Friday, April 19, 2024
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क्या है जनप्रतिनिधित्व क़ानून, कइयों की चली गई कुर्सी, पढ़ें जनवाणी विशेष

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नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट आपका अभिनन्दन और स्वागत है। आज की सबसे बड़ी खबर है कि गुजरात में सूरत की जिला कोर्ट ने कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई है। ऐसे ही कई मामलों में कई और सांसद व विधायकों की सदस्यता जा चुकी है।

आइये जानते हैं कि क्या है जनप्रतिनिधित्व क़ानून?, कइयों की कैसे चली गई कुर्सी, पढ़ें दैनिक जनवाणी की खास रिपोर्ट …

गुजरात में राहुल गांधी के विरुद्ध मोदी उपनाम के बयान पर साल 2019 में एक आपराधिक मानहानि का केस दर्ज़ किया गया था। सूरत की जिला कोर्ट ने इस बयान पर राहुल गांधी को बीते गुरूवार को दो साल की सजा सुनाई है। हालांकि कोर्ट ने राहुल गांधी को जमानत देते हुए सजा पर 30 दिन की रोक लगा दी ताकि फैसले को ऊपरी कोर्ट में अपील कर सकें।

सूरत की जिला कोर्ट ने राहुल गांधी को आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत दोषी करार देते हुए यह फैसला सुनाया है। इस दौरान राहुल गांधी भी कोर्ट में मौजूद रहे। सजा देने से पहले कोर्ट में दोनों पक्ष के वकीलों से काफी जोरदार बहस हुई, जिसके बाद जज ने राहुल गांधी को दोषी ठहराते हुए उन्हें 2 साल की सजा सुनाई।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत ने मानहानि के मामले में दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई है। राहुल पर 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान ‘मोदी सरनेम’ पर विवादित टिप्पणी करने का आरोप लगा था। इसी मामले में राहुल पर गुजरात के भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने मानहानि का मुकदमा दायर किया था।

किसी सांसद या विधायक की कैसे जाती है सदस्यता?

अगर, किसी सांसद या विधायक को दो साल या इससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता चली जाती है। हालांकि, राहुल को अभी एक महीने की मोहलत मिली हुई है। राहुल इस फैसले के खिलाफ एक महीने के अंदर सेशंस कोर्ट में अपील दायर कर सकते हैं। अगर सेशंस कोर्ट भी सजा बरकरार रखती है तो जरूर राहुल की सदस्यता पर खतरा मंडरा सकता है।

आपको बता दें कि राहुल पहले ऐसे नेता नहीं हैं, जिनकी सदस्यता जा सकती है। इसके पहले भी कई ऐसे सांसद और विधायकों की सदस्यता जा चुकी है, जिन्हें कोर्ट ने दो साल या इससे अधिक की सजा सुनाई है। आज हम ऐसे ही कुछ नेताओं के बारे में बताएंगे, जिनकी सदस्यता सजा के चलते चली गई।

ये भी बताएंगे कि वो कौन-सा नियम है, जिसके जरिए विधायकों और सांसदों की सदस्यता रद्द हो जाती है?


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आजम खान।

आजम खान: समाजवादी पार्टी के बड़े नेता और रामपुर से विधायक रहे आजम खान की सदस्यता भी चली गई है। आजम रामपुर से लगातार 10 बार विधायक चुने जा चुके हैं और सांसद भी रहे। आजम खान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अभद्र टिप्पणी का आरोप लगा था। इस मामले में तीन साल तक कोर्ट में केस चला और फिर कोर्ट ने उन्हें तीन साल की सजा सुनाई। सजा होने के बाद आजम को जमानत तो मिल गई लेकिन, उनकी विधानसभा की सदस्यता जरूर चली गई।


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विक्रम सैनी।

विक्रम सैनी: मुजफ्फरनगर की खतौली से विधायक रहे विक्रम सैनी की भी सदस्यता चली गई है। विक्रम दंगे में शामिल होने के दोषी पाए गए थे। ये मामला साल 2013 का है। तब मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उस समय विक्रम सैनी जिला पंचायत सदस्य थे और उनका नाम दंगों में आया था। इस मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। विक्रम सैनी जब जेल से छूट कर आए तो भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें खतौली से अपना प्रत्याशी बना दिया। इसके बाद भारी मतों से विक्रम सैनी ने जीत हासिल की। 2022 के चुनाव में भी बीजेपी ने उन्हें फिर से अपना प्रत्याशी बनाया और इस बार भी हाईकमान के विश्वास पर खरे उतरे थे। तब मुजफ्फरनगर की छह सीटों में से केवल दो सीट ही बीजेपी जीत पाई थी, जिनमें एक सीट खतौली विधानसभा भी थी। दंगों के मामले में कोर्ट द्वारा पिछले साल नवंबर में विक्रम सैनी को दो साज की सजा सुनाई। इसके चलते उनकी सदस्यता समाप्त हो गई।


