पर एक आक का फूल चढ़ाया जाए तो इससे स्वर्ण की दस अशर्फियों को चढ़ाने जितना फल मिलता है। सूर्य को भी गणपति की तरह लाल फूल पसंद है।
देवियों की पसंद
लक्ष्मी
मां लक्ष्मी सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी है। मां लक्ष्मी का सबसे अधिक प्रिय पुष्प कमल है। कमल जल में उत्पन्न होता है और मां लक्ष्मी की उत्पत्ति भी सागर अर्थात जल से ही हुई है और कमल का फूल उनका आसन भी है, इसलिए देवी को कमल का फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। लक्ष्मी को हर दिन गुलाब के फूल भी अर्पित किए जा सकते हैं। भगवान विष्णु की अर्धांगिनी होने के कारण यह पीले सुगंधित फूल भी अर्पित किए जाते हैं।
पार्वती
गौरी या पार्वती को वे सारे पुष्प प्रिय हैं जो भगवान शंकर को चढ़ाए जाते हैं। इसके साथ ही उनकी पूजा बेला, सफेद कमल, पलाश और चंपा के फूलों से भी की जाती है।
देवी दुर्गा
मां दुर्गा को लाल रंग के फूल विशेषकर प्रिय है। इसमें गुलाब और गुड़हल खासतौर पर। नवरात्रि और शुक्र वार को मां को लाल गुलाब या लाल गुड़हल के फूलों की माला चढ़ाना शुभ माना जाता है। दुर्गा को बेला, अशोक, माधवी, केवड़ा, अमलतास के फूल भी चढ़ाए जाते हैं। हां, लेकिन देवी को दूर्वा, तुलसीदल, आंवला और तमाल के पुष्प नहीं चढ़ाए जाते हैं। दुर्गा को आक और मदार के फूल भी नहीं चढ़ाने चाहिए।
सरस्वती
विद्या की देवी मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए सफेद या पीले रंग का फूल चढ़ाए जाते हैं। सफेद गुुलाब, सफेद कनेर या फिर पीले गेंदे के फूल से भी मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं।
काली
देवी काली को नीले अपराजिता के फूल चढ़ाने का विधान है। बंगाल में दीपावली पर होने वाली काली पूजा में अपराजिता के पुष्प चढ़ाना अनिवार्य हुआ करता है।