- जनवाणी पड़ताल: रोडवेज और रेलवे को हर माह लगेगा लाखों का फटका
- यात्रियों का झुकाव होगा रैपिड की ही ओर
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: कहने को तो यह पीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट है, लेकिन कहीं न कहीं इस प्रोजेक्ट के धरातल पर साकार होने के बाद सरकारी खजाने पर किसी हद तक चोट भी लगने जा रही है। जी हां! यह 100 फीसदी सही है, क्योंकि दिल्ली से मेरठ के बीच आधुनिक सुविधाओं के साथ दौड़ने वाली रैपिड रेल जब अपना सफर शु्न६ करेगी तब दिल्ली व मेरठ के बीच रोडवेज बसों व भारतीय रेलवे से सफर करने वाले यात्रियों का झुकाव यकीनन रैपिड की तरफ ही होगा।
भले ही रैपिड का किराया रोडवेज व रेलवे से अधिक होने की बात कही जा रही हो लेकिन समय की बचत व आधुनिक सुविधाओं के बीच यात्री रैपिड को ही अधिक तरजीह देंगे। इस संबध में हालांकि खुद रोडवेज और रेलवे के अधिकारी मानते हैं कि उनकी आमदनी कम होने जा रही है, लेकिन साथ ही साथ वो यह भी कहते हैं कि वो इसे मैनेज कर लेंगे।
रोडवेज का गणित
भैंसाली डिपो के एआरएम राजेश कुमार के अनुसार मेरठ से दिल्ली (कश्मीरी गेट) तक प्रतिदिन लगभग ढाई हजार यात्री रोडवेज व अनुबन्धित बसोें से सफर करते हैं। दिल्ली से मेरठ तक का किराया लगभग 130 रुपये है। इस प्रकार विभाग को प्रतिदिन लगभग सवा तीन लाख रुपये का नुकसान होगा, जो एक महीने में एक करोड़ रुपये के आसपास बैठता है।
हालांकि एआरएम यह भी कहते हैं कि जब मेरठ से रैपिड की सुविधा शुरू होगी। तब आसपास के अन्य शहरों के लोग रैपिड के सफर लिए मेरठ पहुचेंगे और इसके लिए वो रोडवेज की बसों का इस्तेमाल करेंगे। जिससे विभाग की कमाई काफी हद तक बेलेंस होगी। वो यह भी कहते हैं कि बस से सफर करने वाले यात्री रैपिड शुरू होने के बाद भी बसों का मोह नहीं छोड़ेगे।
रेलवे का गणित
अब रेलवे का गणित समझिए। सिटी स्टेशन अधीक्षक आरपी सिंह का मानना है कि रैपिड का किराया रेलवे से कहीं अधिक होगा। जिसके चलते लोग रैपिड की तरफ उतने आकर्षित शायद न हों जितना लोग उम्मीद कर रहे हैं। स्टेशन अधीक्षक के अनुसार मेरठ से दिल्ली तक रेल से प्रतिदिन लगभग 12 हजार लोग सफर करते हैं और इनमें लगभग दो हजार डेली पेसेंजर हैं।
मेरठ से दिल्ली का किराया 50 रुपये हैं। इस प्रकार रेलवे को प्रतिदिन छह लाख रुपये का नुकसान होगा, जो एक महीने में एक करोड़ 80 लाख रुपये बैठता है। बकौल आरपी सिंह रैपिड की ओर वो लोग ज्यादा डायवर्ट होंगे जो अपने निजी वाहनों से सफर करते हैं।
आखिर रैपिड की सुविधाओं का मुकाबला कैसे करेगा रोडवेज?
कहने को तो रोडवेज अधिकारी इस बात का दम भर रहे हैं कि रैपिड शुरू होने के बावजूद उनकी कमाई पर कुछ खास असर पड़ने वाला नहीं है। लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है। दरअसल, यूपी रोडवेज की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। कई खटारा गाड़ियां, उनकी टूटी हुर्इं खिड़कियां व अधिकतर फटी सीटें विभाग की साख को पहले ही बट्टा लगा रही हैं।
कई बार लोगों को विभिन्न बस अड्डों पर यहां तक कहते हुए सुना है कि उनके पास यात्रा का कोई अन्य विकल्प नहीं है, लिहाजा वो मजबूरी में ही रोेडवेज बसों का सफर करते हैं। दूसरा यह भी सभी जानते हैं कि रोडवेज बसें कब बीच रास्ते में खड़ी हो जाएं कहा नहीं जा सकता। कई यात्रियों का आरोप है कि रोडवेज में सुविधाओं का हमेशा टोेटा रहता है।
जबकि किराया आए दिन बढ़ा दिया जाता है। कुल मिलाकर रोडवेज आखिर किस आधार पर अपनी सुविधाओं का दम भरता है। यह तो वही जानें, लेकिन इतना तय है कि इस आधुनिक दौर में हर व्यक्ति उसी ओर आकर्षित हो रहा है। जिसमें चकाचौंध है।