उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में घोषित होने के बाद प्रदेश के कुशीनगर क्षेत्र से एक अप्रत्याशित एवं अफसोसनाक खबर आई। खबरों के अनुसार विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का जश्न मनाने पर बाबर नामक एक मुस्लिम युवक की हत्या कर दी गई। बताया जा रहा है कि कुशीनगर के रामकोला थाना क्षेत्र के अंतर्गत कठघरही गांव में बाबर के रिश्तेदारों ने ही उसे पीट-पीटकर मार डाला। बाबर का ‘कुसूर’ यह बताया जाता है कि उसने विधानसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार किया था। बाबर के रिश्तेदार कथित तौर पर उससे इसीलिये नाराज थे, क्योंकि वह भाजपा के लिए चुनाव प्रचार कर रहा था। उसके रिश्तेदार बाबर से तब और भी नाराज हो गए थे, जब उसने भाजपा की जीत पर गांव में मिठाई बांटी थी। इसी के बाद उन्होंने बाबर की जमकर पिटाई कर दी। जिससे बाद इलाज के दौरान उसकी मौत गयी। मरणोपरांत उसके जनाजे को कंधा देने के लिए भाजपा विधायक पी एन पाठक कई पार्टी समर्थकों के साथ पहुंचे।
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समाचारों के अनुसार इस मामले पर खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने संज्ञान लिया। मुख्यमंत्री ने घटना पर शोक जताते हुए मामले की गहनता से निष्पक्ष जांच हेतु अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। विधायक पाठक ने कहा है कि-इस मामले में कोई भी दोषी बख़्शा नहीं जाएगा, ढूंढवा कर आरोपियों पर कार्रवाई की जाएगी, ऐसी कार्रवाई होगी कि इनकी नस्ल दोबारा ऐसी घटना करने की जुर्रत नहीं कर पाएगी। कुछ आरोपी गिरफ़्तार भी किए जा चुके हैं।
भारतीय लोकतंत्र में जहां प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मर्जी के अनुसार किसी भी विचारधारा के किसी भी राजनैतिक दल का समर्थन अथवा विरोध करने का अधिकार हो वहां इस प्रकार के पूर्वाग्रह व इस तरह की हिंसक घटनाओं अथवा धमकियों को किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता।
उपरोक्त लगभग सभी घटनाओं का राज्य प्रशासन व स्थानीय पुलिस द्वारा गंभीरता से संज्ञान लिया जा रहा है। बाबर की हत्या की घटना को तो मोहम्मद अखलाक, पहलू खान, तबरेज व जुनैद आदि अनेक लोगों के साथ घटी ‘मॉब लिंचिंग’ जैसी घटना भी कहा सकता है। सरकार व प्रशासन का ऐसे मामलों में सख़्ती दिखाना स्वागत योग्य कदम है। भारतीय जनता पार्टी भले ही मुस्लिम विरोध के नाम पर बहुसंख्य मतों को ध्रुवीकृत करने की रणनीति पर केंद्रित राजनीति क्यों न करती हो और मुसलमानों की बहुसंख्य आबादी भी भाजपा को मुस्लिम विरोधी दाल क्यों न स्वीकार करे, परंतु भाजपा में मुसलमानों का दखल कोई नई बात नहीं है।
मध्य प्रदेश से संबंध रखने वाले आरिफ बेग 1973 में जनसंघ से जुड़े थे। वे बीजेपी के एक कद्दावर नेता थे। 1977 लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर बेग ने भोपाल से चुनाव लड़ा था और डॉ. शंकर दयाल शर्मा जो आगे चलकर देश के राष्ट्रपति भी बने, को हराकर एक बड़ी जीत दर्ज की थी। बेग 1989 में बैतूल लोकसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर भी चुनाव लड़े और भारी मतों से जीते। आरिफ बेग मोरारजी देसाई की सकार में वाणिज्य और उद्योग मंत्री भी रहे थे। इसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी के एक संस्थापक सदस्य का नाम था सिकंदर बख़्त।
जनता पार्टी से 1980 में अलग होकर जब भारतीय जनता पार्टी बनी तो सिकंदर बख़्त इसी पार्टी में शामिल हुए और भाजपा के पहले मुस्लिम महासचिव बनाए गए। 1984 में उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया। इसी प्रकार मौलाना अबुल कलाम आजाद की नातिन नजमा हेपतुल्लाह 2004 में बीजेपी में शामिल हुई पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सदस्य भी बनाया। वे मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री बनीं। और बाद में उन्हें मणिपुर का राज्यपाल बना दिया गया। एमजे अकबर, मुख़्तार अब्बास नकवी, शहनवाज हुसैन और जफर इस्लाम जैसे कई मुस्लिम नेता आज भी भाजपा में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रहकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। परंतु चूंकि यह स्थापित व ऊंचे कद के नेता हैं इसलिए शायद भाजपा विरोधी पूर्वाग्रह रखने वाले मुसलमानों के विरोध के स्वर इनके विरुद्ध बुलंद नहीं हो पाते।
ऐसा भी नहीं है कि धर्म आधारित राजनैतिक विरोध सिर्फ मुसलमानों तक ही सीमित हैं। याद कीजिए, जब भाजपा की एक साध्वी कही जाने वाली सांसद ने सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि रामजादे भाजपा को वोट देंगे और ‘हराम जादे’ भाजपा के विरोध में। क्या अर्थ है इस वाक्य का? आखिर धर्म आधारित विरोध का ही तो यह भी एक अंदाज है? इसी तरह उत्तर प्रदेश के ताजातरीन विधानसभा चुनावों में सिद्धार्थनगर की डुमरियागंज सीट से भाजपा प्रत्याशी राघवेंद्र प्रताप सिंह का एक अत्यंत विवादित व अमर्यादित बयान सामने आया था|
जिसमें उसने कहा था कि जो हिंदू उन्हें छोड़कर किसी और को वोट देगा वो उसका डीएनए टेस्ट करवाएंगे कि उसमें हिंदू का ही खून है या फिर मुसलमानों का खून है। राघवेंद्र प्रताप सिंह के इस बयान के बाद चुनाव आयोग ने सख़्ती दिखाते हुये 24 घंटे तक उसके चुनाव प्रचार करने पर रोक भी लगाई थी।
इसी तरह यदि तेलंगाना विधानसभा में गोशामहल के भाजपा विधायक राजा सिंह के विचार सुनें तो ऐसा लगेगा कि उनकी पूरी राजनैतिक कमाई ही मुस्लिम विरोध पर आधारित है। भाजपा में ही ऐसे तमाम नेता भरे पड़े हैं, जो संघ की नीतियों के अनुसार मुसलमानों, अल्पसंख्यकों, ईसाइयों तथा कंम्युनिस्टों को पानी पी पी कर कोसते रहते हैं। परंतु उनके विरुद्ध कार्रवाई करना तो दूर उल्टे उनकी प्रोन्नति होती देखि जा सकती है।
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