- आयकर विभाग के अधिकारी चोरी के पुराने मामलों की इनसाइट पोर्टल के माध्यम से कर रहे निगरानी
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: जिन लोगों की आय में अचानक वृद्धि हुई है, वे लोग आयकर विभाग के रडार पर हैं। इन दिनों आयकर विभाग के अधिकारी चोरी के पुराने मामलों की इनसाइट पोर्टल के माध्यम से निगरानी कर रहे हैं। आयकर विभाग से मिली जानकारी के अनुसार कई ऐसे संदिग्ध खाते हैं, जिनकी जांच की जा रही है। अगर करदाता ने 50 लाख या उससे ज्यादा की आय छिपाई है तो आयकर अधिकारी उसके खातों की 10 वर्षों की जांच कर सकता है।
यह करदाता की संपत्ति के अलावा उसके द्वारा किया गया लेन-देन और उसके खातों की जांच होगी। छिपाई हुई संपत्ति सोना-चांदी या नकद या शेयर भी हो सकता है। कई तथ्यों के कारण ऐसे लोगों की आय में वृद्धि हुई थी, उन्हें भी जांच के लिए चुना जाना जाता है। आयकर विभाग हर साल दायर किए जाने वाले रिटर्न में से कुछ मामलों को जांच के योग्य मानता है और उन पर कार्रवाई करता है।
अधिकारी करदाताओं के कुछ विशिष्ट समूह पर नजर रख रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपनी आय की सही रिपोर्ट दर्ज करें। चालू वित्त वर्ष के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि जिन मामलों में सर्वेक्षण, तलाशी और जब्ती की गई है या जहां आयकर कानून की धारा 142(1) के तहत विवरण मांगते हुए नोटिस जारी किए गए हैं, उनकी जांच जरूर होनी चाहिए।
विभागीय सूत्रों के अनुसार प्रॉपर्टी से लेकर जवरात आदि की बड़ी खरीद-फरोख्त के मामलों में संबंधित अधिकारियों की ओर से नियमित रूप से जानकारी आयकर विभाग को प्रेषित की जाती है। इनसाइट पोर्टल का सिस्टम रेंडम तरीके से काम करता है। अगर चार साल के लिए चोरी होती है, तो सिस्टम एक साल के लिए दिखा सकता है। ऐसे में संबंधित के विरुद्ध सभी साल का रिकार्ड खंगालने का मजबूत आधार बन जाता है।
साथ ही इसमें किसी नाम के सामने आने से पहले सभी जानकारी अपलोड होने में कुछ समय लगता है। इनसाइट से हरी झंडी के अलावा आईटी विभाग को एक विस्तृत प्रक्रिया का पालन करना होता है। किसी एसेसमेंट ईयर के लिए करदाता का नाम सामने आने पर आईटी एक्ट की नई धारा 148-ए के तहत उसे प्रारंभिक पत्र भेजा जाता है। टैक्सपेयर्स को जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय दिया जाता है, और अगर वह इसमें नाकाम रहता है तो उसका मामला अपने आप खुल जाता है।
अगर टैक्स चोरी के मामले में टोटल इनकम 50 लाख रुपये से अधिक है, तो विभाग 10 साल पुराने मामलों को उधेड़ सकता है। 50 लाख रुपये से कम के मामले में यह चार साल है। पोर्टल पर अपलोड की गई जानकारी बैंकों, विदेशी संस्थाओं, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय और दूसरी थर्ड पार्टीज से मिलता है। अगर करदाता की तरफ से संतोषजनक जवाब मिलता है तो संभावना यही बनती है कि केस न खोला जाए। हर करदाता को अपना पक्ष रखने का मौका भी मिलने लगा है।
बेनामी संपत्ति भी जांच के दायरे में
कई ऐसे लोग टैक्स चोरी करने के लिए अपनी आय छिपाते हैं और उस पर निर्धारित टैक्स बचाते हैं। ऐसा करने वाले बहुत सारे लोग बेनामी संपत्ति बना लेते हैं। इस पर लगाम लगाने के लिए सरकार शिकायतों के आधार पर कार्रवाई करती है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट छापेमारी करता है, ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय भी बेनामी संपत्ति जब्त करता है, लेकिन इस काम में तब सरकार की मदद हो जाती है, जब आम आदमी ऐसे टैक्स चोरों की शिकायत विभाग तक पहुंचाते हैं।
दरअसल, टैक्स की चोरी करने वालों और बेनामी संपत्ति वालों की शिकायत कोई भी व्यक्ति आसानी से कर सकता है। घर बैठे आॅनलाइन इसकी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। दरअसल, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने एक आॅटोमेटेड ई-पोर्टल पर कोई भी व्यक्ति कर चोरी की शिकायत कर सकता है। साथ ही बेनामी संपत्ति या विदेश में अघोषित संपत्ति से जुड़ी शिकायत भी आॅनलाइन की जा सकती है।
इस नए पोर्टल के जरिये टैक्स की चोरी को रोकने में लोगों की भागीदारी बढ़ेगी। आयकर अधिनियम, 1961, ब्लैक मनी (अघोषित विदेशी संपत्ति व आय) इंपोजिशन आॅफ द इनकम टैक्स एक्ट 1961 और प्रिवेंशन आॅफ बेनामी ट्रांजेक्शन एक्ट के तहत शिकायतें दर्ज हो जाएंगी।
तस्करी तक का सहारा लेते हैं कई व्यवसाय
कई लोग अपनी कर देनदारी को कम करने के लिए कर चोरी का गलत रास्ता अपनाते हैं। स्टेट आॅफ टैक्स जस्टिस की एक रिपोर्ट के अनुसार अंतरराष्ट्रीय कॉपोर्रेट कर दुरुपयोग और निजी कर चोरी के कारण भारत को हर साल करों में 75 हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो रहा है। ऐसे कृत्यों के लिए जुर्माना और सजा दोनों का प्रावधान है। आय का खुलासा न करने पर जुर्माना कर राशि के 100 से 300 प्रतिशत के बीच कहीं भी हो सकता है।
देय करों का भुगतान न करना यह कर चोरी करने के सामान्य तरीकों में से एक है। कोई व्यक्ति या कंपनी जानबूझकर कर का भुगतान नहीं करता है, भले ही उस पर कर बकाया हो। विभिन्न टैक्स बचाने के लिए तस्करी राज्य करों, सीमा शुल्क और आयात-निर्यात करों जैसे करों से बचने के लिए, कई व्यवसाय तस्करी का सहारा लेते हैं। भारतीय कानून के अनुसार, तस्करी एक दंडनीय अपराध है और यदि कर चोरी के लिए किया जाता है
तो अधिक जुर्माना हो सकता है। एक व्यक्ति कर दाखिल करता है, लेकिन कर दायित्व को कम करने या बिल्कुल भी कर का भुगतान न करने के लिए झूठी या गलत जानकारी प्रस्तुत करता है। यह कर चोरी के अंतर्गत भी आता है क्योंकि व्यक्ति ने पूरी जानकारी साझा नहीं की और कम कर का भुगतान किया। व्यवसाय कम वार्षिक आय दर्शाने के लिए खाता बही और बैलेंस शीट जैसे गलत वित्तीय दस्तावेज रख सकते हैं।