Friday, March 29, 2024
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हानिकारक रसायनों का विकल्प जैविक खेती

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जैविक खाद के प्रयोग से की जानेवाली खेती को सामान्यत: जैविक खेती कहा जाता है, तथापि वृहत अर्थों में जैविक खेती, कृषि की वह विधि है जो जैविक खाद, फसल चक्र परिवर्तन और उन गैर-रसायनिक उपायों पर आधारित है, जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के साथ ही पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती है और जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र ,हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग करती है तथा रसायन रहित स्वास्थ्यकर खाद्यान्न उपजाती हैं।

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यह सत्य है कि कृषि फसलोपज प्रदान करने वाले हमारे खेत वर्तमान में यंत्रीकृत, प्रौद्योगिकी संचालित हो गए हैं और रिकार्डतोड़ पैदावार कर रहे हैं, परंतु यह भी परम सत्य है कि अधिकाधिक फसलोपज प्राप्ति के उद्देश्य से फसलों में प्रयुक्त किए जाने वाले हानिकारक रसायनों और कीटनाशकों ने हमारे भोजन को विषाक्त बना दिया है।

उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से कीटों को मारने के लिए उपयोग किए जाने वाले कीटनाशकों के अवशेष फसल में बरकरार रहते हैं जिससे भोजन अस्वस्थ बन जाता है और कुछ मामलों में तो विषाक्त हो जाता है। परिणामस्वरुप मनुष्यों में विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य जटिलताएं पैदा हो रही हैं और खेती-बारी में कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण गुर्दे, त्वचा ,बांझपन, अल्सर और कैंसर की बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं।

यह सर्वविदित है कि अधिकाधिक फसलोपज प्राप्ति के लिए किसानों के द्वारा खेत की बेहतर तैयारी, उन्नत बीज, संतुलित खाद व सिंचाई आदि हरसंभव प्रयास किया जाता है, फिर भी फसलों में रोग व कीटों का प्रकोप हो ही जाता है। उनकी रोकथाम के लिए किसानों के द्वारा रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है जो फसल और भूमि के साथ ही किसानों के लिए भी हानिकारक सिद्ध हो रहा है। कीटनाशकों के माध्यम से फसल के द्वारा कुछ विषैले तत्व मनुष्य के शरीर में पहुंचते हैं, वहीं कीटनाशकों के छिड़काव के दौरान कई किसान अपनी जान भी गंवा बैठते हैं।

यह अत्यन्त आश्चर्य का विषय है कि भारतीय चाय में अभी भी डीडीटी नामक कीटनाशक की मात्र पायी जाती है जबकि डीडीटी 1972 से और डेलड्रीन जैसी घातक कीटनाशक 1970 से ही अमेरिका में प्रतिबंधित है, परंतु खेद की बात है कि हमारे चाय बगानों में और अन्य स्थानों पर फसलों में यह बहुतायत में प्रयोग हो रहा है। हमारे देश में अब तक लगभग 190 प्रकार के रसायनों, कीटनाशकों और फफूंदीनाशकों का निबंधन अर्थात पंजीयन हुआ है जिनमें से केवल 50 की बर्दाश्त क्षमता से हम भिज्ञ हैं अर्थात जिन्हें हम जानते हैं।

कीटनाशकों के प्रयोग में बरती जाने लापरवाही से न केवल प्रयोगकर्ता के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, अपितु हवा, पानी और सभी खाद्य पदार्थ विषैले हो रहे हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक प्रतिवेदन के अनुसार मां के दूध में डीडीटी की मात्र, मनुष्य के शरीर के लिए निर्धारित सामान्य मात्र से 77 गुना अधिक हो चुकी है। कुछ वर्ष पूर्व अहमदाबाद स्थित कंज्यूमर एजुकेशन एंड रिसर्च सोसायटी ने अपने अध्ययन में आटे की एक मशहूर ब्राण्ड में खतरनाक रसायन लिंडेन पाया था।

चिंताजनक बात यह है कि पानी के विषैला होने से जमीन की ऊर्वरता घट रही है और पानी में रहनेवाले तमाम उपयोगी जीव-जन्तुओं और मछलियों की प्रजातियां लुप्तप्राय होने लगी हैं ।