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मोहम्मद फैजल।

मोहम्मद फैजल: लक्षद्वीप सांसद मोहम्मद फैजल को भी कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई है। जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई थी। चुनाव आयोग ने लक्षद्वीप लोकसभा पर उपचुनाव कराने के लिए अधिसूचना भी जारी कर दी थी। हालांकि, बाद में केरल हाईकोर्ट ने सजा पर रोक लगा दी है। अभी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। फैजल पर कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पीएम सईद और मोहम्मद सालिया पर हमला करने का आरोप था। इस मामले में 32 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिसमें से चार को कोर्ट ने दोषी ठहराया था। इनमें मोहम्मद फैजल भी शामिल थे।


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ममता देवी।

ममता देवी: झारखंड की रामगढ़ विधानसभा सीट से विधायक ममता देवी को अयोग्य करार दिया गया था, जिस कारण ये सीट खाली हो गई थी। ममता को हजारीबाग जिले की एक विशेष अदालत ने पांच साल कारावास की सजा सुनाई थी। इन सभी को 2016 के दंगे और हत्या के प्रयास के एक मामले में दोषी ठहराया गया था। यह मामला रामगढ़ जिले के गोला में हिंसक विरोध प्रदर्शन से जुड़ा था।


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खब्बू तिवारी।

खब्बू तिवारी: भारतीय जनता पार्टी से अयोध्या की गोसाइगंज सीट से विधायक रहे इंद्र प्रताप सिंह उर्फ खब्बू तिवारी की सदस्यता 2021 में चली गई थी। खब्बू तिवारी फर्जी मार्कशीट केस में दोषी पाए गए थे और 18 अक्टूबर 2021 को एमपी-एमएलए कोर्ट द्वारा उन्हें पांच साल की सजा सुनाई थी।


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कुलदीप सिंह सेंगर।

कुलदीप सिंह सेंगर: उन्नाव रेप कांड में दोषी ठहराए गए भाजपा के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की भी सदस्यता जा चुकी है। कुलदीप सेंगर को रेप मामले में दोषी ठहराया गया था और कोर्ट ने आजीवन करावास की सजा सुनाई गई थी।


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अशोक चंदेल।

अशोक सिंह चंदेल: हमीरपुर जिले के भारतीय जनता पार्टी के विधायक रहे अशोक कुमार सिंह चंदेल को भी एक अदालत ने हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके बाद चंदेल की विधानसभा सदस्यता चली गई।


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अनिल कुमार साहनी।

अनिल कुमार साहनी: आरजेडी विधायक अनिल कुमार साहनी को दिल्ली की एक सीबीआई अदालत ने धोखाधड़ी के एक मामले में दोषी ठहराया था। उन्हें तीन साल की सजा सुनाई थी। इसके चलते बिहार विधानसभा से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। कुरहानी विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले सहनी को 29 अगस्त को सजा सुनाई गई थी और दो दिन बाद तीन साल जेल की सजा सुनाई गई थी। राउज एवेन्यू की अदालत ने उन्हें 2012 में यात्रा किए बिना जाली एयर इंडिया ई-टिकट का उपयोग करके यात्रा भत्ता हासिल करने का प्रयास करने का दोषी ठहराया था। उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद (यू) के साथ रहे सहनी राज्यसभा सदस्य थे। उन्होंने 23.71 लाख रुपये के दावे प्रस्तुत किए थे। वह कुछ महीनों के भीतर विधानसभा से अयोग्य घोषित होने वाले दूसरे राजद विधायक
बन गए।


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अनंत कुमार सिंह।

अनंत कुमार सिंह: बिहार के मोकामा विधायक अनंत कुमार सिंह की भी सदस्यता जा चुकी है। सिंह के आवास से हथियार और विस्फोटक की बरामदगी हुई थी। इस मामले में पटना की एक अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया था। जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई।


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रशीद मसूद।

रशीद मसूद: एमबीबीएस सीट घोटाले में कांग्रेस के सांसद काजी रशीद की सदस्यता चली गई थी। काजी रशीद कांग्रेस से राज्यसभा पहुंचे थे। कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में भेजा था। राज्यसभा सांसद रहते उन्हें एमबीबीएस सीट घोटाले में दोषी पाया गया। वर्ष 2013 में कोर्ट ने चार साल की सजा सुनाई। इससे उनकी सांसदी चली गई।


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मित्रसेन यादव।

मित्रसेन यादव: धोखाधड़ी के एक केस में समाजवादी पार्टी के सांसद मित्रसेन यादव को अपनी सांसदी गंवानी पड़ी थी। वर्ष 2009 में फैजाबाद सीट से सपा सांसद मित्रसेन यादव के खिलाफ धोखाधड़ी का एक मामला साबित हुआ। कोर्ट ने उन्हें सात साल की सजा सुनाई। इसके बाद उनकी सांसदी चली गई। वर्ष 2015 में मित्रसेन यादव का निधन हो गया था।


