
खुलने का जादू…
खुल जाना जादू करता है
खुल जा सिम सिम कहते ही
खुल जाती थी खजाने से भरी तिलिस्मी गुफा
बंद कमरे में रियाज करते कलाकार
दिखाते हैं अपना हुनर मंच पर
पर्दे के खुलते ही
तालियों की गूंज से
देते हैं कलाकारों को प्रोत्साहन दिल खोलकर दर्शक
तपती धूप में जब खुलता होगा
मेहनतकश का टिफिन
रोटी प्याज के निवालों से मिली ऊर्जा से
खुल जाता होगा उम्मीद का नया दरवाजा
पहले दादी मां
और अब मां का बैग खुलते रहते हैं हमारे सामने
निकलता रहता है
रसों का बहुमूल्य खजाना
अचार, मुरब्बा, चटनी, पापड़ के रूप में
रिश्तों की गर्माहट से बहती रहती है मन के भीतर आत्मीयता की स्नेहिल नदी
भिगोती रहती है मन के मरुस्थल को
खोलने के लिए हर बार तोड़ना नही पड़ता दरवाजा
एक पुकार काफी होती है अक्सर
मन की गठरी खुलते ही बिखर जाते हैं भावनाओं के मोती
गुरुत्वाकर्षण के बल को चकमा देकर
खुलकर उड़ने लगते हैं दोस्त
किसी जादू की तरह