कारखानों के विषैले कचरे नदियों में गिर कर मछलियों को विषाक्त करते हैं । एक सर्वेक्षण के अनुसार कीटनाशक, हाइड्रोकार्बन और भारी धातुओं के अवशेष मछलियों में भारी मात्र में मौजूद पाए गए हैं, इसलिए कई स्थानों में पायी जाने वाली मछलियां खाने योग्य नहीं हैं। पशु-पक्षी विषैले खाद्य पदार्थों और वनस्पतियों को खाकर मर रहे हैं । गौरैया और कई अन्य पक्षी विलुप्त होने के कगार पर हैं। डिक्लोफैनक नामक दवा से जानवरों का मांस जहरीला हो गया है जो गिद्धों के विलुप्त होने का कारण बन रहा है। जल्द मुनाफा कमाने के लिए फलों को कार्बाइड से पकाया जाता है।

परिणामस्वरूप सब्जियों-फलों के छिलकों में घुला कीटनाशक हमारे शरीर में पहुंच रहा है। दुधारू पशुओं के स्तनों में आक्सीटोक्सीन सुई लगा कर दूध निकाला जा रहा है, जो हारमोंस अंसुतलन, गुर्दे की खराबी, कैंसर और बच्चों में मानसिक विकृतियाँ पैदा कर रहा है।

हालांकि पशुक्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 12 के तहत यह अपराध है। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च ने कुछ साल पहले 2,205 गायों-भैंसों के दूध का परीक्षण कर पाया कि 85 प्रतिशत जानवरों में कीटनाशकों की मात्र, भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित मात्र से अधिक है।

पर्यावरण के अनुकूल जैविक खेती कम खर्च में किये जाने से फसलोपज के रूप में प्राप्त होने वाली खाद्यान्न, सब्जियां और अन्य भोजन में प्रयुक्त होने वाली फसलें हानिकारक नहीं होंगे और उनमें स्वाद भी बेहतर होगा। अपने इन्हीं गुणों के कारण 1990 के बाद से ही विश्व में जैविक खेती से प्राप्त उत्पादों का बाजार काफी बढ़ा है|

और रासायनिकों के इस्तेमाल से पैदा की गई फसलों के बनिस्पत जैविक उत्पादों को अधिक मूल्य भी प्राप्त होना भी सुखद है। इसलिए जैविक खेती को बढ़ावा देकर हमें अपने बेहतर स्वास्थ्य के साथ ही अधिक मुनाफा प्राप्ति और सुखद भविष्य की ओर बढ़ना चाहिए।

यह अजीब विडंबना है कि कीटनाशक बनानेवाली कंपनियों के दबाव में आकर सुलभ और सस्ती जैविक (आर्गेनिक) खेती को हमारे देश में हतोत्साहित किया जा रहा है और कुतर्क यह दिया जाता है कि विश्व की तुलना में भारतवर्ष में केवल 2 प्रतिशत कीटनाशकों का प्रयोग होता है, जबकि खाद्यान्न उत्पादन में भारतवर्ष का हिस्सा 16 प्रतिशत है।

इन तथ्यों को नजरअंदाज किया जाता है कि विदेशी कंपनियों द्वारा हमारे देश में प्रतिबंधित दवायें बेच दी जाती हैं जिसे प्रयोग कर हम अपनी स्वास्थ्य, भूमि के साथ पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहे हैं। चूंकि हमारे किसान प्रशिक्षित नहीं हैं, इसलिए वे जरूरी सावधानियों या कीटनाशकों के कुप्रभावों के बारे में नहीं जानते हैं।

यद्यपि जैविक खाद के प्रयोग से की जानेवाली खेती को सामान्यत: जैविक खेती कहा जाता है, तथापि वृहत अर्थों में जैविक खेती, कृषि की वह विधि है जो जैविक खाद, फसल चक्र परिवर्तन और उन गैर-रसायनिक उपायों पर आधारित है, जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के साथ ही पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती है और जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र , हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग करती है तथा रसायन रहित स्वास्थ्यकर खाद्यान्न उपजाती हैं।

अशोक ‘प्रवृृद्ध’


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