Thursday, April 25, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादसप्तरंगसृजन का पहला चरण है विध्वंस

सृजन का पहला चरण है विध्वंस

- Advertisement -
Sanskar 7

कभी आपने ख्याल किया है, जब आप अपनी पत्नी के पास होते हैं, तो आपका चेहरा क्या वही होता है जब आप नौकर के पास होते हैं। फर्क हो जाता है। जब आप नौकर की तरफ आंख उठाते हैं, तो वे आंखें दूसरी होती हैं। जब आप पत्नी की तरफ आंख उठाते हैं, तो आंखें दूसरी होती हैं। जब आप अपने बच्चों को देखते हैं, तो वे आंखें दूसरी होती हैं।

आपके सितारे क्या कहते है देखिए अपना साप्ताहिक राशिफल 29 May To 04 June 2022

 

जब आप एक भिखमंगे के बच्चे को देखते हैं, तो वे आंखें दूसरी होती हैं। दिन में चौबीस घंटे गिरगिट की भांति आपके मुखौटे, आपके चेहरे, आपकी आत्मा हवा की तरह बदलती रहती है। कभी इस पर ख्याल किया है? कभी इस पर दृष्टिपात किया है कि आपका चेहरा कौन सा है, आपका ओरिजिनल फेस क्या है? आप कौन हैं, आपका तथ्य क्या है? चौबीस घंटे बदले जा रहे हैं, चौबीस घंटे!

दूसरे की अनुकृति हमेशा आसान है, क्योंकि दूसरे की अनुकृति -उसी की अनुकृति होना चाहते हैं, जिसके नाम के साथ प्रतिष्ठा है, यश है, पद है। और चाहे वह पद लौकिक हो, चाहे वह पद पारलौकिक हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। हमारा अहंकार हमेशा उनकी तरफ जाना चाहता है, जो शिखर पर खड़े हैं, जो ऊपर ऊंचाई पर खड़े हैं। और इसलिए हम नकल में पड़ जाते हैं।

सारी अनुकृति, सारी नकल, सारी फॉलोइंग, सारा अनुकरण, ये सारे दुनिया के अनुयायी, ये सारे लोग वह जो दूसरे जैसे होने की कोशिश में लगे हैं, ये सारे लोग अहंकारग्रस्त हैं। और जो अहंकारग्रस्त हैं, उनका मन शांत नहीं हो सकता। उनका मन द्वंद्व-शून्य नहीं हो सकता। इसलिए मैं आपसे विधायक साधना के बारे में बता रहा हूं। लेकिन कुछ चीजें टूट जानी चाहिए, तब कुछ चीजें निर्मित की जा सकती हैं।

जब बीज को हम बोते हैं, इससे पहले कि बीज से अंकुर पैदा हो, बीज टूट जाता है और मिट्टी में मिल जाता है। अगर बीज टूटने से इनकार कर दे, अगर बीज मिटने से इनकार कर दे, तो फिर अंकुर का जन्म नहीं हो सकता।

इसके पहले कि सृजन हो, विध्वंस उससे पहले आता है। विध्वंस सृजन का पहला चरण है। कुछ बातें हैं, जो तोड़ देने जैसी हैं। मन के सारे आदर्श खंडित हो जाने चाहिए। कोई भी व्यक्ति, जब तक किसी की प्रतिमा के अनुकूल अपने को बनाने की कोशिश कर रहा है, तब तक वह आत्मघाती है। वह आत्म-विरोधी है। तब तक वह स्वयं की सत्ता को न स्वीकार करता, न स्वयं की महत्ता को समझने को राजी है, न स्वयं की सत्ता को विकसित करने के लिए उसकी दृष्टि हो सकती है।

जब हम सारी प्रतिमाओं को अपने चित्त से अलग कर देते हैं, सारे आदर्शों को, सारे महापुरुषों को, सारे महात्माओं को जब हम अपने मन से अलग कर देते हैं, तब हम खाली अकेले रह जाते हैं। और तब हम दृष्टिपात कर सकते हैं उस व्यक्तित्व पर जो हमारा है, उस व्यक्तित्व पर जो हमें मिला, उस बीज पर जिसे लेकर हम जन्मे हैं। और तब हम विचार कर सकते हैं कि बीज के लिए क्या करें, इस बीज को कैसे विकसित करें, इस बीज को कैसे अंकुरित करें।

इस विधायक साधना के लिए पहली आधारभूत बात है वह यह कि हम जानें कि हम क्या हैं? हम इस कोशिश में न पड़ें कि हमें कैसा होना चाहिए। हम जानें कि हम क्या हैं? आदर्श नहीं, तथ्य क्या है, हमारी एक्चुअलिटी क्या है?

वस्तुत: हम क्या हैं? आत्मा और परमात्मा नहीं, वास्तविक तथ्य क्या हैं हमारे मन के? हमारे मानसिक जीवन के वास्तविक भेद क्या हैं? बहुत कठिन है। कठिन इसलिए नहीं कि स्वयं के तथ्य को जानना कोई आपसे दूर की बात है। कठिन इसलिए कि हम सबने हजारों वर्षों से इस तरह के आदर्श, मुखौटे ओढ़ रखे हैं कि अब अपनी शक्ल पहचाननी बहुत कठिन है।

कभी आपने ख्याल किया है, जब आप अपनी पत्नी के पास होते हैं, तो आपका चेहरा क्या वही होता है जब आप नौकर के पास होते हैं। फर्क हो जाता है। जब आप नौकर की तरफ आंख उठाते हैं, तो वे आंखें दूसरी होती हैं। जब आप पत्नी की तरफ आंख उठाते हैं, तो आंखें दूसरी होती हैं। जब आप अपने बच्चों को देखते हैं, तो वे आंखें दूसरी होती हैं। जब आप एक भिखमंगे के बच्चे को देखते हैं, तो वे आंखें दूसरी होती हैं।

दिन में चौबीस घंटे गिरगिट की भांति आपके मुखौटे, आपके चेहरे, आपकी आत्मा हवा की तरह बदलती रहती है। कभी इस पर ख्याल किया है? कभी इस पर दृष्टिपात किया है कि आपका चेहरा कौन सा है, आपका ओरिजिनल फेस क्या है? आप कौन हैं, आपका तथ्य क्या है? चौबीस घंटे बदले जा रहे हैं, चौबीस घंटे!

दफ्तर में मालिक के पास होते हैं, बॉस के पास होते हैं, तो आपका चेहरा कुछ और है। चपरासी के साथ खड़े होते हैं, आपका चेहरा कुछ और है। मित्र के साथ खड़े होते हैं तो चेहरा कुछ और है। परिचित के साथ खड़े होते हैं, चेहरा कुछ और है। आपको पता है आपका असली चेहरा कौन सा है? चौबीस घंटे जो आदमी चेहरे बदलता रहता है, वह धीरे-धीरे भूल जाता है कि उसका तथ्य क्या है, उसी एक्चुअलिटी क्या है।

मैंने सुना है कि महिला एक खजांची से कुछ रुपये भुनाने गई खजाने में। उस खजांची ने उससे कहा कि मैं यह कैसे मानूं कि आप आप ही हैं? वह किसी तरह की साक्षी और गवाही चाहता था। उस महिला ने जल्दी से अपने मनी बैग से अपना आईना निकाला और अपना चेहरा देखा और कहा: मैं मैं ही हूं! उससे कहा: मान लीजिए, मैं मैं ही हूं! पर उसके पहले उसने अपना आईना निकालकर अपना चेहरा देख ही लिया।


janwani address 211

What’s your Reaction?
+1
0
+1
4
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
1
- Advertisement -

Recent Comments