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क्या है जन प्रतिनिधित्व अधिनियम

देश में लोक जनप्रतिनिधित्व कानून के आने के बाद से अब तक कई सांसद-विधायकों को अपना पद गंवाना पड़ा रहा है। कोर्ट की ओर से सजा का ऐलान होने पर अब जन प्रतिनिधियों की नजर सजा अवधि पर टिकने लगी है। इसका कारण 10 जुलाई 2013 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से लिली थामस बनाम भारत संघ मामले में एक बड़ा फैसला माना जा रहा है। कोर्ट ने फैसला दिया था कि अगर कोई विधायक, सांसद या विधान परिषद सदस्य किसी भी अपराध में दोषी पाया जाता है और उसे कम से कम दो साल की सजा होती है तो ऐसे में वह तुरंत सदस्यता से अयोग्य हो जाएगा। इसका अर्थ यह हुआ हुआ कि उसका जनप्रतिनिधि के रूप में चुनाव रद्द हो जाएगा। इस प्रकार जन प्रतिनिधि के रूप में पहचान समाप्त हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद से अब तक कई जन प्रतिनिधियों को अपना पद गंवाना पड़ा है। इसमें सबसे ताजा नाम आजम खान का शामिल होने वाला है।


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लालू प्रसाद यादव।

लालू प्रसाद यादव बने थे पहले शिकार

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तत्कालीन मनमोहन सरकार इसके खिलाफ बिल लाने की तैयारी कर रही थी। लेकिन, तब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बिल की कॉपी को फाड़कर अपना विरोध जताया। बिल अटक गई। सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू हुआ और इसका पहला शिकार लालू प्रसाद हुए। लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चारा घोटाले के मामले में वर्ष 2013 में कोर्ट ने सजा का ऐलान किया और उनकी सांसदी चली गई। उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग गई। अभी भी लालू यादव चुनावी मैदान में उतरने के योग्य इसी कानून के कारण नहीं हैं।


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जय ललिता।

जय ललिता पर भी चला केस, चली गई थी कुर्सी

जन प्रतिनिधित्व कानून का शिकार तमिलनाडु की पूर्व सीएम जे. जयललिता भी हुई थीं। आय से अधिक संपत्ति के मामले में सजा का ऐलान होने के बाद उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा था। 10 साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई थी।


झारखण्ड में भी चला केस, चली गई थी कुर्सी

झारखंड के आजसू विधायक कमल किशोर भगत, महाराष्ट्र के भाजपा विधायक सुरेश हलवंकर, बिहार के जहानाबाद से सांसद जगदीश शर्मा, महाराष्ट्र की उल्लाहसनगर सीट से विधायक पप्पू कालानी और मध्य प्रदेश से भाजपा विधायक आशा रानी जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत विभिन्न मामलों में सजा के ऐलान के बाद अपना पद छोड़ना पड़ चुका है।


अब राहुल गांधी की जाएगी सांसदी?

लोक-प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 8(3) के मुताबिक, अगर किसी नेता को दो साल या इससे ज्यादा की सजा सुनाई जाती है तो उसे सजा होने के दिन से उसकी अवधि पूरी होने के बाद आगे छह वर्षों तक चुनाव लड़ने पर रोक का प्रावधान है। अगर कोई विधायक या सांसद है तो सजा होने पर वह अयोग्य ठहरा दिया जाता है। उसे अपनी विधायकी या सांसदी छोड़नी पड़ती है।


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सुभाष कश्यप, संविधान विशेषज्ञ।

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि राहुल गांधी को दो साल की सजा जरूर हुई है, लेकिन सजा अभी निलंबित है। ऐसे भी फिलहाल उनकी सांसदी पर कोई खतरा नहीं है। राहुल को अगले तीस दिन के भीतर ऊंची अदालत में फैसले को चुनौती देनी होगी। अगर वहां भी कोर्ट निचली अदालत को बरकार रखती है तो राहुल की संसद सदस्यता जा सकती है।


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सुप्रीम कोर्ट।

क्या हमेशा से ऐसा होता रहा है?

नहीं, 2013 के पहले ऐसा नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस अधिनियम को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए धारा 8(4) को असंवैधानिक करार दिया था। इस प्रावधान के मुताबिक, आपराधिक मामले में (दो साल या उससे ज्यादा सजा के प्रावधान वाली धाराओं के तहत) दोषी करार किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को उस सूरत में अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता था, अगर उसकी ओर से ऊपरी न्यायालय में अपील दायर कर दी गई हो। यानी धारा 8(4) दोषी सांसद, विधायक को अदालत के निर्णय के खिलाफ अपील लंबित होने के दौरान पद पर बने रहने की छूट प्रदान करता है। इसके बाद से किसी भी कोर्ट में दोषी ठहराए जाते ही नेता की विधायकी-सासंदी चली जाती है।

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