आखिर ये कैसा स्मार्ट कैंट है? यहां वाहन चालकों को गड्ढों में सड़कें तलाशनी पड़ती हैं। माल रोड हो या बांबे बाजार, वाहन चालक जान पर खेलकर आवारा पशुओं के जमावड़े के बीच से किसी तरह वाहन निकालते हैं। वाटर एटीएम उखड़ गए हैं। गांधी बाग का आॅक्सीजन सेंटर ठप है। चुनाव न होने की वजह से जनता के चुने हुए नुमाइंदे बोर्ड में नहीं हैं। लोग परेशान हैं।
- माल रोड भी डेंजर जोन, कैंट बोर्ड में नहीं जनता के चुने नुमाइंदे, डिजिटल नेता भी खामोश, जनता परेशान
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: कैंट के बाशिंदों का दुख दर्द सुनने वाला कोई नहीं है। हर छोटी बड़ी बात पर सोशल मीडिया में पोस्ट डालने डिजिटल नेताओं ने भी आंखें बंद कर लीं हैं। सफाईकर्मी हड़ताल पर चले गए हैं। गलियों में कूड़े के अंबार हैं। चैपल स्टरीट से हनुमान चौक होते हुए सदर घंटाघर तक गड्ढे ही गड्ढे हैं। सुबह शाम बड़ी संख्या में श्रद्धालु हनुमान चौक आते हैं, लेकिन कैंट बोर्ड को इनकी परवाह नहीं। वेस्ट एंड रोड के स्कूलों में प्रतिदिन 30 हजार से ज्यादा बच्चे और अभिभावक आते-जाते हैं।
इनमें बड़ी संख्या दोपहिया और ई-रिक्शा में आने वालों की भी होती है। यहां खुले मैनहोल से बच्चों का बचाने के लिए पुलिस ने बैरियर लगा दिया है। माल रोड पर जहां अधिकांश सैन्य अफसरों के आवास हैं, वहां दिन भर सैकड़ों आवारा पशुओं का जमावड़ा रहता है। दोपहिया और कार के सामने अचानक गाय और सांड़ आ जाते हैं। स्कूलों की छुट्टी के वक्त हालात और भी विकट हो जाते हैं। सदर तिलक पार्क, बुंदेला, भड़भूजा में सड़क तलाशना ही मुश्किल है।
दम तोड़ गए लाखों के वाटर एटीएम
कैंट बोर्ड सिर्फ नारों में ही स्मार्ट है। हकीकत बेहद स्याह है। सड़कें गड्ढों से छलनी हैं। स्मार्ट बनने की दौड़ में शामिल होने के लिए ही 2017 और 2018 में एक करोड़ 25 लाख की कीमत से 21 जगह वाटर एटीएम लगाए गए थे।
आठ वार्डों में इनकी लोकेशन सप्लाई डिपो रोड चौराहा, लालकुर्ती थाने के पास, बेगमपुल, लालकुर्ती घोसी मोहल्ला, सदर शिवचौक, दास मोटर्स के सामने, गांधी बाग, रजबन, बाबा औघड़नाथ मंदिर के पास तय की गई। तब इन वाटर एटीएम को आॅनलाइन भी किया गया। यानी आप गूगल पर कैंट के नजदीकी वाटर एटीएम को सर्च करें तो जीपीएस आपको वहीं ले जाएगा। अब इनमें से अधिकांश वाटर एटीएम उखड़ चुके हैं।
इन्होंने दर्द बांटने की ठान ली
- गड्ढे हो चले जानलेवा
गड्ढे जानलेवा कमर दर्द दे रहे हैं। एल-5, एल-3 डिस्क खिसक रही हैं। ऐसा लगता है जैसे कैंट बोर्ड और नगर निगम ने लोगों को दर्द देने की ठान ली है। -डा. मनोज त्रिपाठी, शिक्षक
- विकास बस एक शब्द
पूरे शहर की हालत बद से बदतर है, विकास सिर्फ एक शब्द बनकर रह गया है। जनप्रतिनिधि भी चुप्पी साधे हुए हैं। -रजनीश कौशल
- नेताओं को न दिखाएं हकीकत
स्मार्ट सिटी के नारों में खुश होते रहे, बस नेताओं को हकीकत न दिखाएं। आखिर ये कब तक ऐसे ही चलता रहेगा। -कुलदीप सिंघल
- ये हैं कुंभकर्णी नींद में
सदर पत्ता मोहल्ले के तबेले से दूध निकालने के बाद गायों को खुला छोड़ दिया जाता है। जनता परेशान है और कैंट बोर्ड कुंभकर्णी नींद में है। -प्रतीक अभय