Wednesday, March 26, 2025
- Advertisement -

चरितार्थ होता संत शिरोमणि रविदास जी का संदेश

Sanskar 4

हिंदू पौराणिक संस्कृति , हिंदू वैदिक संस्कृति तथा संत मत धारा अपने अपने समय विशेष रूप से हिन्दू जनमानस का आध्यात्मिकता के मार्ग पर उनका पथ प्रदर्शन करती रहीं है। इन सभी धाराओं की एक विशेषता रही है कि इनका आधार पूर्णत: वैज्ञानिक रहा है। कुछ मिथ्या या अंधविश्वास नहीं है। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी हिंदू सनातन संस्कृति के शास्त्र सम्मत अनुष्ठान विज्ञान की कसौटी पर खरे उतर रहे हैं।

संत रविदास जी का जन्म चमार समुदाय में काशी नगर में हुआ। ये परमेश्वर कबीर जी के समकालीन हुए थे। परम भक्त रविदास जी अपना चर्मकार का कार्य किया करते थे। भक्ति भी करते थे। परमेश्वर कबीर जी ने काशी के प्रसिद्ध आचार्य स्वामी रामानन्द जी को यथार्थ भक्ति मार्ग समझाया था। अपना सतलोक स्थान दिखाकर वापिस छोड़ा था। उससे पहले स्वामी रामानन्द जी केवल ब्राह्मण जाति के व्यक्तियों को ही शिष्य बनाते थे। उसके पश्चात् स्वामी रामानंद जी ने अन्य जाति वालों को शिष्य बनाना प्रारम्भ किया था। संत रविदास जी ने भी आचार्य रामानन्द जी से दीक्षा ले रखी थी। भक्ति जो परमेश्वर कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को प्रथम मंत्रा बताया था, उसी को दीक्षा में स्वामी जी देते थे। संत रविदास जी उसी प्रथम मंत्रा का जाप किया करते थे।

जहां पौराणिक संस्कृति हमारे पौराणिक धर्म ग्रंथों में वर्णित अनुष्ठान विधियों का अनुसरण करती है तो वहीं वैदिक संस्कृति, वेदों में वर्णित मंत्रों, यज्ञ और अनुष्ठानों का अनुसरण किया जाता रहा है , संतमत ने निराकार , एकाकार तथा बाह्यमुखी साधनों को छोड़कर अंतमुर्खी भक्ति को महत्व दिया है। संतमत के महान संतों में दादू साहेब, संत पीपा , भगत धन्ना, बुल्लेशाह , राबिया , मीराबाई , संत तुकाराम, नरसिंह भक्त आदि का नाम प्रमुखता से लिया जाता रहा है। 12 फरवरी , 2025 माघ माह की पूर्णिमा को संत शिरोमणि रविदास जी का प्रकाशोत्सव देश विदेशों में मनाया जाएगा।

संत रविदास ने सामाजिक समरसता से परिपूर्ण समाज और देश की कल्पना की थी जिसमें धर्म, जाति, आर्थिक आधार पर कोई भेदभाव न हो। हिंदू समाज ने जाति के भेदभाव के दंश को हमेशा झेला है जिसका परिणाम धर्मांतरण के रूप में हमारे सामने आ रहा है। आज हम हिंदू एकता की खातिर, उस सामाजिक समरसता को समझ पाए हैं जिसका संदेश संत रविदास तथा अन्य संतों आज सैकड़ों वर्ष हमे दिया था। संत रविदास या रैदास जो कृष्ण भक्त मीरा बाई तथा चितौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी के आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं, ने दोहों और पदों के माध्यम से लोकभाषा ( ब्रजभाषा और खड़ी बोली) में जनमानस तक अपने सामाजिक एकता के संदेश के साथ साथ आध्यात्मिकता के मूल को समझाने का प्रयास किया।

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।

सामाजिक भिन्नता को आध्यात्मिकता के संदर्भ में व्याख्या करते हुए रविदास जी कहते है कि मनुष्य नीच कुल में जन्म लेने से नीच नहीं हो जाता बल्कि तुच्छ या नीच कर्मों से नीच होता है।

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

उपरोक्त दोहे में संत रविदास जी केले के पेड़ का उदाहरण देकर, समाज को समझाते हैं कि जिस प्रकार केले के तने को छिलने पर, पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता है। ठीक उसी प्रकार इंसान भी जातियों में बांट दिया गया है अंतत: इंसान खत्म हो जाता है पर जातीय भिन्नता बनी रहती है और ये ही हमें एक नहीं होने देता।

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।

इस दोहे में रविदास जी ने अलग अलग धर्मों में बंटे इंसान को आईना दिखाने का प्रयास किया है कि राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है। वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है और सभी का संदेश एक ही है।

संत शिरोमणि के संदेश को गुरु ग्रन्थ साहिब में भी स्थान दिया गया है। उनके दिखाई मार्ग ने संतमत धारा को अपने दिव्य वचनों से प्रकाशमान कर, मनुष्य को आध्यात्मिक उन्नति के एक ईश्वर की भक्ति पर बल दिया। सामाजिक ऊंच नीच को त्याग कर, मानवता को अपनाने का संदेश संसार को दिया।

राजेंद्र कुमार शर्मा

janwani address 210

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Meerut News: टिमकिया में एक व्यक्ति का फांसी पर लटका मिला शव, हत्या की आशंका

जनवाणी संवाददाताजानीखुर्द: बुधवार की सुबह टिमकिया गांव के जंगल...

Bijnor News: रामगंगा पोषक नहर में तैरता मिला अधेड़ का शव, सनसनी

जनवाणी टीम ।नूरपुर/गोहावर: दौलतपुर चौकी के नजदीक बह रही।...
spot_imgspot_img